किसान 25 हजार रुपये की लागत में ही डेढ़ एकड़ क्षेत्र में रेशम की खेती करके एक साल में दस लाख रुपये की कमाई कर सकते है। कच्चा रेशम बनाने के लिये रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशमकीट पालन कहलाता है। रेशम उत्पादन कृषि-आधारित एक कुटीर उद्योग है जिसमें बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिये रेशमकीट पालन किया जाता है। कच्चा रेशम एक धागा होता है जिसे कुछ विशेष कीटों द्वारा काते गए कोकुनों से प्राप्त किया जाता है।
रेशम एक कीट के प्रोटीन से बना रेशा है। सबसे अच्छा रेशम शहतूत, अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनाया जाता है। शहतूत के पत्ते खाकर कीट जो रेशम बनाता है उसे मलबरी रेशम कहते हैं।
रेशमकीट पालन चार प्रकार के होते हैं
1-मलबरी रेशम – खाद्य वृक्ष शहतूत
2–(एरी)इरी रेशम मुख्यतः खाद्य वृक्ष अरंडी
3– टसर रेशम -खाद्य वृक्ष अर्जुन एव साजा
4–मूंगा रेशम – मुख्यतः खाद्य वृक्ष सोलू
रेशम की खेती के लिए शहतूत का पेड़ महत्वपूर्ण
रेशम खेती के लिए डेढ़ एकड़ में शहतूत के पेड़ लगाएं. रेशम खेती में शहतूत के पेड़ों का महत्वपूर्ण कार्य होता है। इसी शहतूत के पत्तों को खाकर रेशम कीट रेशम बनाते हैं।इस खेती में हर 3 महीने में एक बार रेशम को क्रॉप किया जाता है। इस दौरान पच्चीस हजार रुपयों की लागत आती है। इससे लगभग ढाई लाख रुपयों की कमाई भी हो जाती है। इस हिसाब से 1 साल में 4 बार रेशम क्रॉप किया जाता है, ओर सालाना कमाई 10 लाख कर सकते हैं।

