मूंग की खेती : जानिए , मूंग की खेती का सही तरीका और पाए अच्छी पैदावार

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मूंग की खेती क्यों करें?

वर्तमान में किसानों द्वारा परंपरागत खेती के साथ अन्य खेती भी की जाने लगी है। हमारे देश में तिलहन फसलों और दलहनी फसलों का मुख्य स्थान है। दलहनी फसलों की बात करें तो मूंग की फसल एक मुख्य फसल है जिसे रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसम में उगाया जा सकता है। मूंग में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, साथ ही यह मिट्टी के लिए भी लाभदायक होता है। मूंग की फसल से जब फलियों की तुड़ाई कर ली जाती है, उसके पश्चात मिट्टी पलटने वाले हल का प्रयोग करके फसल को पलट देने से फसल हरी खाद के रूप में कार्य करती है। मूंग की फसल में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिससे मूंग की खेती करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। उचित तरीके से की गई खेती से मूंग की फसल से काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

आइए, मूंग में पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में चर्चा करें

मुंह में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, किंतु मूंग में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। मूंग की दाल को खाने से शरीर में पोषक तत्व की कमी को दूर किया जा सकता है। मूंग की दाल का पानी पीकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। मरीजों को डॉक्टर द्वारा दाल का पानी पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि मूंग की दाल डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी से भी बचाव करती है। मूंग में प्रोटीन के अतिरिक्त कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे- पोटेशियम, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक, मैंगनीज, फॉलेट और विटामिन आदि जो शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।

भारत में मूंग की खेती से संबंधित राज्य

विश्व की बात करें तो मूंग का अधिक उत्पादन करने वाले देश भारत, रूस, फ्रांस, इटली, बेल्जियम, उत्तर अमेरिका और मध्य अमेरिका आदि हैं। हमारे देश में मूंग का अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों की बात करें तो मूंग की खेती से संबंधित राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल और उत्तरी पूर्वी भारत का पहाड़ी क्षेत्र आदि हैं।

मूंग की विभिन्न किस्में

मूंग की विभिन्न किस्में पाई जाती हैं जो कि इस प्रकार हैं-
HUM-1, टार्म-1, TJM-3, PDM-44, ML-131, K-851, पूसा-105, जवाहर मूंग-721, एसव्हीएम 66, एसव्हीएम 88, एसव्हीएम 98, विराट गोल्ड और अभय आदि।

कैसे करें खेत तैयार?

मूंग की खेती में सबसे पहले खेत तैयार करें। इसके लिए खेत की दो से तीन बार हल की सहायता से गहरी जुताई कर लें। खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें। खेतों में दीमक से बचाव के लिए लगभग प्रति हेक्टेयर क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण की 20 किलोग्राम मात्रा को खेत की तैयारी करते समय मिट्टी में मिला दें।

इतनी हो बीज की मात्रा

मूंग की खेती में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करें जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके। मूंग की खेती में बीजों की मात्रा इस प्रकार हो कि लगभग प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलो बीज लें जिससे पौधों की संख्या चार से साढ़े चार लाख तक हो जाए।

बुवाई से पूर्व बीजों को करें उपचारित

मूंग की खेती में बीजों को बुवाई से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए फफूंदनाशक दवा और कल्चर से बीजों को उपचारित करें। फफूंदनाशक दवा से बीजों को उपचारित करने के लिए लगभग प्रति किलोग्राम कार्बेन्डाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा लें। इसके पश्चात लगभग प्रति किलोग्राम बीज में राइजोबियम और PSB कल्चर 10 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करने के पश्चात बुवाई करें।

मूंग की खेती में बुवाई कब करें?

