ड्रैगन फ्रूट और गेंदा की सहफसली खेती से संबंधित जानकारी
कृषि क्षेत्र में नवाचार और समन्वित खेती पद्धतियों का महत्व दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ड्रैगन फ्रूट और गेंदा की सहफसली खेती ने एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है, जो न केवल किसानों की आय में वृद्धि कर रहा है, बल्कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भी सुधार ला रहा है। यह पहल भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIVR), वाराणसी और कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) द्वारा भदोही, देवरिया और कुशीनगर जिलों में शुरू की गई है, और इसने इन क्षेत्रों के किसानों को नई दिशा दी है।
सहफसली खेती : कुरौना गांव के किसान को मिली सफलता
भदोही जिले के कुरौना गांव के श्री सीमांत मिश्रा की सफलता इस मॉडल का जीवंत उदाहरण है। एम.एससी. (बागवानी) में डिग्री प्राप्त श्री मिश्रा ने कृषि में नवाचार की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। यह फैसला उन्होंने ICAR-KVK भदोही से मार्गदर्शन प्राप्त करने के बाद लिया, जब उन्होंने जाना कि ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए आदर्श जलवायु और सही कृषि पद्धतियां अपनाई जाएं, तो यह फल काफी लाभकारी हो सकता है।
जुलाई 2022 में, श्री मिश्रा ने 0.25 हेक्टेयर में 444 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए। इन पौधों के लिए उन्होंने मिर्जापुर से 488 कटिंग खरीदी थीं। हालांकि, पहले साल में पौधे फलने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन उन्होंने अंतरफसली खेती को अपनाया, जिसके तहत उन्होंने अपनी भूमि में गेंदा, धनिया, मिर्च, टमाटर, और कसूरी मेथी जैसी फसलों की बुवाई की। इससे न केवल पौधों के बीच का खाली स्थान उपयोग हुआ, बल्कि उनकी आय में भी बढ़ोतरी हुई।
गेंदा की खेती से आय में बढ़ोतरी
श्री मिश्रा ने अपनी सहफसली खेती के लिए 2000 गेंदा के पौधे खरीदे, जिन्हें उन्होंने वाराणसी के मोहनसराय क्षेत्र से ₹1 प्रति पौधा की दर से लिया। तीन महीने के भीतर, उन्होंने गेंदा के फूलों को ₹20-30 प्रति किलोग्राम के भाव में बेचना शुरू किया। इससे उन्होंने ₹25,000 की आय अर्जित की। इसके बाद, खेती की कुल लागत निकालने के बाद उन्हें ₹15,000 का शुद्ध लाभ हुआ, जो कि खेती के सफल होने का स्पष्ट संकेत था। इस बीच, उन्होंने घरेलू सब्जियों से भी ₹2000 की बचत की, जिससे उनका घरेलू खर्च भी कम हुआ।
इसके बाद, श्री मिश्रा ने अपने अनुभव से प्रेरित होकर नवंबर 2023 में 3500 गेंदा के पौधे और लगाए, और साथ ही अन्य फसलों जैसे टमाटर, मिर्च, धनिया भी उगाईं। इस बार, उन्होंने अच्छे गुणवत्ता वाले ड्रैगन फ्रूट के फल की बुवाई की, जिससे उनकी आय में और भी बढ़ोतरी हुई।
उन्नत कृषि पद्धतियों और कीट नियंत्रण उपायों का प्रभाव
इस सहफसली खेती को बढ़ावा देने के लिए ICAR-IIVR और ICAR-KVK भदोही के वैज्ञानिकों ने श्री मिश्रा को न केवल उन्नत कृषि पद्धतियों से परिचित कराया, बल्कि पोषण प्रबंधन और कीट नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण उपाय भी सुझाए। इन उपायों के कारण, उनकी फसलें न केवल अधिक और बेहतर गुणवत्ता वाली हुईं, बल्कि उन्हें किसी प्रकार के कीट और रोगों से भी बचाव मिला, जिससे उपज में और वृद्धि हुई।
श्री मिश्रा ने ड्रैगन फ्रूट और गेंदा के बीच अच्छे तालमेल को महसूस किया और इस पद्धति को सभी प्रकार की फसलों के लिए आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी खेती ने यह साबित किया कि सहफसली खेती में न केवल उच्च गुणवत्ता वाली उपज मिल सकती है, बल्कि एक स्थिर और अधिक लाभकारी आय का भी स्रोत बन सकती है।
आर्थिक समृद्धि और ग्रामीण युवाओं के लिए प्रेरणा
श्री मिश्रा की सफलता ने भदोही जिले के आसपास के गांवों के किसानों और युवाओं के बीच एक नई जागरूकता पैदा की है। उनके द्वारा अपनाई गई खेती पद्धति को देखते हुए, अन्य किसानों ने भी इस सहफसली मॉडल को अपनाना शुरू किया है। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हो रही है, बल्कि कृषि को एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में देखने का नजरिया भी बदल रहा है।
ICAR-IIVR और ICAR-KVK भदोही के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को दी गई तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण ने इस पूरे क्षेत्र में कृषि में नवाचार और स्वावलंबन की भावना को प्रोत्साहित किया है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया है, और अब वे अपनी कृषि को एक स्थिर और लाभकारी व्यवसाय के रूप में देख रहे हैं।
सहफसली खेती कृषि में नवाचार के लिए कदम
ड्रैगन फ्रूट और गेंदा की सहफसली खेती ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि कृषि में नवाचार और सही मार्गदर्शन मिलता है, तो किसान अपनी आय में कई गुना वृद्धि कर सकते हैं। यह मॉडल अब केवल भदोही जिले तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी किसानों के लिए एक आदर्श बन चुका है। समय की जरूरत है कि इस तरह के नवाचारों को देशभर में फैलाया जाए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकें।
ड्रैगन फ्रूट और गेंदा की सहफसली खेती अब किसानों के लिए एक स्थिर आय का स्रोत बनने के साथ-साथ संवर्धन और समृद्धि का प्रतीक बन चुकी है।