गेहूं की कटाई के पश्चात् क्या करें किसान भाई??
रबी सीजन में अप्रैल माह में गेहूं की कटाई का कार्य खत्म हो जाता है। गेहूं की कटाई के पश्चात् खेत खाली हो जाते हैं। रबी की फसल की कटाई के पश्चात् खरीफ की फसल की बुवाई तक खेत खाली रहते हैं। किसान इस अंतराल में 2 से 3 माह में ग्रीष्म ऋतु में सब्जियों की खेती करके काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। अप्रैल के माह में कई प्रकार की सब्जियों की खेती की जा सकती हैं। इन उन्नत सब्जियों की खेती से कम लागत में काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है और गर्मी में इनकी बाजार मांग भी बहुत होती है जिससे इनका काफी अच्छा भाव मिल जाता है। सब्जियों की खेती की खासियत यह है कि यह कम समय में तैयार हो जाती हैं जिससे किसान खरीफ की फसल की बुवाई तक खेत खाली भी कर सकते हैं। अप्रैल के माह में जायद सीजन की सब्जियों की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। आइए, गर्मी के सीजन में बोई जाने वाली इन उन्नत 5 सब्जियों की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।
ग्रीष्मकालीन उन्नत 5 सब्जियों की खेती
(1) तोरई की खेती
तोरई (तुरई) एक कद्दू वर्गीय फसल है। तोरई की खेती ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु दोनों में की जा सकती है। किसान तोरई की खेती से काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। तोरई की खेती पूरे भारत में की जाती है। हमारे देश में तोरई की खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है क्योंकि इसकी बाजार मांग बहुत होती है। तोरई का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद होता है। तोरई में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, इसलिए इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होता है। तोरई की खेती में प्रति वर्ष प्रति एकड़ में 50 हजार से 1 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
गर्मी के सीजन में किसान भाई तोरई की इस किस्म की खेती कर सकते हैं जैसे – पूसा स्नेह आदि।
तोरई की पूसा स्नेह किस्म के विकास का श्रेय IARI (Indian Agricultural Research Institute) (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) को जाता है। तोरई की पूसा स्नेह किस्म के फल का आकार मध्यम, नरम और रंग गहरा हरा होता है। इस किस्म के फल पर धारियां बनी होती हैं जिनका रंग काला सलेटी होता है। तोरई की यह किस्म उच्च तापमान के लिए सहनशील है। तोरई की पूसा स्नेह किस्म के पकने की अवधि लगभग 45 से 50 दिन है।
(2) लौकी की खेती
लौकी एक ऐसी सब्जी है जो सभी मौसम में मिल जाती है इसलिए लौकी की खेती वर्ष में तीन बार की जा सकती है। मंडी में लौकी की सब्जी की मांग हर समय बनी रहती है। लौकी के सेवन से बहुत सी बीमारियों को दूर किया जा सकता है। लौकी में पाए जाने वाले पोषक तत्व जैसे – कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटैशियम, आयरन, जिंक, लवण, प्रोटीन, विटामिन A व C आदि। लौकी के सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है और पाचन क्रिया भी सही रहती है। लौकी की गर्मी में मांग अधिक रहती है। लौकी में पानी की अधिक मात्रा पाई जाती है इसलिए इसका सेवन फायदेमंद माना जाता है। लौकी में पाए जाने वाले पोषक तत्व शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हैं एवं शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी गंभीर बीमारियों में औषधि के रूप में भी कार्य करती है। लौकी की खेती से प्रति वर्ष प्रति एकड़ 1 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
गर्मी के सीजन में किसान भाई लौकी की इन किस्मों की खेती कर सकते हैं जैसे – पूसा संदेश और पूसा नवीन आदि।
लौकी की पूसा नवीन किस्म के विकास का श्रेय IARI (Indian Agricultural Research Institute) (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) को जाता है। लौकी की पूसा नवीन किस्म के फल का आकार सीधा और लंबाई 30 से 40 सेमी होती है।
लौकी की पूसा नवीन किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 70 से 90 क्विंटल है।
(3) भिंडी की खेती
भिंडी की बाजार मांग बनी रहती है जिससे इसका काफी अच्छा भाव मिल जाता है। भिंडी का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। भिंडी में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे – कैल्शियम, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिन A, B और C आदि। इसके अतिरिक्त भिंडी में थायमिन और राइबोफ्लेविन भी पाया जाता है और इसमें आयोडीन की मात्रा भी अधिक होती है। भिंडी के सेवन से कब्ज से छुटकारा मिलता है। भिंडी एक कम अवधि में पकने वाली सब्जी है। भिंडी की बुवाई के 15 दिन पश्चात् फल आना प्रारंभ हो जाते हैं। भिंडी की पहली तुड़ाई का कार्य, बुवाई के लगभग 45 दिन पश्चात् कर सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में भिंडी की खेती से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 10 टन है। भिंडी की खेती से प्रति वर्ष प्रति एकड़ 3 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
गर्मी के सीजन में किसान भाई भिंडी की इन किस्मों की खेती कर सकते हैं जैसे – परबनी क्रांति, अर्का अनामिका और पूसा A-4 आदि।
(4) मूली की खेती
मूली की खेती भी किसानों के लिए फायदेमंद होती है। मूली की मांग भी बाजार में बहुत होती है। मूली का उपयोग सब्जी के साथ-साथ कच्चे सलाद और अचार के रूप में भी किया जाता है। मूली के सेवन से बहुत सी बीमारियों को दूर किया जा सकता है। मूली का बाजार में मूल्य प्रति किग्रा 10 से 15 रुपए तक होता है, इस प्रकार मूली की खेती में प्रति वर्ष प्रति एकड़ में 1.50 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
गर्मी के सीजन में किसान भाई मूली की इस किस्म की खेती कर सकते हैं जैसे – पूसा चेतकी आदि।
मूली की पूसा चेतकी किस्म कम समय में पकने वाली एक स्वादिष्ट किस्म है। मूली की पूसा चेतकी किस्म के पत्तों की सब्जी बनाई जाती है। मूली की इस किस्म के पत्ते बिना कटे और पत्तों का रंग एक समान हरा होता है। मूली की पूसा चेतकी किस्म के पकने की अवधि लगभग 35 से 40 दिन है। मूली की पूसा चेतकी किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 100 क्विंटल तक है।
(5) खीरा की खेती
गर्मी के मौसम में खीरे की मांग बाजार में बहुत होती है। गर्मी के सीजन में खीरे की खेती से किसान भाई काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। खीरे का सेवन मुख्य रूप से कच्चे सलाद के रूप में किया जाता है। खीरे को कच्चा सलाद के रूप में प्रयोग करने के अतिरिक्त इसकी सब्जी भी बनाई जाती है। खीरे में पानी की अधिक मात्रा पाई जाती है, इसलिए इसका सेवन फायदेमंद माना जाता है। खीरा की खेती में प्रति वर्ष प्रति एकड़ में 50 हजार रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
गर्मी के सीजन में किसान भाई खीरे की इस किस्म की खेती कर सकते हैं जैसे – पूसा उदय किस्म आदि।
खीरा की पूसा उदय किस्म के विकास का श्रेय IARI (Indian Agricultural Research Institute) (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) को जाता है। खीरा की पूसा उदय किस्म के पकने की अवधि लगभग 50 से 55 दिन है। खीरा की पूसा उदय किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 55 क्विंटल है।