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Wheat Irrigation: गेहूं की फसल में बालियां आते समय फंवारे से सिंचाई कभी नहीं करें, देखें खबर

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Wheat irrigation: किसान अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए गेहूं की फसल में विभिन्न प्रकार के प्रयास करते हैं और वैज्ञानिकों की सलाह लेकर गेहूं की खेती करते हैं। इतने प्रयास करने के बावजूद भी किसानों को गेहूं की अच्छी पैदावार प्राप्त नहीं होती है। आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से गेहूं की फसल में ध्यान रखने वाली बात बताएंगे।

गेहूं की सिंचाई के दौरान इन बातों का रखें ध्यान

• गेहूं की देरी से बुवाई में नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में ओरना (3-4 इंच गहरा) चाहिये। शेष नत्रजन पहली सिंचाई के साथ देें।

• सिंचाई 20-22 दिन के अंतराल से ही करें। मिट्टी बलुई हो तो कम गहरी तथा जल्दी-जल्दी सिंचाई की आवश्यकता होती है।

• बालियाँ निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, झुलसा रोग हो सकता है। दानों का मुँह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है।

• फसल में सुनहरा रंग हो जाये तथा दाने भर जायें तो सिंचाई बंद कर दें। इसके बाद सिंचाई करने से दाने की चमक तथा गुणवत्ता पर असर पड़ सकता हैं एवं पोटियां आने की सम्भावना रहती है।

• उच्च गुणवत्ता हेतु बीज की फसल में 2 बार रोगिंग करें।

• यदि खेत में कम मात्रा में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार उगे हुए हों तो उनसे पैदावार पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन जंगली जई, गुल्ली-डण्डा आदि हों तो इन्हें खेत से निकालना अथवा खत्म करना आवश्यक हो जाता है। इन्हें हाथ से खींचकर या खुरपी द्वारा निकाल दें। इस अवस्था में रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

• पाले की संभावना हो तो इससे बचाव के लिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें अथवा 0.1 प्रतिशत व्यापारिक सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) का छिडक़ाव करें।

• दीमक की रोकथाम के लिये खड़ी फसल में क्लोरोपाईरीफॉस की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 50 किलोग्राम बालू या बारीक मिट्टी एवं 2-3 लीटर पानी मिलाकर प्रभावित खेत में प्रयोग करें तथा तुरान्त बाद पानी लगा दें।

• सैनिक कीट (आर्मी वर्म) : इसके लार्वा (सुन्डी) भूमि की सतह से पौधे के तने को काटता है। ये प्राय: दिन में छुपे रहते हैं तथा रात होने पर निकलते हंै तथा पौधे की जडं़े काट देते हैं। फलस्वरूप फसल सूखना प्रारम्भ हो जाती है। इसकी रोकथाम हेतु 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस 375 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर सुबह या शाम के समय प्रयोग करें और बाद में सिंचाई कर दें।

• माहू का प्रकोप गेहूं फसल में ऊपरी भाग (तना व पत्तोंं) पर होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिलीग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

• जड़ माहू (रूट एफिड) गेहूं के पौधे को जड़ से रस चूसकर पौधों को सुखा देते हैं। जड़ माहू के नियंत्रण के लिए बीज उपचार गाऊचे रसायन से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 250 मिली या थाइमैथोक्सम की 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

• गेरूआ: शरबती-चन्दौसी गेहूं के साथ मालवी गेहूं की खेती करने से गेरुआ रोग की सम्भावना कम हो जाती है। गेरूआ रोग से प्रतिरोधी नई प्रजातियों की खेती करें। अधिक प्राकोप होने पर प्रोपीकोनाजोल (0.1 प्रतिशत) 1 मिली/ली. या टेबुकोनेजोल (0.1 प्रतिशत) 1 मिली/ली. दवा का छिडक़ाव करें।

• कंडवा रोग (लूज स्मट): यह बीज जनित फफूँदी जनित रोग है। इस रोग में बालियों में बीज के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है तथा पुरानी प्रजातियों में भारत के सभी हिस्सों में देखा जा सकता है। इसके उपचार हेतु रोग प्रभावित पौधों को उखाडक़र सावधानीपूर्वक थैलियों में बंद कर मिट्टी में दबायें अथवा जला दें, क्योंकि यह रोग हवा से फैलता है। स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें तथा रोग रोधी किस्मों की ही बुवाई करें। इसके लिए बीज को ट्राइकोडरमा विरीडी 4 ग्रा./कि. बीज या कार्बोक्सिन (वीटावैक्स 75 डब्ल्यू. पी.) 1.25 ग्रा./कि. बीज या टेबुकोनेजोल (रैक्सिल 2 डी. एस.) 1.0 ग्रा./कि. बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करके ही उपयोग करें।

• चूहों के नियंत्रण के लिए 3-4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड को एक किलोग्राम आटा, थोड़ा-सा गुड़ व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें तथा उनको चूहों के बिलों के पास रखें। पूर्व में 2-3 दिन तक बिना दवा की आटा, गुड़ व तेल की गोलियाँ बिलों में डालें तथा उन्हे इनके खाने की आदत हो जाय तब दवा वाली गोली डालें। यह कार्य शाम के समय करें तथा मरे हुए चूहों को सुबह-सुबह निकालकर गड्ढे में दबा दें।

• यदि संस्तुत मात्रा में दी गई यूरिया के बाद भी फसल पीली पड़ रही है तथा उचित (सामान्य) वृद्धि नहीं हो रही है, तो तुरन्त विशेषज्ञ से सलाह लें। यह कीट, विषाणु या बीमारी के कारण भी हो सकता है, अथवा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है। तुरन्त विशेषज्ञ की सलाह लेकर उसका शीघ्र उपचार करें।

स्त्रोत – कृषक जगत

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