IIT बॉम्बे का बड़ा कदम : प्रदूषण से मुक्त मिट्टी और 50% अधिक फसल उत्पादन का समाधान

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मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार की नई तकनीक

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (IIT बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। यह तकनीक प्रदूषित मिट्टी को स्वच्छ करने के साथ-साथ फसलों की पैदावार में 45-50% तक वृद्धि करने में सहायक है।​

तकनीकी विवरण

IIT बॉम्बे के जैव विज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के शोधकर्ताओं ने स्यूडोमोनास और एसिनेटोबैक्टर प्रजातियों के बैक्टीरिया की पहचान की है। ये बैक्टीरिया मिट्टी में मौजूद विषैले यौगिकों को सरल और हानिरहित पदार्थों में बदल देते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, ये बैक्टीरिया पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों जैसे फॉस्फोरस और पोटैशियम को घुलनशील रूप में बदलते हैं, जिससे पौधों को बेहतर पोषण मिलता है। साथ ही, ये बैक्टीरिया इंडोल-3-एसीटिक एसिड (IAA) जैसे वृद्धि हार्मोन का उत्पादन करके पौधों के स्वास्थ्य और विकास में भी योगदान करते हैं। ​

फसलों पर प्रभाव

इस तकनीक का परीक्षण गेहूं, मूंग, पालक और मेथी जैसी फसलों पर किया गया है, जहां फसल उत्पादन में 45-50% तक की वृद्धि देखी गई है। यह मिश्रित बैक्टीरिया प्रणाली प्रदूषकों को तोड़ने, पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने और रोगों से रक्षा करने में सहायक है। ​

प्राकृतिक कवकनाशक

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, बुरशी रोग हर साल वैश्विक फसल का 10-23% नुकसान करते हैं। इन बैक्टीरिया का उपयोग इस समस्या का समाधान हो सकता है। ये बैक्टीरिया लिटिक एंजाइम और हाइड्रोजन साइनाइड जैसे पदार्थ बनाते हैं, जो हानिकारक कवक को नष्ट करते हैं। इसके साथ ही, ये बैक्टीरिया पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और लाभकारी जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाते। ​

जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक

शोधकर्ताओं की टीम अब इन बैक्टीरिया को बायो-फॉर्मूलेशन में बदलने की योजना बना रही है। ये फॉर्मूलेशन किसानों के लिए उपयोग में सरल और दीर्घकालिक समाधान प्रदान करेंगे। भविष्य में, इस तकनीक का परीक्षण सूखा और अन्य पर्यावरणीय तनावों में भी किया जाएगा। इससे किसानों को जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। ​

इस शोध से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि फसलों की पैदावार और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। यह शोध टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल कृषि की दिशा में एक बड़ा कदम है। आने वाले वर्षों में यह तकनीक भारत की कृषि व्यवस्था में क्रांति ला सकती है।​

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