लीची की खेती से संबंधित जानकारी
हमारे देश में कई प्रकार की खेती की जाती है जिसमें बागवानी, दलहनी और तिलहनी सभी प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। वैसे ही लीची की खेती भारत में कई स्थानों पर की जाती है। लीची बहुत ही स्वादिष्ट फल होता है। लीची एक उष्णकटिबंधीय फल है। लीची का वैज्ञानिक नाम लीची चिनेंसिस है। लीची सोपबैरी परिवार का सदस्य है। लीची मूल रूप से चीन का फल है और लीची की खोज दक्षिण चीन में हुई थी। लीची सामान्य रूप से भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलिपींस, उत्तरी वियतनाम और दक्षिण ताइवान में पाया जाता है। लीची की पैदावार की बात करें तो चीन के बाद दूसरे नंबर पर भारत का स्थान आता है। आइए, इससे संबंधित जानकारी प्राप्त करें।
देश में लीची की खेती से संबंधित राज्य
हमारे देश में लीची की खेती बढ़ती हुई मांग को देखते हुए कई राज्यों में की जाने लगी है किंतु पहले भारत में लीची की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर में होती थी किंतु औरों की खेती होने लगी हैं जैसे – पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और उत्तरांचल आदि।
लीची में पाए जाने वाले पोषक तत्व
लीची में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। लीची पानी का सबसे अच्छा स्रोत है। लीची के सेवन से इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है। लीची में पाए जाने वाले पोषक तत्व इस प्रकार हैं जैसे पोटैशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, मैंगनीज, तांबा, फोलेट, नियासिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन C और B6 आदि।
लीची हमारे शरीर के लिए किस तरह से फायदेमंद है?
लीची के सेवन से इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है। लीची हमारे शरीर और पेट को ठंडक प्रदान करती है। लीची के सेवन से डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं होती है क्योंकि लीची का फल पानी की कमी दूर करता है। गर्मी में लीची खाने से उल्टी और दस्त जैसी समस्या दूर होती है। लीची में पाए जाने वाले पोषक तत्वों से पाचन तंत्र मजबूत होता है। लीची में भरपूर खनिज पाया जाता है जो पाचन को मजबूत बनाता है।
नहीं करें लीची का अधिक सेवन
लीची का जरूरत से अधिक सेवन कई समस्याएं भी पैदा कर सकता है। लीची का अधिक सेवन गले में खराश और दर्द पैदा करता है। लीची में चीनी अधिक होती है जिससे मोटापा बढ़ जाता है। लीची का अधिक मात्रा में सेवन गठिया के मरीजों के लिए हानिकारक होता है। इसके अधिक मात्रा में खाने से अर्थराइटिस की समस्या हो जाती है।
लीची का पौधा कैसा होता है?
लीची का पौधा एक मध्यम ऊंचाई का पेड़ होता है जो कि सदाबहार पेड़ों की श्रेणी में आता है। लीची के पौधे की लंबाई 15 से 20 मीटर होती है। लीची के पौधे की ऑल्टर्नेट पिनेट पत्तियां की लंबाई लगभग 15 से 25 सेंटीमीटर होती है और पत्ते उज्ज्वल और ताम्र वर्ण के होते हैं तथा जब पूर्ण रूप ले लेते हैं तब हरे रंग के हो जाते हैं।
लीची के पौधे के फूल आकार में छोटे और सफेद हरे या सफेद पीले वर्ण के होते हैं पुष्प पेनिकल पर लगते हैं जिसकी लंबाई 30 सेंटीमीटर होती है।
लीची के पौधे के फल की लंबाई 3 से 4 सेंटीमीटर होती है तथा छिलका लाल गुलाबी या मैरून का होता है तथा छिलका दानेदार होता है। इस छिलके को सरलता पूर्वक हटाया जा सकता है।
फल के अंदर एक परत होती है लीची के फल के छिलके के अंदर जो परत होती है वह मीठा और गुदा दूधिया श्वेत रंग का होता है जो कि विटामिन C से परिपूर्ण होती है जो कि एकल भूरे रंग के बीज को ढके हुए होती है।
लीची के बीज का आकार ओवल आकार का होता है और यह बीज खाने योग्य नहीं होता है इसका माप 2 से 1.5 होता है।
