टिंडा सब्जी की बुवाई का समय चल रहा है। किसान टिंडा की उन्नत किस्मों की बुवाई करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों के द्वारा बताएं गए तरीके अपनाएं जाए तो इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको टिंडा सब्जी की खेती की जानकारी दे रहे हैं।
टिंडा सब्जी की खेती के लिए जलवायु व मिट्टी
टिंडा की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु अच्छी रहती है। ठंडी जलवायु इसके लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। पाला इसकी फसल के लिए नुकसान दायक होता है। इसलिए इसकी खेती गर्मियों में ही की जाती है। बारिश में भी इसकी खेती कर सकते हैं लेकिन इस दौरान रोग और कीट लगने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। बात करें इसकी खेती के लिए मिट्टी की तो इसकी खेती हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। अच्छी जलधारण क्षमता वाली जीवांशयुक्त हल्की दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
टिंडा की खेती का उचित समय व उन्नत किस्में
टिंडा की खेती साल में दो बार की जा सकती है। इसे फरवरी से मार्च और जून से जुलाई तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।टिंडा सब्जी की कई प्रसिद्ध उन्नत किस्में है। इनमेेंं टिंडा एस 48, टिंडा लुधियाना, पंजाब टिंडा-1, अर्का टिंडा, अन्नामलाई टिंडा, मायको टिंडा, स्वाती, बीकानेरी ग्रीन, हिसार चयन 1, एस 22 आदि अच्छी किस्में मानी जाती हैं। टिंडे की फसल आमतौर पर दो माह में पककर तैयार हो जाती है।
टिंडे की खेती : खेत की तैयारी
टिंडा सब्जी की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत की ट्रैक्टर और कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें। इसके बाद सड़े हुए 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रतिकिलो खाद के हिसाब से डालें। अब खेती के लिए बैड तैयार करें। बीजों को गड्ढों और डोलियों में बोया जाता है।
टिंडे के बीज की मात्रा व बीजोपचार
टिंडा सब्जी के बीजों की बुवाई के लिए एक बीघा में डेढ़ किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए बिजाई से पहले बीजों को 12-24 घंटे के लिए बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए। इससे उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ती है। बीजों को मिट्टी से होने वाली फंगस से बचाने के लिए, कार्बेनडाजिम 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों की दर से उपचारित करना चाहिए। रासायनिक उपचार के बाद, बीजों को ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम या स्यूडोमोनास फलूरोसैंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। इसके बाद छाया में सुखाकर फिर बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
टिंडा की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
टिंडे की पूरी फसल में नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा पौधे के शुरुआती विकास के समय में डालें। वहीं टिंडे की अधिक पैदावार के पाने के लिए टिंडे के खेत में मैलिक हाइड्राजाइड के 50 पीपीएम का 2 से 4 प्रतिशत मात्रा का पत्तियों पर छिडक़ाव करने पर पैदावार में 50-60 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है।
टिंडा की खेती में बुवाई का तरीका
आमतौर से टिंडे की बुवाई समतल क्यारियों में की जाती है लेकिन डौलियों पर बुवाई करना काफी अच्छा रहता है। टिंडा की फसल के लिए 1.5-2 मी. चौड़ी, 15 से.मी. उठी क्यारियां बनानी चाहिए। क्यारियों के मध्य एक मीटर चौड़ी नाली छोड़े बीज दोनों क्यारियों के किनारों पर 60 से.मी. की दूरी पर बुवाई करें। बीजों की गहराई 1.5-2 से.मी. से अधिक गहरी नहीं रखें।
टिंडा की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था
इस समय ग्रीष्मकालीन टिंडा की फसल बुवाई की जा सकती है। इसके बाद दूसरी बुवाई वर्षाकाल में की जाएगी। ग्रीष्मकालीन टिंडा की खेती के लिए हर सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए। जबकि बारिश में सिंचाई वर्षाजल पर आधारित होती है।
खरपतवार नियंत्रण
टिंडे की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते है जो पौधों के विकास और बढ़वार को प्रभावित करने के साथ ही उपज पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाते हैं। इसलिए इसकी रोकथाम करना जरूरी होता है। इसके लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए।
कब करें टिंडा सब्जी की तुड़ाई
आमतौर पर बुवाई के 40-50 दिनों बाद फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है। तुड़ाई में इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब फल पक जाएं और मध्यम आकार के हो जाएं तब इसकी तुड़ाई की जानी चाहिए। इसके बाद हर 4-5 दिनों में अंतर में तुड़ाई की जा सकती है।
टिंडा की खेती से प्राप्त उपज और बाजार भाव
यदि वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती की जाए तो टिंडा की खेती से एक हैक्टेयर में करीब 100-125 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। टिंडा का बाजार भाव सामान्यत: 20 रुपए से लेकर 40 रुपए किलो तक होता है।

