सरकार की ओर से किसानों की आय बढ़ाने का प्रयास लगातार जारी है। किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से लाभ प्रदान किया जा रहा है जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो रही है। केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए योजनाएं ला रही है। वहीं पुरानी योजनाओं में संशोधन करके किसानों की आय को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
इसी कड़ी में राज्य सरकार की ओर से कृषि श्रमिकों की मजदूरी में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का फैसला किया है ताकि उन्हें उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके। यह बढ़ोतरी उन कृषि श्रमिकों के लिए की गई है जो औद्योगिक एवं असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। राज्य सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। बढ़ी हुई मजदूरी की दर एक अप्रैल 2024 से लागू होगी।
किन श्रमिकों को मिलेगा बढ़ी हुई मजदूरी का लाभ
मध्यप्रदेश सरकार के आदेश के मुताबिक एक अप्रैल से सभी औद्योगिक एवं असंगठित श्रमिकों को 25 प्रतिशत अधिक मजदूरी मिलेगी। सभी औद्योगिक एवं असंगठित क्षेत्र से जुड़े ट्रेंड व अनट्रेंड श्रमिकों का मेहनताना एक अप्रैल 2024 से बढ़ जाएगा। नई न्यूनतम वेतन दरों के प्रभावशील होने पर कृषि श्रमिकों का न्यूनतम वेतन 7660 रुपए प्रतिमाह हो जाएगा। बता दें कि वर्ष 2014 के बाद प्रदेश में पहली बार मजदूरों की मजदूरी का पुनरीक्षण किया गया है।
किस आधार पर किया गया है नई मजदूरी दर का निर्धारण
श्रमिकों को देय प्रचलित न्यूनतम वेतन की दरों में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी और जनवरी से जून 2019 के औसत अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर दिनांक एक अक्टूबर 2019 से देय परिवर्तनशील महंगाई भत्ते को न्यूनतम वेतन में जोड़कर नई न्यूनतम वेतन दरें निर्धारित की गई है। यह अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 311 पर आधारित कर संबंद्ध की गई है। नई न्यूनतम वेतन दरों के प्रभावशील होने पर कैटेगरी के अनुसार श्रमिकों को बढ़ी हुई न्यूनतम मजदूरी का लाभ मिल सकेगा।
कृषि श्रमिकों की श्रेणी में कौन आते हैं
कृषि श्रमिक से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों से हैं जो अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो कृषि श्रमिक वे हैं जिनकी आय का अधिकांश हिस्सा कृषि में मजदूरी करने से प्राप्त होता है। लेकिन सभी किसानों को कृषि मजदूर नहीं कहा जा सकता है। कुछ किसान ऐसे होते हैं जिनके पास खेती की जमीन नहीं होती है लेकिन वे दूसरे के खेत में मजदूरी का काम करते हैं। इसमें हल, बैल या कृषि उपकरणों की सहायता से खेत की जुताई करना, बीजों की बुवाई करना, फसल कटाई करना आदि आते हैं। कई जगहों पर इन मजदूरों को खेती से प्राप्त उपज का हिस्सा दिया जाता है तो कहीं पर मजदूरी के रूप में पैसा दिया जाता है। कई जगहों पर यह मजदूर, बंधुआ मजदूर के रूप में भी काम करते हैं। वहीं जांच समिति के अनुसार कृषि श्रमिक वह व्यक्ति है, जो वर्ष पर्यन्त अपने कार्य के समस्त दिनों में आधे से अधिक दिन किराये के श्रमिक के रूप में कृषि-कार्यों में लगा रहता है।
असंगठित क्षेत्र के मजदूर किन्हें माना गया है
असंगठित क्षेत्र में प्रमुख रूप से स्व-नियोजित श्रमिकों, वेतनभोगी मजदूरों और संगठित क्षेत्र के उन कर्मचारियों को शामिल किया जाता है, जो असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 की अनुसूची- II में उल्लेखित कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित किसी अधिनियम के तहत नहीं आते हैं। असंगठित कामगार या श्रमिकों की परिभाषा के अनुसार ठेका श्रमिक, नैमित्तिक कामगार, घरों में काम करने वाले, कृषि कामगार, बंटाईदार, सीमांत किसान, बंधुआ मजदूर, दस्तकार, मैला ढोने वाले मजदूर, महिला और बाल श्रमिक व वृद्ध मजदूर शामिल हैं।
संगठित क्षेत्र के श्रमिक कौन होते हैं
संगठित क्षेत्र के श्रमिक उन्हें माना जाता है तो निश्चित शर्तों और समय के तहत कार्य करते हैं। जैसे- यदि कोई व्यक्ति किसी कारखाने में काम करता है या किसी सरकारी नौकरी में है तो वह संगठित क्षेत्र के अंतर्गत आता है और ऐसे श्रमिकों को संगठित क्षेत्र के श्रमिक माना जाता है।
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