पपीते की फसल को कवक और विषाणु रोगों से बचाने के लिए अपनाएं ये वैज्ञानिक उपाय

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पपीता की फसल की रोगों से करें सुरक्षा

पपीते की खेती में रोगों का प्रकोप, खासकर कवक और विषाणु जनित बीमारियाँ, किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। बिहार में पपीते की खेती को बढ़ावा देने के लिए इन रोगों का समय पर नियंत्रण और वैज्ञानिक तकनीकों का पालन बहुत ज़रूरी है। इन उपायों से किसानों की आय में वृद्धि तो होगी ही, साथ ही राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। आइए जानते हैं पपीते की फसल को कवक और विषाणु रोगों से बचाने के लिए कौन से उपाय प्रभावी हैं।

पपीते की फसल को कवक और विषाणु जनित रोगों से बचाने के लिए सही समय पर जल निकासी, पौधशाला प्रबंधन, और रासायनिक उपचार करना आवश्यक है। किसानों को इन वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर अपने खेतों में पपीते की स्वस्थ और लाभकारी फसल प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

पपीते की फसल में लगने वाले रोग

पपीते की फसल को कवक और विषाणु जनित रोगों से बचाने के लिए सही समय पर जल निकासी, पौधशाला प्रबंधन, और रासायनिक उपचार करना आवश्यक है। इस प्रकार, रोगों का प्रभावी प्रबंधन करने से उत्पादन में वृद्धि होगी और किसानों की आय में भी सुधार होगा। पपीते की फसल में लगने वाले कवक और विषाणु जनित रोग और उनके नियंत्रण के उपाय इस प्रकार हैं:

कवक जनित रोग और उनके नियंत्रण उपाय

(1) आर्द्र गलन रोग (Damping Off)

यह रोग मुख्य रूप से पपीते की नर्सरी में होता है और नए अंकुरित पौधों को प्रभावित करता है। इसके कारण पौधों का तना गलकर गिर जाता है।
नियंत्रण उपाय: नर्सरी में जल निकासी का उचित प्रबंधन करें और बीजों का उपचार करें। पौधशाला की मिट्टी को 2.5% फार्मेल्डिहाइड घोल से उपचारित करें और मेटालैक्सिल + मेन्कोजेब का मिश्रण 2 ग्राम प्रति किलो बीज पर प्रयोग करें।

(2) तना व जड़ सड़न रोग (Collar Rot)

इस रोग के कारण पपीते के तने और जड़ों में सड़न होती है, जिससे पौधा मुरझा कर मर जाता है।
नियंत्रण उपाय: बगीचे में जल निकासी सुनिश्चित करें, और रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें। तने पर बोर्डो मिश्रण और मिट्टी में मेटालैक्सिल + मेन्कोजेब का घोल डालें।

(3) फल सड़न रोग (Fruit Rot)

यह रोग पपीते के फलों को प्रभावित करता है और गीले धब्बे बन जाते हैं जो बाद में काले पड़ जाते हैं।
नियंत्रण उपाय: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मेन्कोजेब का छिड़काव करें और रोगग्रस्त फलों को नष्ट करें। जल निकासी पर ध्यान दें।

(4) कली और फल का तना सड़न (Bud and Fruit Stem Rot)

इस रोग में फल और कली के पास तना सड़ने लगता है, जिससे फल झड़ जाते हैं।
नियंत्रण उपाय: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें और प्रभावित पौधों को नष्ट करें।

(5) चूर्णी फफूंद (Powdery Mildew)

पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे बनने से यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता है।
नियंत्रण उपाय: घुलनशील सल्फर का छिड़काव करें और रोगग्रस्त पत्तियों को हटा दें।

विषाणु जनित रोग और उनके नियंत्रण उपाय

(1) रिंग स्पॉट वायरस (Ringspot Virus)

इस रोग में पत्तियों, तने और फलों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं, जिससे उत्पादन में कमी आती है।
नियंत्रण उपाय: रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें और नीम तेल का उपयोग करें। नर्सरी में सितंबर में पौधे लगाएं।

(2) पर्ण कुंचन रोग (Leaf Curl Virus)

यह एक गंभीर विषाणु रोग है, जिसमें पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं और पौधों में फूल या फल नहीं आते।
नियंत्रण उपाय: सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट का छिड़काव करें और रोगग्रस्त पौधों को नष्ट करें।

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