जीरे के भाव सातवें आसमान पर, जीरा का भाव 48 घंटों में 61,000 पार, इतिहास में कभी इतना महंगा नहीं बिका जीरा

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गर्म तेल में डालते ही रंग बदलने वाले जीरे में अब सोने पर सुहागा हो गया है। मेड़ता मंडी में दो दिन पहले अपने रिकॉर्ड भाव 50 हजार रुपए प्रति क्विंटल पहुंचने वाले जीरे ने बुधवार को नए रिकॉर्ड बनाए और पहली बार यह 61 हजार 351 रुपए के भाव से बिका।

नागौर जिले के धनाणा गांव के किसान पतराम चौधरी का जीरा जब इस भाव पर बिका तो उनकी आंखों में भी सोने सी चमक थी। मेड़ता मंडी के कारोबारियों से लेकर किसानों तक को इस पर यकीन नहीं हुआ। पिछले एक साल में जीरे के भाव करीब डेढ़ गुना बढ़ चुके हैं।पिछले साल 11 अप्रैल को जीरे के भाव 25 हजार रुपए प्रति क्विवंटल थे और आज यह 61 हजार से अधिक हो चुके हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अभी भाव और बढ़ेंगे।

जीरे के भावों में लगातार आ रही इस तेजी का नतीजा यह रहा कि बुधवार को मेड़ता मंडी में पैर रखने की जगह नहीं थी। यहां 50 हजार से अधिक जीरे की बोरियों की आवक हुई।आपको बता दें कि घरों में चुटकी भर काम आने वाला जीरा खेतों में बहुत मुश्किल और मेहनत से पैदा होता है। बहुत कम होता है, जब मौसम भी साथ दे जाए और किसानों को इसके पूरे दाम भी मिल जाएं। इसीलिए यह भी कहा जाता है कि जीरा ना ही उगाया जाए तो अच्छा, लेकिन अब जीरे ने ये मिथक तोड़ दिए हैं। इस बार जिन किसानों ने जीरा उगाया, उन्हें यह लखपति बना रहा है।

…तो आइए जानते हैं कि कसूरी मेथी के लिए प्रसिद्ध नागौर जिले का जीरा इस बार दुनिया में कैसे अपनी महक बिखेर रहा है…

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आप ऊपर जिनकी फोटो देख रहे हैं, ये मेड़ता के पास जनाणा गांव के किसान पतराम चौधरी हैं। पतराम हमेशा से जीरे की खेती करते आए हैं। कभी इन्हें इसके 20 से 25 हजार से अधिक के भाव नहीं मिले। इस साल भी इन्होंने पांच बीघा जमीन में जीरे की बुवाई की। इसमें पांच क्विंटल जीरा हुआ।इस बार पतराम चौधरी का मौसम ने भी साथ दिया और किस्मत ने भी। जमीन पर अच्छी पैदावार हुई तो भाव भी आसमान छूने लगे। बुधवार को वे अपनी फसल लेकर मेड़ता मंडी पहुंचे।सवेरे से भावों की बोली शुरू हुई और पतराम चौधरी का जीरा आखिरकार सबसे ऊंची बोली 61 हजार 351 रुपए में बिका। इससे उन्हें तीन लाख से अधिक की आय हुई जबकि खर्च करीब तीस हजार रुपए का हुआ।

मंडी में सोमवार यानी 10 अप्रैल को हरियाढाणा के किसान नोपराम ने अपना तीन क्विंटल जीरा 50 हजार क्विंटल के भाव से बेचा था। जो उस दिन का रिकॉर्ड था।अनोपराम बताते हैं कि मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीरा हमें इतने अच्छे भाव देगा। बड़ी मुश्किल से यह फसल तैयार होती है। पूरी सर्दी रात-रात भर जागकर इसकी सिंचाई करनी पड़ती है। जरा सी तेज ठंड हो जाए या कोई रोग लग जाए तो पूरी फसल खराब हो जाती है, इसलिए कई बार मन भी करता था कि जीरे की खेती ही छोड़ दूं, लेकिन कई सालों से यह करते आ रहे हैं तो मन भी नहीं मानता था।

कई बार नुकसान झेला है, अब जाकर मेहनत का परिणाम मिला है। बाजार एक्सपर्ट मुकेश प्रजापत बताते हैं कि जीरा जिस तरह से छलांग लगा रहा है, वह चौंकाने वाला है, पिछले साल यह 18 से 20 हजार रुपए के भाव था। एक बार 25 हजार तक भी पहुंचा, लेकिन एक ही साल में यह दोगुना हो गया। ऐसी तेजी तो गोल्ड में भी नहीं देखी।

दो दिन में ही 11 हजार से अधिक का उछाल

अभी मार्च के दूसरे सप्ताह की ही बात है। मेड़ता मंडी में नए जीरे की आवक होने लगी थी। अप्रैल आते-आते यह भाव 34 हजार रुपए प्रति क्विंटल पहुंचे, तब किसी ने सोचा नहीं था कि जीरा अभी और कितना महकेगा। इसके बाद जीरे के भाव ने जो रफ्तार पकड़ी, 10 अप्रैल को वो सीधे 50 हजार पर जाकर रुका।बाजार के जानकारों ने पहले ही बता दिया था कि यह भाव यहीं नहीं रुकेंगे। उनकी बात सही साबित हुई और 11 अप्रैल को छुट्‌टी के बाद जब पहली बार मंडी खुली तो दोपहर होते होते जीरे ने आसमान छू लिया और इसके भाव 61 हजार से अधिक हो गया।स्थिति यह थी कि बड़ी मात्रा में जीरा आने से मंडी में कहीं पैर रखने की जगह नहीं बची। 50 बीघे में फैली मंडी छोटी पड़ गई। मेड़ता मंडी इतिहास में पहली बार एक दिन में इतने अधिक भाव हुए हैं।

