पपीता की खेती क्यों करें?
पपीते का फल अपने स्वाद और पोषण के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह कच्चा और पकाकर दोनों ही रूपों में उपयोग किया जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसकी खेती की जाती है, और पपीते में विटामिन A की भरपूर मात्रा पाई जाती है। यह फल विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो अपच की समस्या से जूझ रहे हैं, क्योंकि पपीते का सेवन अपच को ठीक करने में मदद करता है। इसके अलावा, पपीता पित्त को शमन करने और भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने में सहायक होता है, जिससे डॉक्टर भी बीमारियों के दौरान इसके सेवन की सलाह देते हैं।
पपीते में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है, जो त्वचा को नम रखने में मदद करता है। इसका उपयोग घरेलू सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है। कई लोग पपीते के गूदे को चेहरे पर लगाते हैं, जिससे त्वचा में निखार आता है और नमी बनी रहती है। इसके अलावा, पपीते का उपयोग सौंदर्य और उद्योग जगत में भी व्यापक रूप से होता है।
यदि पपीते की उन्नत खेती की जाए, तो यह कम लागत में अधिक मुनाफा दे सकती है। पपीते की खेती के साथ-साथ इसके बीच में अन्य अंत:वर्तीय फसलें जैसे मटर, मैथी, चना, फ्रेंचबीन, और सोयाबीन उगाई जा सकती हैं। हालांकि, मिर्च, टमाटर, बैंगन, और भिंडी जैसी फसलें पपीते के पौधों के बीच न उगाएं, क्योंकि इनसे पपीते के पौधों को हानि हो सकती है।
पपीते के स्वास्थ्यवर्धक गुण
पपीते का वानस्पतिक नाम Carica papaya है और यह Caricaceae परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य है। पपीता एक बहुलिंगी पौधा है, जिसमें तीन प्रकार के लिंग होते हैं: नर, मादा और दोनों लिंग एक ही पौधे पर होते हैं। पपीते में विटामिन A की भरपूर मात्रा होती है। कच्चे पपीते से पपेन (Papain) नामक एंजाइम निकाला जाता है। कच्चा पपीता हरा रंग का होता है, जबकि पकने पर यह पीले रंग का हो जाता है। पका हुआ पपीता मधुर, भारी, गर्म, स्निग्ध और सारपूर्ण होता है।
हमारे देश में पपीता की खेती से संबंधित राज्य
भारत में पपीते की खेती प्रमुख रूप से आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और मिजोरम में की जाती है। अब पूरे भारत में पपीते की खेती धीरे-धीरे बढ़ रही है, और इसे एक लाभकारी फसल के रूप में माना जाता है।
पपीता की उन्नत किस्में
पूसा मेजेस्टी
यह एक गाइनोडायसियस किस्म है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता और भंडारण क्षमता अधिक होती है। इसे पूरे भारत में उगाया जा सकता है। प्रति पेड़ उत्पादन लगभग 35 से 40 किलोग्राम होता है।
पूसा डोलसियरा
यह किस्म भी गाइनोडायसियस है, जिसमें नर और मादा दोनों प्रकार के फूल एक ही पौधे पर आते हैं। फल का स्वाद मीठा होता है और उत्पादन प्रति पेड़ 40 से 45 किलोग्राम होता है।
अन्य किस्में
- पूसा ड्वार्फ़: 40–45 किग्रा/पेड़
- पूसा नन्हा: 25–30 किग्रा/पेड़
- पूसा जॉयंट: 30–35 किग्रा/पेड़
पपीता की संकर किस्म: रेड लेडी-786
यह किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है। इसके पौधों में नर और मादा दोनों फूल एक ही पौधे पर होते हैं। इसमें पपायरिक स्काट वायरस का संक्रमण नहीं होता। यह केवल 9 महीनों में तैयार हो जाती है और भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है। इसमें मौजूद पोषक तत्व जैसे कैरोटिन, पोटैशियम, मैग्नीशियम, रेशा, और विटामिन A, B, C स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।
पपीता की खेती के लिए मिट्टी, जलवायु और तापमान का निर्धारण
पपीते की अच्छी खेती गर्म और नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहन होता है। न्यूनतम तापमान 5 डिग्री से नीचे नहीं जाना चाहिए। 6.5-7.5 पीएच मान वाली हल्की दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, पपीते के लिए उपयुक्त होती है।
पपीता की खेती का उपयुक्त समय
पपीते की खेती सालभर की जा सकती है, लेकिन फरवरी, मार्च और अक्टूबर इसके लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं।
पपीता की खेती में नर्सरी में पौधे तैयार करना
नर्सरी के लिए 500 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। बीजों को 3 ग्राम केप्टान से उपचारित करें। नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए पत्ती की खाद, बालू, और सड़ी हुई गोबर की खाद को मिलाकर प्रयोग करें। बोआई के बाद 15–20 दिन में बीज जम जाते हैं और 2 महीने बाद खेत में प्रतिरोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
पपीता की खेती में रोपण की प्रक्रिया
2×2 मीटर की दूरी पर 50x50x50 सेमी गड्ढे खोदें, उन्हें 15 दिन खुला छोड़ दें। फिर गड्ढों में गोबर की खाद और एल्ड्रिन मिलाकर भराई करें। पौधे लगाकर तुरंत सिंचाई करें।
पपीता की खेती में सिंचाई व्यवस्था
शरद ऋतु में 10–15 दिन के अंतराल पर और ग्रीष्म ऋतु में 5–7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई तकनीक उपयोगी होती है। खरपतवार नियंत्रण और सर्दियों में धुआं करके पाले से बचाव आवश्यक है।
पपीता की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
प्रति पौधा:
- 200 ग्राम नाइट्रोजन
- 250 ग्राम फास्फोरस
- 500 ग्राम पोटाश
- 20–25 किग्रा गोबर खाद
- 1 किग्रा बोनमील और नीम खली
नाइट्रोजन को 6 बार में, अन्य खादें 2 बार दें।
पपीते में लगने वाले कीट तथा बचाव के उपाय
लाल मकड़ी कीट (Tetranychus cinnabarinus)
- पत्तियों को तोड़कर नष्ट करें
- वेटेबल सल्फर 2.5 ग्राम/लीटर पानी में छिड़काव करें
एफिड कीट (Aphis gossypii, Maysis persicae)
- डायमिथोएट 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें
पपीते की तुड़ाई का कार्य
जब फल के शीर्ष पर पीलापन आने लगे, तब तुड़ाई करें। डंठल सहित तोड़ें। खराब फलों को हटा दें।
पपीते के फलों से पपेन निकालने की विधि और पैदावार
90–100 दिन पुराने कच्चे फलों से पपेन निकाला जाता है। 3 मिमी गहरे चीरे लगाकर दूध एकत्र करें। पपेन को 0.5% पोटैशियम मेंटाबाई सल्फेट से संरक्षित करें। CO-2 और CO-5 किस्मों से प्रति पौधा 100–150 ग्राम पपेन प्राप्त होता है।
पपीते की खेती से प्राप्त उत्पादन और कमाई
- प्रति हेक्टेयर उत्पादन: 900 क्विंटल
- उत्पादन लागत: ₹1,65,400
- बिक्री से आय: ₹4,05,000
- शुद्ध लाभ: ₹1,94,600
- लाभ-लागत अनुपात: 2.44
यदि कोई किसान 5 हेक्टेयर में खेती करता है, तो कुल आय: ₹9,73,000
पपेन और अन्य उत्पादों से अतिरिक्त कमाई संभव है।