फलों को पकाने की नई तकनीक से किसानों को होगा फायदा : जानिए फलों को पकाने की नई तकनीक के बारे में

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फलों को पकाने की विधि: आधुनिक और पारंपरिक तरीके

पेड़ से जब फलों को तोड़ लिया जाता है, तब वे कुछ समय तक ताजे रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी गुणवत्ता पर असर पड़ता है और वे खराब होने लगते हैं। अगर इस बात का ध्यान रखा जाए तो किसानों और फल विक्रेताओं को नुकसान से बचाया जा सकता है। यदि मंडी क्षेत्र दूर हो या रास्ते में कोई समस्या हो, तो फल खराब हो जाते हैं और किसान को कम कीमत पर उन्हें बेचना पड़ता है। इस नुकसान से बचने के लिए एक विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान में कई ऐसी तकनीकी विधियाँ आ गई हैं, जिनसे फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, साथ ही उनकी गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाता है।

फलों को पकाने की कई विधियाँ हैं, लेकिन सबसे सरल और पारंपरिक विधि राइपनिंग विधि है, जिससे फल की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता और वे लंबे समय तक ताजे रहते हैं। इस तकनीक का उपयोग किसानों और दुकानदारों द्वारा फलों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है, जिससे उनके नुकसान को कम किया जा सकता है।

राइपनिंग विधि क्या है?

राइपनिंग विधि फलों को पकाने की एक पारंपरिक और सरल तकनीक है। इसमें फलों को पकाने के लिए छोटे-छोटे कोल्ड स्टोरेज चेंबर बनाए जाते हैं, जिनमें एथिलीन गैस छोड़ी जाती है। एथिलीन गैस के कारण फल जल्दी पकने लगते हैं और उनका स्वाद और रंग बदलने लगता है। इस विधि से पकाए गए फल जैसे केला, आम और पपीता आदि उच्च गुणवत्ता के रहते हैं और उनका स्वाद बेहतर होता है। इस विधि का उपयोग आमतौर पर जब फलों को समय से पहले पकाना हो, तब किया जाता है।

राइपनिंग विधि से फलों को कैसे पकाएं?

राइपनिंग विधि के माध्यम से फलों को पकाना एक आधुनिक और सुरक्षित तरीका है। यह विधि फलों को ताजे रखने के लिए अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है। इस विधि का उपयोग विशेषकर दुकानदार और व्यापारी करते हैं, ताकि फलों की गुणवत्ता बनी रहे और वे लंबे समय तक ताजे दिखें। राइपनिंग तकनीक के इस्तेमाल से फल जल्दी पकते हैं, लेकिन उनका स्वाद और गुणवत्ता किसी प्रकार से प्रभावित नहीं होती।

केले को पकाने की राइपनिंग विधि

राइपनिंग विधि से केले को पकाने का तरीका भी सरल है। पहले कच्चे केले को एक कोल्ड स्टोरेज चेंबर में रखा जाता है, जो डिब्बे के रूप में होता है। फिर उस चेंबर में एथिलीन गैस छोड़ी जाती है। इस गैस के प्रभाव से केले धीरे-धीरे पकने लगते हैं और उनका रंग बदलने लगता है। आमतौर पर 4 से 5 दिनों के अंदर केले पूरी तरह से पक जाते हैं। इसी प्रकार, आम और पपीते जैसे अन्य फलों को भी इस विधि से पकाया जा सकता है।

राइपनिंग विधि के लिए सरकारी सब्सिडी

राइपनिंग विधि का उपयोग करने पर किसानों को सरकार से सब्सिडी भी प्राप्त होती है। कोल्ड स्टोरेज चेंबर बनाने के लिए सरकार किसानों को लगभग 35% से 50% तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस सब्सिडी के माध्यम से किसानों को अपने खर्च को कम करने में मदद मिलती है और वे फलों को सुरक्षित तरीके से पकाकर बेहतर कीमत पर बेच सकते हैं।

वर्तमान में राइपनिंग विधि में तकनीकी परिवर्तन

हाल ही में, राइपनिंग विधि में तकनीकी सुधार किए गए हैं, जिनसे यह प्रक्रिया और अधिक प्रभावी हो गई है। अब, आधुनिक आटोमेटेड राइपनिंग चेंबर्स का उपयोग किया जा रहा है, जो एथिलीन गैस को नियंत्रित मात्रा में छोड़ते हैं और तापमान एवं आर्द्रता को भी स्थिर रखते हैं, जिससे फल तेज़ी से पकते हैं और उनकी गुणवत्ता बेहतर होती है। इन चेंबर्स में स्मार्ट तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पूरी प्रक्रिया की निगरानी आसानी से की जा सकती है।

इसके अलावा, अब स्मार्ट राइपनिंग सिस्टम के माध्यम से विभिन्न प्रकार के फलों के लिए उपयुक्त एथिलीन गैस और तापमान के स्तर को सेट किया जा सकता है, ताकि हर फल अपनी गुणवत्ता के अनुसार पक सके। इस तरह के सिस्टम का उपयोग किसानों और व्यापारियों द्वारा किया जा रहा है, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और फल की ताजगी दोनों में सुधार हुआ है।

कोल्ड स्टोरेज चेंबर का उपयोग अब केवल बड़े व्यापारियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि छोटे किसानों के लिए भी सस्ती योजनाओं के तहत ये तकनीक उपलब्ध हो रही है। सरकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता के द्वारा, अब कम लागत में अधिक फल पकाने की सुविधा उपलब्ध हो रही है।

फलों को पकाने के अन्य पारंपरिक तरीके

फलों को पकाने के कई परंपरागत तरीके भी हैं, जो अब भी प्रचलित हैं। इनमें से कुछ तरीके निम्नलिखित हैं:

  1. फलों को दबाकर रखना: कुछ समय के लिए फलों को दबाकर रखने से वे जल्दी पक जाते हैं और सुरक्षित भी रहते हैं। हालांकि, इस विधि से पकने में थोड़ा अधिक समय लगता है।
  2. फलों को कागज या कपड़े में लपेटकर रखना: जब फलों को अखबार या कपड़े में लपेटकर रखा जाता है, तो वे जल्दी पकते हैं और अच्छी गुणवत्ता बनाए रखते हैं।
  3. फलों को पुआल, भूसा, या अनाज के बीच दबाकर रखना: यह पारंपरिक तरीका भी है, जिसमें फल को पुआल या भूसे के बीच दबा दिया जाता है, जिससे फल जल्दी पकते हैं।
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