Wheat Farming: देशभर में गेहूं की बुवाई का काम पूरा हो चुका है.अब टाइम आ गया है गेहूं की फसल की देखभाल करने का, ताकी बिना नुकसान के अच्छी पैदावार मिले और भारतीय अन्न का भंडार फिर से भर जाए।गेहूं रबी सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। अक्टूबर तक लगभग सभी किसानों ने इसकी बुवाई पूरी कर ली है। अब फसल में निगरानी प्रबंधन और सुरक्षा कार्य करने का समय है,ताकि फसल को नुकसान से बचाकर अच्छा उत्पादन लिया जा सके। ज्यादातर इलाकों में अभी गेहूं की फसल शुरुआती अवस्था में है। गेहूं के पौधे अभी काफी छोटे हैं।इसी समय फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि इस समय फसल में खरपतवार पनपते रहते हैं और कीट-रोग का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इसी के साथ गेहूं के फसल के पौधे पीले पड़ने लगते हैं। कई बार पौधे सूख कर मुरझा भी जाते हैं। यह परेशानी सिंचाई और पोषण की कमी के कारण हो सकती है। आज के आर्टिकल में आप जानेंगे कि किस समय गेहूं की फसल में कौन-कौन से कृषि कार्य करने होंगे, जिससे कि आने वाले समय में अच्छी पैदावार ले सके।
Wheat farming: गेहूं की फसल के साथ-साथ कुछ अनियमित पौधे भी खेत में उग जाते हैं, जो फसल के विकास में बाधा बनते हैं। यह पौधे ही कीड़े-मकोड़े और बीमारियों को आकर्षित करते हैं, जिससे फसल में नुकसान का खतरा बना रहता है। इन्हीं पौधों को खरपतवार कहते हैं। समय रहते इन खरपतवारों को खेत से उखाड़ कर बाहर फेंकना होता है। नहीं तो यह गेहूं की फसल से सारा पोषण सोख कर उत्पादकता को कम कर सकते हैं।खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर फसल में निराई-गुड़ाई का काम करें। गेहूं के अलावा कोई और पौधा नजर आने पर उखाड़कर खेत से बाहर फेंक दें। ज्यादा खरपतवारों का प्रकोप दिखे तो कृषि विशेषज्ञों के बताए अनुसार खरपतवारनाशक दवाओं का छिड़काव भी कर सकते हैं।
गेहूं की खेती: फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि फसल को मजबूत बनाया जाए। मिट्टी और फसल की जरूरत के अनुसार पोषक तत्व और और उर्वरकों का छिड़काव हो। कई बार फसल खुद ही पोषण की कमी के संकेत देती है। ऐसी स्थिति में कृषि विशेषज्ञों की सलाह मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर 110 किलोग्राम यूरिया, 55 किलोग्राम डीएपी और 20 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से करना चाहिए। इस बीच फसल में नाइट्रोजन की आधी मात्रा का इस्तेमाल करें और आधी सिंचाई के बाद इस्तेमाल करने पर फसल को सही पोषण मिलने में आसानी रहती है।
समय पर करें सिंचाई :कई बार भूजल स्तर गिरने से मिट्टी में नमी कम हो जाती है। इसका सीधा असर फसल पर ही पड़ता है। गेहूं की फसल के साथ भी कुछ ऐसा ही है। यदि समय पर सिंचाई ना की जाए तो फसल का विकास रुक जाता है और पौधे मुरझाने लगते हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि गेहूं की फसल में कम से कम 6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। कई बार फसल की वैरायटी,मिट्टी की क्वालिटी और जलवायु के हिसाब से सिंचाई करने की सलाह दी जाती है। किसानों को पहली सिंचाई फसल की अवधि 20-25 दिन बाद, दूसरी सिंचाई 40-45 दिन बाद, तीसरी सिंचाई 60-65 दिन बाद, चौथी सिंचाई 80-85 दिन बाद, पांचवी सिंचाई 90-105 दिन के बाद और छठवीं सिंचाई 105-120 दिन के अंदर कर देनी चाहिए। इस तरह फसल में नुकसान की संभावना कम होती है और गेहूं का 100 फ़ीसदी उत्पादन लेने में भी खास मदद मिलती है।
कीड़े मकोड़े और बीमारियों की रोकथाम : जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का नतीजा है कि आज हमारी फसलें कीड़े-मकोड़े और बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। कई बार मिट्टी की कमियां भी फसल पर हावी हो जाती है। गेहूं की फसल में स्थानीय लेवल पर भी बीमारियों का प्रकोप देखने को मिलता है।इन दिनों गेहूं की फसल में माहू कीट और दीमक का खतरा मंडराता है। यह दोनों ही फसल के उत्पादन को लगभग आधा कर सकते हैं, इसलिए समय पर इनकी रोकथाम करना बेहद जरूरी है। कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर किसान सुरक्षित कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं।माहू कीट के नियंत्रण के लिए एक्सपर्ट्स इमिडाक्लोप्रिड दवा की 1 लीटर मात्रा को 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह देते हैं। वहीं दीमक के प्रकोप को दूर करने के लिए क्लोरोपायरीफॉस का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए कृषि विशेषज्ञों से भी संपर्क कर सकते हैं।
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