लीची के फल फूल आने के लगभग 3 माह बाद पकते हैं यह फल जुलाई से अक्टूबर के माह में आते हैं।
लीची की खेती के लिए जलवायु का निर्धारण
लीची की खेती में जलवायु की बात करें तो लीची की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु समशीतोष्ण जलवायु होती है। जनवरी से फरवरी के माह में मौसम साफ रहता है और तापमान में वृद्धि और जलवायु शुष्क होती है इसलिए लीची की खेती इन माह में उपयुक्त तरीके से की जा सकती है। अप्रैल से मई के माह में सामान्य वातावरण होने पर तथा आद्रता रहने पर बिजी के फलों का विकास और गुणवत्ता में सुधार आता है किंतु वर्षा होने से इसके फलों का रंग प्रभावित होता है।
लीची के पौधे में अधिक मंजर लगते हैं जिससे इसमें ज्यादा फल और फूल आते हैं।
लीची की खेती के लिए मिट्टी का निर्धारण
लीची की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी होना चाहिए जिससे जलभराव की समस्या ना हो। लीची की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी बलुई दोमट मिट्टी होती है इसके अतिरिक्त लीची की खेती लेटेराइट मिट्टी में भी की जा सकती है क्योंकि लीची की फसल की अम्लीय मिट्टी में उपयुक्त रूप से होती है। मिट्टी का pH मान 5 से 7 के मध्य हो।
लीची की विभिन्न किस्में
लीची की विभिन्न किस्में हैं जैसे देशी, रोज, डी-रोज, ग्रीन, शाही, स्वर्ण, कसबा, अझौली, त्रिकोलिया और सेंटेड आदि लीची की उन्नत किस्में हैं।
खेत तैयार करने का तरीका
लीची के खेत तैयार करने के लिए खेत की 2 बार तिरछी जुताई करना चाहिए। खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें। खेत में उचित जल निकास होना चाहिए।
लीची की खेती में बुवाई कैसे की जाए?
लीची की बुवाई के लिए पौधे 2 वर्ष पुराने लें। लीची की बुआई अगस्त से सितंबर माह में करना चाहिए। पंजाब में लीची की बुआई कई बार नवंबर में की जाती है।
लीची की खेती में पौधरोपण कैसे किया जाए?
लीची के पौधे का रोपण करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। लीची के पौधे के रोपण के लिए जब खेत तैयार करें तब अप्रैल से मई के माह में खेत में गड्ढे तैयार कर लेना चाहिए। तैयार किए हुए गड्ढों में खाद मिला देना चाहिए जिसके लिए 20 से 25 किलोग्राम सड़ी हुई खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही 2 किलोग्राम बोन मील और 300 ग्राम रेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल करें।
गड्ढे तैयार करने के लिए अप्रैल से मई का समय उचित होता है और मानसून की बारिश शुरू होते ही गड्ढों में रसायन को मिलाएं। गड्ढों की मिट्टी बारिश के पानी से दबकर समतल हो जाए तब इसमें पौधों को रोपना चाहिए। रोपे गए पौधों के आसपास थालें बनाकर इन थालों में समय-समय पर खाद और सिंचाई करना चाहिए। पौधों और गड्ढों की क्रमशः दूरी और गहराई इस प्रकार होनी चाहिए कि पौधों की आपसी दूरी 10 मीटर और गड्ढे की लंबाई, चौड़ाई और गहराई 90 सेंटीमीटर रखें।
लीची का परागण शहद की मक्खियों, कीड़ों और पतंगों द्वारा होता है इसलिए 20 से 25 शहद की मक्खियों के डिब्बे प्रति हेक्टेयर में रख दिए जाते हैं ताकि परागण हो सके।
लीची के साथ कौन सी अंतरवर्ती फसलों की बुवाई करें
लीची एक देर से उगने वाली फसल है। लीची के पौधे को बड़ा होने में 7 से 10 वर्ष का लगता है इसलिए प्रारंभ के 3 से 4 वर्ष तक इसके साथ कुछ अंतरवर्ती फसलें लगाई जा सकती हैं। इन अंतरवर्ती फसलों से आमदनी तो बढ़ती ही है साथ ही मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है और खरपतवार को भी कम किया जा सकता है। कुछ पौधे जो तेजी से होते हैं जैसे आलू बुखारा, किन्नू और आड़ू आदि। इन फसलों के अतिरिक्त सब्जियों और दालों को भी अंतरवर्ती फसल के रूप में लीची के साथ उगाया जा सकता है। लीची का बगीचा पूर्ण रूप से विकसित होने पर इन अंतरवर्ती फसलों को हटा दें।