जीरे के भाव बढ़ने के 4 सबसे बड़े कारण

  1. विदेशों में मौसम की मार: टर्की-सीरिया में बेमौसम बारिश की वजह से बड़े पैमाने पर जीरा खराब हो गया।
  2. देश में भी मौसम की मार: बेमौसम बारिश से 20 से 30 फीसदी जीरे की फसल को नुकसान हुआहै।
  3. जीरे की डिमांड: फसल कमजोर होने से सप्लाई घटी तो वर्ल्ड और डोमेस्टिक मार्केट में डिमांड बढ़ गई है। डिमांड बढ़ी तो दाम भी बढ़े।
  4. शेयर बाजार: जीरे की डिमांड बढ़ने से शेयर बाजार में भी लगातार जीरे में तेजी चल रही है।

जीरे की तेजी बनी रहेगी

मेड़ता मंडी के जीरा व्यापारी सुमेरचंद जैन ने बताया कि आगामी दिनों में भी जीरे के भावों में स्थिरता बनी रहेगी। मामूली गिरावट के साथ ही भाव स्थिर रहेंगे। बड़ी गिरावट देखने को नहीं मिलेगी। आगे जीरे से किसानों को अच्छा फायदा होना तय है।एक्सपर्ट मुकेश प्रजापत ने बताया कि जीरा का उत्पादन कम है, ओल्ड बैलेंस भी कम है। एक्सपोर्ट अच्छा है, इसलिए भावों में आगामी दिनों में भी ऐसी ही तेजी बनी रहेगी।

समझिए… इस सीजन जीरे की बुवाई से लेकर आवक का पूरा गणित

सहायक निदेशक कृषि विस्तार मेड़ता रामप्रकाश बेड़ा ने बताया कि इस बार कृषि उपज मंडी मेड़ता में 45,300 हेक्टेयर क्षेत्र में जीरे की बुवाई हुई थी। फसल खराब होने के बावजूद 3.50 लाख क्विंटल जीरे का उत्पादन माना जा रहा है।ऐसे में 1 मार्च से 10 अप्रैल तक, यानी सिर्फ 24 दिन में 1 लाख क्विंटल जीरा मंडी में आया है। वहीं 1 जनवरी से अब तक मंडी में 1.60 लाख क्विंटल जीरा आया है, जिससे अब तक करीब 4 अरब का कारोबार हुआ है।प्रदेश का 80% जीरा उत्पादन सिर्फ पश्चिमी राजस्थान में । इस साल राजस्थान में 5.79 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जीरे की फसल बोई गई थी। अकेले पश्चिमी राजस्थान में 80% जीरे का उत्पादन होता है। प्रदेश में जालोर, जोधपुर, नागौर, पाली, बीकानेर, जैसलमेर, श्रीगंगानगर जीरे की बुवाई और उत्पादन में आगे हैं।यहां का जीरा महकदार और उच्च क्वालिटी का होता है।

।जालोर, पाली, जैसलमेर, जोधपुर और बाड़मेर के ज्यादातर किसान अपना जीरा बेचने के लिए गुजरात की ऊंझा मंडी जाते हैं, जो देश की सबसे बड़ी मंडी है, लेकिन मेड़ता में जीरे की इस फिफ्टी ने इंडिया की सबसे बड़ी जीरा मंडी ऊंझा (गुजरात) को भी पीछे छोड़ दिया। वहां सोमवार को जीरे का अधिकतम भाव 45 हजार रुपए प्रति क्विंटल रहा। मारवाड़ में सदियों से ‘जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो…’ गीत प्रचलित है। यानी यह एक प्रकार का दर्द है जो एक पत्नी अपने पति को कहती है…।दरअसल, जीरे की बुवाई सर्दी में होती है। कड़कड़ाती ठंड में रात में इसकी सिंचाई करनी होती है। ऐसे में किसान की पत्नी यही चाहती है कि इससे तो अच्छा है कि हम जीरा ना ही उगाएं।

एक हेक्टर में 60 हजार लागत, 9-10 क्विंटल उत्पादन संभव

1 हेक्टेयर क्षेत्र में जीरे की बुवाई करने पर करीब 60 हजार रुपए का खर्चा आता है। एक बीघा में डेढ़ से दो क्विंटल उत्पादन होता है। ऐसे में एक हेक्टेयर में जीरे की 8 से 9 या फिर अच्छा माैसम होने पर 10 क्विंटल तक पैदावार भी हो सकती है।भारत दुनिया का सबसे बड़ा जीरा उत्पादक देश है। यहां से चीन, सिंगापुर, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका सहित अन्य यूरोपीय और अरब देशों में जीरा एक्सपोर्ट होता है। इसके अलावा जीरे में कई तरह के रोग भी लग जाते हैं। जरा सी तेज ठंड भी इसे नुकसान पहुंचा देती है। राजस्थान में नवंबर महीने के पहले पखवाड़े से ही जीरे की बुवाई शुरू हो जाती है। मार्च के दूसरे पखवाड़े तक जीरे की कटाई शुरू हो जाती है।


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By Harry
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नमस्ते! मेरा नाम "हरीश पाटीदार" है और मैं पाँच साल से खेती बाड़ी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी, अनुभव और ज्ञान मैं अपने लेखों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाता हूँ। मैं विशेष रूप से प्राकृतिक फसलों की उचित देखभाल, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना, और उचित उपयोगी तकनीकों पर आधारित लेख लिखने में विशेषज्ञ हूँ।