भारत की सबसे पुरानी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी सीएसए ने गेहूं की ऐसी फसल तैयार की है। जो 70 प्रतिशत कम पानी के बावजूद उग सकती है। इसे भविष्य में बढ़ती गर्मी और ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है।पूरे उत्तर भारत में धीरे-धीरे गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। वहीं, आने वाले कुछ वर्षो में तापमान में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। खेतों में फसलों की पैदावार पर भीषण गर्मी का सीधा असर पड़ता है। ऐसे में वैज्ञानिक इस खतरे से निपटने के लिए लगातार शोध कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों को इस बात की चिंता है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण फसलों की पैदावार में भी भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। इसी बीच भारत की सबसे पुरानी और बड़ी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में से एक सीएसए यूनिवर्सिटी ने गेहूं की ऐसी फसल तैयार की है। जो 70 प्रतिशत कम पानी के बावजूद उगने में सक्षम है।
इस बारे में यूनिवर्सिटी के वीसी आनंद कुमार सिंह ने बताया कि गेहूं प्रमुख फसलों में से एक है। 2023 में यह देश के कुल फूड प्रोडक्शन में 33% यानी 110 मिलियन टन से अधिक का योगदान दिया था। 2030 तक भारत में प्रति व्यक्ति गेहूं की खपत लगभग 74 किलो रहने का अनुमान है। जिस तरह से आबादी बढ़ रही है, ऐसे में 2050 तक गेहूं की मांग 140 मिलियन टन तक जा सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान के कारण फसलों को पर्याप्त पानी देना बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसे में यूनिवर्सिटी में गेहूं की ऐसी प्रजाती को विकसित किया गया है, जो कम पानी में भी बंपर पैदावर दे सकती है। इस पर लगातार शोध किया जा रहा है। इसी कम्र में गेहूं की ऐसी फसल को तैयार किया गया है। जिसमें केवल दो सिंचाई में भी अच्छी पैदावार होगी।
प्रति हेक्टेयर 2 टन से बढ़ेगी पैदावार
गेहूं की इस किस्म की फसल को तैयार करने में ट्रेडिशनल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसमें K0307 और K9162 किस्मों के बीजों को क्रॉस ब्रीडिंग से तैयार किया जाता है। इस किस्म की फसल को पूरी तरह से तैयार होने में चार महीने का समय लगता है। उन्होंने आगे बताया कि देश में फिलहाल प्रति हेक्टेयर 3.5 टन पैदावार होती है. लेकिन इस प्रजाति से गेहूं की पैदावार बढ़कर प्रति हेक्टेयर 5.5 टन तक हो जाएगी।
इस प्रकार की फसल की खेती से किसानों की आय भी दोगुनी होगी। यह बेहद कम नाइट्रोजन वाले उर्वरक में भी उगने में सक्षम है। जो इसे अपने समकक्षों से अलग करता है। कम पानी के बावजूद बंपर पैदावर होने के साथ ही बेमौसम बारिश और ओलों का भी इसपर कम असर पड़ता है और खराब होने के चांस भी कम होते हैं।
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