आम की खेती कैसे की जाए? आइए चर्चा करें..
सभी फलों का राजा आम को कहा जाता है। आम की भारतीय मार्केट में काफी ज्यादा मांग है। बागवानी खेती को प्रोत्साहन देने के लिए इसके बारे में जानना जरूरी है। बाजार में बागवानी उत्पादों की मांग को देखते हुए बागवानी खेती से भारतीय किसानों को काफी लाभ होगा। स्वास्थ्य के हिसाब से देखा जाए तो बाजार में फलों की मांग हमेशा देखने को मिलती है। आज हम बागवानी खेती के संबंध में आम की खेती के बारे में आपको बताएंगे और आम की खेती के तरीकों के बारे में बताएंगे।
जानिए, क्यों आम की खेती करनी चाहिए?
गर्मी के मौसम में जल की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बागवानी खेती में आम की खेती करना फायदेमंद साबित होता है। शुष्क भूमि पर भी आम की खेती आसानी से की जा सकती है। आम की खेती के और भी लाभ हैं। आम के सभी भाग उपयोगी होते हैं। देखा जाए तो इसकी लकड़ियां भी महंगी बिकती हैं और आम के पत्ते हिंदू धर्म में पूजा पाठ में काम आते हैं। साथ ही इससे हमें स्वादिष्ट फल प्राप्त होते हैं। आम की लकड़ियों से फर्नीचर बनाए जा सकते हैं। इसके अलावा जब तक आम के पेड़ फलयुक्त न हो जाए तब तक हम बगीचे में अन्य फसलों की खेती भी कर सकते हैं और फल प्राप्त होने के बाद आम से एक अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।
भारत में बागवानी खेती: आम की खेती
अपने देश में सर्वाधिक पसंद किए जाने वाले फलों में आम सबसे पहले हैं। सभी राज्यों में आम की खेती की संभावनाएं हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य की जलवायु आम के लिए सबसे अनुकूल है। अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर भारत में आम पहले आता है, इसी वजह से बाजार में आम पहले ही देखने को मिल जाता है। भारत के छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आम की खेती की संभावनाएं ज्यादा हैं।
प्रकृति अनुकूलित फसल: आम की बागवानी
पर्यावरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में आम की खेती करने का विचार एक अच्छा विचार है। पर्यावरण के अनुरूप जल संरक्षित के साथ ही आसपास की वायु भी स्वच्छ होगी क्योंकि पौधे आसपास के वातावरण को स्वच्छ कर देते हैं। साथ ही भूजल स्तर और मृदा संरक्षण का स्तर भी अच्छा होगा। अगर आर्थिक रूप से देखा जाए तो आमदनी भी बढ़ा पाएंगे। आम की खेती करने के तरीकों, रोग समाधान आदि के बारे में भी जानेंगे।
आम की खेती करने के तरीके
आम की खेती कैसे करें इसके तरीके और प्रक्रिया को इस ब्लॉग द्वारा समझेंगे और जानेंगे।
- सबसे पहले आम की फसल के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करें।
- जहां आम की खेती करना हो वहां सिंचाई के साधन भी विकसित करें।
- बागवानी शुरू करने से पहले बाजार में आम की बेहतरीन किस्म का चयन करें।
- आम का बगीचा एक ही बार तैयार किया जाता है, तो आम की सबसे उन्नत किस्म का उपयोग करके ही आम का बगीचा तैयार करें।
- आम की खेती जहां की जाए, उसको सुरक्षित रखने का प्रबंध करें, जैसे कंटीले तारों का इस्तेमाल करें और जानवरों, चोरों से सुरक्षा करें।
आम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन
- सभी प्रकार की मिट्टियों में आम की खेती संभव है। थोड़ी शुष्क या कड़ी भूमि में भी आम का बगीचा लगाया जा सकता है। लेकिन दोमट मिट्टी आम के लिए सबसे उपयुक्त है।
- यदि आम के बगीचे के लिए चयनित जमीन कारखानों, ईंट भट्टों या चिमनियों के पास है तो ऐसे में वहां खेती न करें। इससे फसल प्रभावित होंगी क्योंकि प्रदूषित वातावरण में आम की खेती प्रभावी नहीं है।
- आम की खेती में बूंदा बांदी से की गई सिंचाई पेड़ को अधिक फायदा देती है। आंशिक रूप से सिंचाई होना चाहिए। यदि संभव हो तो ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को ही बगीचे में इंस्टॉल करें। ताकि पेड़ की अधिक प्रभावी सिंचाई हो सके।
- बेहतर जल निकास का प्रबंध भी होना चाहिए। वर्षा के मौसम में पानी इकट्ठा न हो इसका खास ख्याल रखा जाना चाहिए।
- जहां पानी बरसने की संभावना न्यूनतम हो, ऐसे क्षेत्र का चयन करें, जिससे फसल पर सकारात्मक प्रभाव हो।
आम की बुआई के लिए उचित मौसम
- अगर आम की बागवानी के लिए उचित मौसम देखा जाए तो आम की बुआई जून माह में करना सर्वोत्तम रहता है। इसके लिए गड्ढे तैयार किए जाते हैं। जब वर्षा हो जाए, उसके बाद 4 से 6 इंच के गड्ढे तैयार कर लें।
- यदि सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन हों, तो आम के रोपण के लिए फरवरी और मार्च का महीना उपयुक्त होता है।