लीची के नए पौधों की देखभाल करें
लीची के नए पौधों को गर्म और ठंडी हवा से बचाना चाहिए। इसके लिए लीची के पौधे के आसपास आम और जामुन जैसे लंबे पेड़ लगा दें या 4 से 5 वर्ष के हवा रोधक पेड़ों को लगा दें ताकि हवा से पौधों को बचाया जा सके। इसके अतिरिक्त जंतर की फसल लगाने से हमें फरवरी के महीने में बीज भी प्राप्त हो जाता है।
लीची की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
लीची की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किस मात्रा में करें, इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके लिए पौधे की वृद्धि के अनुसार खाद एवं उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें, जैसे:
• 1 से 3 वर्ष: 10 से 20 किलो सड़ी हुई खाद, 60 से 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 150 से 500 ग्राम यूरिया, 100 से 600 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट।
• 4 से 6 वर्ष: 25 से 40 किलो सड़ी हुई खाद, 200 से 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 500 से 1000 ग्राम यूरिया, 750 से 1250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट।
• 7 से 10 वर्ष: 40 से 50 किलो सड़ी हुई खाद, 300 से 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 1000 से 1500 ग्राम यूरिया, 1500 से 2000 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट।
• 10 वर्ष से अधिक: 60 किलो सड़ी हुई खाद, 600 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 1600 ग्राम यूरिया, 2250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट।
लीची की खेती में सिंचाई कैसे की जाए?
लीची की खेती में प्रारंभ में सिंचाई करना आवश्यक है। खाद डालने के पश्चात भी एक बार सिंचाई करनी चाहिए। जब लीची के पौधे पर फल बनने लगे तब सिंचाई अवश्य करनी चाहिए ताकि फलों में दरारें न आएं और वे पूर्ण रूप से विकसित हो सकें।
• फल बनने के समय: सप्ताह में दो बार सिंचाई करें।
• गर्मी में पुराने पौधे: सप्ताह में एक बार सिंचाई।
• गर्मी में नए पौधे: सप्ताह में एक से दो बार सिंचाई।
• कोहरे से बचाव: नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर के पहले सप्ताह में सिंचाई आवश्यक।
लीची की खेती में कटाई और छंटाई का कार्य
शुरुआती समय में पौधे को अच्छा आकार देने के लिए कटाई जरूरी होती है। लीची के पौधों के लिए छंटाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती, केवल फलों की कटाई के बाद नई टहनियां लाने के लिए हल्की छंटाई करें।
लीची की फ़सल में कटाई का कार्य
लीची के फल के पकने के बाद ही उसकी कटाई करें। कटाई के लिए फल की सतह समतल होनी चाहिए और रंग हरे से गुलाबी होना चाहिए। कटाई हमेशा कुछ टहनियों और पत्तों के साथ की जाती है।
• स्थानीय बाजार: पूरी तरह पकने पर तुड़ाई करें।
• दूर के स्थानों के लिए: फलों के गुलाबी होने पर ही तुड़ाई कर लें।
लीची की खेती में पैकिंग और भंडारण
तुड़ाई के बाद लीची की पैकिंग और भंडारण किया जाता है। आकार और रंग के अनुसार फलों को छांटा जाता है, और खराब फलों को हटा दिया जाता है।
• पैकिंग: टोकरियों में हरे पत्ते बिछाकर करें।
• भंडारण:
भंडारण समय: 8 से 12 सप्ताह तक
तापमान: 1.6 से 1.7 डिग्री सेल्सियस
नमी: 85% से 90%
लीची से प्राप्त उपज
प्रारंभ में उत्पादन कम होता है, लेकिन जैसे-जैसे पौधा विकसित होता है, उपज बढ़ती है।
• 15 से 20 वर्ष पुराने पौधे: प्रति वर्ष प्रति पेड़ 70 से 100 किलोग्राम फल।
लीची का बाजार भाव
इंडिया मार्ट पर A ग्रेड लीची की कीमत प्रति किलो 170 रूपये तक है।