Kisan News: किसान शुरू करें कोदो की खेती,कम लागत, समय और जगह में कमाएं लाखों का मुनाफा

Kisan News: कोदो एक तरह का अनाज है जो बहुत कम बारिश में पैदा हो सकता है। नेपाल के अलावा भारत के विभिन्न हिस्सों में कोदो की पैदावार होती है। धान के कारण इसकी खेती कम की जाती है. कोदो की खेती के लिए अच्छी ज़मीन और अधिक मेहनत की आवश्यकता नहीं होती है। इसको पहली बारिश के बाद ही बुवाई की जाती है। इसका पौधा धान या बड़ी घास जैसा आकार का होता है। इस फसल को पकने के बाद साफ़ करने के बाद एक प्रकार का चावल निकलता है जो की खाने के काम आता है।

Kisan News: किसान शुरू करें कोदो की खेती,कम लागत, समय और जगह में कमाएं लाखों का मुनाफा

Kisan News: कोदो की फसल ज़्यादा पकने पर खेत में ही दाने गिर जाते है। तो समय रहते इस फसल को काट कर खलिहान में डाल देते हैं। स्थानीय बोली में कोदो को भंगर चावल भी कहां जाता है। इस के दानो को चावल के रूप में खाया जाता है।इसकी खेती दूसरी फसल के साथ भी की जाती है कम वर्षा होने पर भी कोदो की खेती कर सकते है। सामान्य खेत की मिट्टी में भी कोदो की फसल को बोया जा सकता है। लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रागी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते है।

kisan News: ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अतः उस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है।

आज के इंदौर मंडी भाव ( Indore Mandi Bhav Today )

किसान समाचार: प्रायः किसान इन लघु धान्य फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं. किंतु कुटकी के लिये 20 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर/हेक्टे. तथा कोदों के लिये 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। उपरोक्त नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुवाई के समय एवं नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के तीन से पांच सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद देना चाहिए. बुवाई के समय पी.एस.बी. जैव उर्वरक 4 से 5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा. मिट्टी अथवा कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रयोग करें।

source By – बैतूल समाचार

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