Kisan News: आम की खेती में आम की फसल पर टहनियों में छेद करने वाला च्लुमेटिया ट्रांसवर्सा (Chlumetia transversa) यूटेलीडे परिवार का एक कीट है। इस बीमारी से अक्सर आम की खेती करने वाले किसान परेशान रहते हैं। इन कीटो द्वारा पेड़ में छेद करने की वजह से आम का पेड़ कमजोर हो जाता है। इसके बाद पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगता है। किसानों को समय से पहले इस बीमारी से निपटने की जरूरत है। दिसंबर महिने के बाद ही आम के पेड़ों पर मंजर आना और दूसरे प्रजनन कार्य शुरू हो जाते हैं। अब किसानों को पेड़ में होने वाले छेद से परेशान होने की जरूरत नहीं है। देश के जाने- माने फल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह आम के पेड़ में लगने वाली इस बीमारी के बारे में किसानों को टिप्स दे रहे हैं।
Kisan News: डॉक्टर एसके सिंह मुताबिक, ये कीट भारत , पाकिस्तान , श्रीलंका, बांग्लादेश, चीन, कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, अंडमान द्वीप समूह, निकोबार द्वीप समूह और सोलोमन द्वीप समूह में प्रमुखता से पाए जाते हैं। इस कीट का कैटरपिलर आम ( मैंगिफेरा इंडिका) का एक प्रमुख कीट है। यह युवा पत्तियों को खाता है और फिर मध्य शिरा के साथ- साथ टर्मिनल शूट में छेद करता है। वहीं, इसके भारी प्रकोप के कारण पत्तियां फट जाती हैं और अंकुर मुरझा जाते हैं।
Kisan News: डॉक्टर सिंह के मुताबिक, आम की टहनियों में छेद करने वाला च्लुमेटिया ट्रांसवर्सा (Chlumetia transversa) यूटेलीडे परिवार का एक कीट है। इस प्रजाति का वर्णन सर्वप्रथम 1863 में फ्रांसिस वॉकर ने किया था। इस कीट के लार्वा आम के पेड़ की नई शाखाओं में छेद कर देते हैं, जिसकी वजह से पत्तियां झड़ने व शाखाएं सूखने लगती हैं। इसकी मादा कीट नई पत्तियों पर अंडा देती है। अंडा फूटने पर लार्वा पत्तियों के मिडरिब के रास्ते मुख्य शाखा में प्रवेश कर जाता है और अग्रशिरा वाले भाग में छेद बनाकर सुखा देता है। लार्वा काले सिर के साथ पारदर्शी पीला-हरा या भूरा होता है। यह नई टहनियों के नरम और कोमल ऊतकों पर भोजन करता है और प्रेवश छिद्रों के पास प्रचुर मात्रा में मल छोड़ता है। पौधों के अवशेषों और मिट्टी के ऊपरी हिस्से में भूरे रंगे के कोषस्थ देखे जाते हैं।
कैसे होते हैं यह कीड़े: डॉक्टर सिंह की माने तो आम और लीची दोनों में इस कीट की वजह से भारी नुकसान होता है। पौधों के विभिन्न हिस्सों पर होने वाले नुकसान मुख्य रूप से लार्वा के भोजन के कारण होते हैं। वयस्क पतंगे भूरे-काले और 8-10 मिमी लंबे होते हैं। लंबेसे एंटीना के साथ उनका शरीर भूरे रंग की कील की तरह होता है। उनके फैले हुए पंख लगभग 15 मिमी के होते हैं। मलाई जैसे सफ़ेद रंग के अंडे तने और नई टहनियों पर दिए जाते हैं. 3-7 दिनों के बाद, लार्वा निकलकर लगभग 8-10 दिनों तक भोजन करते हैं और फिर कोषस्थ धारण करते हैं। वयस्क बनकर निकलने के बाद वे आसानी से दूसरे पेड़ों और बागीचों में उड़कर पहुंच जाते हैं। वर्षा एवं अत्यधिक आद्रता मैंगो शूट बोरर के विकास में मदद करती है, जबकि अपेक्षाकृत उच्च तापमान कीट के जीवन चक्र को रोकता है।
कैसे करें बचाव: जब कीट के वयस्क भृंग दिखने लगें, तो ऑर्गनोफ़ॉस्फ़ेट जैसे कीटनाशकों को मुख्य तने, शाखाओं और उभरी हुई जड़ों पर लगाना चाहिए। प्रवेश छेदों को साफ़ करें और उन्हें डाईक्लोरवॉस (0.05%) या कार्बोफ्यूरन (3जी, प्रति छेद 5 ग्राम) के मिश्रण में भिगाई गई रूई से भरें और उन्हें गीली मिट्टी से बंद कर दें. आम के मुख्य तने के बिलों में छिपे बड़े लार्वा को मरने के लिए सर्वप्रथम बिलों को सायकिल की तीली या किसी भी लोहे के तार से साफ करने के बाद वाष्पशील तरल के इंजेक्शन या धूमन से वहीं के वहीं मारा जा सकता है। ज़मीन की सतह से लेकर मुख्य तने पर एक मीटर ऊंचाई तक बोर्डो पेस्ट का लेप लगाएं, जिससे मादाओं को अंडे देने से रोका जा सके। सोखनेवाले रूई के फाहे को मोनोक्रोटोफ़ॉस (36 डब्ल्यू.एस.सी.) के घोल @10 मीली प्रति लीटर के घोल में भिंगोकर छेद में अन्दर तक भर दे। अगर संक्रमण अधिक है, तो पेड़ के तने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाएं।
Kisan News: आम के इस प्रमुख कीट को लाइट ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, हैंड पिकिंग, प्रूनिंग या कई कीटनाशकों जैसे कार्बेरिल, क्विनालफोस, मोनोक्रोटोफोस, फेनवलक्रेट या साइपरमेथ्रिन के उपयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि इस कीट से ग्रसित आम के हिस्से एवं टहनियों को काटकर नष्ट कर दें। कीट की उग्र अवस्था में रासायनिक कीटनाशक जैसे डायमथोएट(0.2%) या कार्बारील (0.2%) या क्यूनालफास (0.5%) का 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करके इस कीट को बहुत आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।