मूंग की खेती में बुवाई 15 जुलाई तक कर दें किंतु बारिश देर से होने और जल्दी पकने वाली फसल की बुवाई करने पर 30 जुलाई तक बुवाई की जा सकती है। खेती में बुवाई पंक्तियों में करें इसके लिए सीडड्रिल की सहायता से खेतों में पंक्तियां बनाएं। बीजों की बुवाई 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करना चाहिए, वही पंक्तियों की आपसी दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधों की आपसी दूरी 10 सेंटीमीटर तक रखना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मूंग के बीज के उत्पादन का क्षेत्र दूसरी किस्म के मूंग प्रक्षेत्र से 3 मीटर की दूरी पर होना चाहिए।

मूंग की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

मूंग की खेत में खाद और उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।
रासायनिक खाद के रूप में लगभग प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम स्फुर और 20 किलोग्राम नत्रजन बीजों की बुवाई के समय प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त प्रति हेक्टेयर 1 क्विंटल डाई अमोनियम फास्फेट (DAP) खाद भी प्रयोग किया जा सकता है और जहां पोटाश और गंधक की कमी वाला क्षेत्र हो वहां लगभग प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम पोटाश पर गंधक देना चाहिए।

मूंग में निराई-गुड़ाई का कार्य

मूंग की खेती में जब पौधे की लंबाई 6 इंच तक हो जाए तब एक बार डोरा चला कर निराई करें। इसके अतिरिक्त आवश्यकता होने पर एक से दो बार निराई-गुड़ाई का कार्य हो जाना चाहिए।

मूंग की खेती में सिंचाई कब की जाए?

मूंग की खेती में सामान्य रूप से सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का प्रयोग किया जाता है। खरीफ के सीजन में बारिश होने पर मूंग में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है किंतु जायद और ग्रीष्म काल की मूंग की फसल में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। आवश्यकता के अनुसार मूंग की फसल में 4 से 5 बार सिंचाई हो जानी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण के लिए करें प्रयोग

मूंग की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए निराई गुड़ाई के अलावा भी रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए फसल की बुवाई के 1 से 2 दिन के पश्चात लगभग प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में पेन्डीमेथलिन की 3.30 लीटर मात्रा के घोल को छिड़काव करें। फसल की बुवाई के 25 से 30 दिन के पश्चात निराई और गुड़ाई करें और लगभग प्रति हेक्टेयर में पानी में इमेंजीथाइपर की 750 मिलीलीटर मात्रा का घोल तैयार कर छिड़काव कर दें।

मूंग की खेती में फसल चक्र को अपनाएं

मूंग की खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मूंग की खेती में फसल चक्र को अपनाना चाहिए। मूंग की खेती में फसल चक्र में मूंग के साथ गेहूं, जीरा और सरसों आदि का प्रयोग करें। यदि सिंचित क्षेत्र है तब मूंग की ग्रीष्मकालीन फसल के साथ धान और गेहूं की फसल को फसल चक्र के लिए उपयोग करें।

मूंग की फसल की कटाई और तुड़ाई का कार्य

मूंग की फसल में कटाई और तुड़ाई का कार्य जब फलियों का रंग हरे से भूरा होने लग जाए तब तुड़ाई करें जबकि एक साथ पकने वाली किस्म में कटाई कर लेनी चाहिए। शेष बची फसल को मिट्टी में गहरी जुताई कर पलट दें जिससे यह मिट्टी के लिए हरी खाद के रूप में कार्य करें। फलियों की तुड़ाई हरे से भूरे रंग की होने पर कर लें क्योंकि अधिक पकने पर तुड़ाई करने से फलियों के चटकने का डर रहता है और उत्पादन पर असर होता है।

मूंग से प्राप्त पैदावार और कमाई

मूंग से प्राप्त पैदावार की बात करें तो सिंचित क्षेत्र में लगभग प्रति हेक्टेयर 7 से 8 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है। मूंग के प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 18000 से 20000 रुपये की लागत होती है और मूंग कीमत लगभग प्रति किलो ₹40 होने पर प्रति हेक्टेयर 12000 से 14000 रुपये का सूखा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

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