- न्यूनतम सिंचाई में आम की खेती की जाती है, इसलिए संपूर्ण वर्षा के अवधि में आम की रोपाई नहीं करें। 15 जुलाई से लेकर 20 अगस्त के बीच आम का रोपण कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह संपूर्ण वर्षा का मौसम है। यदि पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध हो, तो ऐसे में फरवरी मार्च के महीने में आप आम का रोपण कर सकते हैं। यह समय आपकी रोपाई हेतु उपयुक्त है।
आम की बागवानी की प्रक्रिया
- आम के बाग लगाने हेतु रोपण प्रक्रिया से पूर्व ही जमीन की सफाई समुचित तरीके से करें।
- आम के फलोद्यान में पौधों से पौधों की दूरी का ध्यान रखें। जिस-जिन जगहों पर पेड़ लगाने हैं, उसे रेखांकित करके न्यूनतम 10 से 12 मीटर की दूरी पर लगाएं।
- आकार को ध्यान में रखते हुए रोपाई के लिए हमेशा 1×1×1 मीटर आकार के गड्ढे खोदें।
- ध्यान रहे आम की बागवानी में रोपाई के बाद भी पौधों में प्रक्रिया अनुसार खाद और उर्वरक डालते रहें। हर वर्ष उचित मात्रा के अनुसार पौधों को पोषक तत्व व उर्वरक डालना आवश्यक है।
- खाद और उर्वरक के लिए वर्षा ऋतु के पूर्व जून माह में प्रति गड्ढा 50 किलोग्राम गोबर खाद या जैविक खाद डालें। जैविक खाद या जैविक खाद उपलब्ध न हो तो गोबर खाद का उपयोग हर 6 महीने पर करते रहें। 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट एवं 750 ग्राम पोटाश और 50 ग्राम क्लोरोपायरीफ्रांस की मात्रा मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर भर देना चाहिए। जून एवं अक्टूबर माह में इन खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल करना बेहतर होगा।
- उपयुक्त समय आने पर ही गड्ढे में एक उन्नत किस्म के आम के पेड़ का रोपण करें।
- ड्रिप सिंचाई उपकरण पर सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर सब्सिडी प्रदान की जा रही है, इसलिए बूंदाबांदी वाली सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई उपकरण को लें। वर्षा ऋतु समाप्त होने के 7 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
आम की विभिन्न किस्मों के बारे में जानकारी
आम की किस्मों को तीन भाग में बांटा जा सकता है:
- शीघ्रफलन किस्म – इस किस्म में वो आते हैं जो तेजी से विकसित होकर फल देने योग्य बनते हैं। उदा. बॉम्बे ग्रीन, गुलाबखस, लंगड़ा, बैगनफली, दशहरी, तोतापरी आदि।
- मध्यमफलन किस्म – आम की दूसरी किस्म मध्यम फलन किस्म है। जो शीघ्रफलन किस्म से थोड़ा कम तेजी से विकसित होकर फल देने योग्य बनती है। उदा. अल्फांजो, मल्लिका, आम्रपाली, हिमसागर, केशर, सुंदरजा आदि।
- मंद फलन किस्म – यह देर से फलने वाली किस्में हैं। उदा. फजली और चैंसा।
प्रसंस्करण वाली किस्मों में अल्फांजो, बैगनफली, तोतापरी आदि हैं। सभी किस्म अपनी अलग-अलग विशेषताएं रखती हैं।
आम में लगने वाले रोग और उनका समाधान
आम में लगने वाले रोगों के बारे में जानकारी लेते हैं जो फसल पर अपना गहरा और नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनका समाधान भी आवश्यक है।
- मैंगो हॉपर या तेला रोग – आम के रोगों में से मैंगो हॉपर एक रोग है, इस रोग में भूरे कीट पेड़ को चूस कर खोखला कर देते हैं। समाधान – मोनोक्रोटोफ्रांस का छिड़काव हर 7 दिन में दो या तीन बार करें।
- एंथेक्नोज – पेड़ पर कभी-कभी चकत्ते जैसा गहरा रंग का बनना और छिद्र होना। समाधान – इस समस्या से निजात के लिए हर 15 दिन पर 3:3:50 का बोर्डो मिक्सचर का छिड़काव जरूरी है।
- चूर्णी फफूंदी – इस रोग में फफूंद लग जाता है, छोटी टहनियों, फल फूल और पत्तियों पर सफेद भूरे रंग का फफूंद उसे खोखला कर देता है। आम का प्रभावित भाग भूरा होकर सूख जाता है। समाधान – 15 दिन के अंतर पर 0.2% गंधक का छिड़काव होना चाहिए।
- मीलीबग रोग – फसल में लगने के बाद ये झुंड की तरह रस चूसते हैं और फसल को नुकसान पहुंचा देते हैं। समाधान – 0.03 प्रतिशत पेराथियॉन का छिड़काव करना चाहिए।
- बंधा रोग – जिसमें पत्तियां छोटी होकर गुच्छे जैसा आकार बना लेती हैं। समाधान – प्रभावित भाग की छटाई करते हुए एन. ए. ऐ का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल का छिड़काव करें।
फलों को तोड़ने का कार्य और रखरखाव
- फलों के लिए उपयुक्त जगह हो, फलों को हमेशा हवादार जगहों पर रखना चाहिए।
- फलों की तुड़ाई के बाद फलों को अच्छे से साफ कर लें।
- फलों को थोड़े डंठल के साथ तोड़ना चाहिए।
- फलों के स्टोरेज के लिए प्लास्टिक की जगह लकड़ी के बक्से का इस्तेमाल करें।
- फलों की अच्छी तरह छटनी करें और फलों को उनकी आकार के अनुसार अलग-अलग रखें।
- जब फलों को तोड़े तब फलों को नीचे न गिरने दें।
- उत्पाद खराब न हों, इसके लिए हवादार कार्टून में हमेशा सुखी पत्तियां या भूसे डालकर ही आम को बंद करें।