मेंथा की फसल और उसमें होने वाली हानि से संबंधित जानकारी
तापमान में अत्यधिक वृद्धि हो जाने से जायद के सीजन में खेती करने वाले किसान चिंतित हैं। अत्यधिक गर्मी के कारण जायद में कई फसलों को हानि हुई हैं। गर्मी के मौसम में पानी की बढ़ती समस्या और बिजली कटौती के कारण भी सिंचाई का कार्य उचित रूप से नहीं हो रहा है। इस कारण फसलों को काफी हानि हो रही हैं। इसी क्रम में तापमान में वृद्धि होने से मेंथा की फसल में रोगों के प्रकोप में वृद्धि हुई हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने से मेंथा की फसल को नुकसान हो रहा है। इसके अतिरिक्त गर्मी के कारण मेंथा की फसल में कीटों और रोगों के प्रकोप में भी वृद्धि हुई हैं जिससे फसल की पैदावार घटने की आशंका है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसान भाइयों को तापमान में वृद्धि होने से अपनी मेंथा की फसल को नुकसान से बचाने के उपायों को जानना चाहिए। आइए, मेंथा की फसल को तेज गर्मी से होने वाले नुकसान से बचाव के उपायों से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।
भारत में मेंथा की खेती से संबंधित मुख्य राज्य
भारत विश्व में मेंथा ऑयल का मुख्य निर्यातक देश है। मेंथा के तेल का प्रयोग सुगंध के लिए और औषधि बनाने में किया जाता है। हमारे देश में मुख्य रूप से मेंथा की खेती उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा राज्य में की जाती है। उत्तरप्रदेश राज्य में फैजाबाद, मुरादाबाद, बरेली, लखनऊ, अंबेडकर नगर, रामपुर, पीलीभीत, बदायूं और बाराबंकी आदि जिलों में बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती की जाती है। मेंथा की खेती में उत्तरप्रदेश राज्य की भागीदारी 85% तक और पूरे उत्तरप्रदेश राज्य में बाराबंकी जिले की 33% भागीदारी होती है।
तेज गर्मी से मेंथा की फसल पर होता है नकारात्मक असर
तापमान में अत्यधिक वृद्धि और तेज गर्मी से मेंथा का उत्पादन करने वाले किसान चिंतित हैं। मेंथा की फसल के लिए नमी आवश्यक है। आवश्यकता से अधिक तापमान मेंथा की फसल के लिए सही नहीं होता है। मेंथा की फसल के लिए उपयुक्त तापमान 20°C से 40°C होना चाहिए। इससे अधिक तापमान में मेंथा की फसल को हानि होती है। तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने से मेंथा की फसल को नुकसान होता है। भीषण गर्मी के कारण मेंथा की फसल में कीटों और रोगों का प्रकोप भी हो जाता है, जो मेंथा की फसल को हानि पहुंचाते हैं।
मेंथा की फसल में लगने वाले कीट और बचाव
(1) माहू कीट
माहू कीट मेंथा के पौधों के कोमल हिस्सों का रस चूसता है। माहू कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही मेंथा के पौधे को हानि पहुंचाते हैं। माहू कीट के प्रकोप से पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे मेंथा का पौधा ठीक से विकसित नहीं होता है।
- बचाव – मेंथा की फसल को माहू कीट से बचाव के लिए किसान भाई रसायन के रूप में मेटासिस्टॉक्स 25 E.C. का 1% का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
(2) दीमक का प्रकोप
मेंथा की फसल में दीमक का प्रकोप होने पर फसल खराब हो जाती है। मेंथा की फसल में दीमक भूमि से लगे भाग के अंदर घुसकर नुकसान पहुंचाती है। इस कारण मेंथा के ऊपरी भाग को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। पोषक तत्वों की कमी के कारण पौधे मुरझाने लगते हैं और पौधें पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।
- बचाव – मेंथा की फसल को दीमक से बचाव के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए। खरपतवार भी नष्ट कर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसान भाई कीटनाशकों के रूप में प्रति हेक्टेयर क्लोरपाइरीफास की 2.5 लीटर मात्रा का प्रयोग सिंचाई के पानी के साथ करना चाहिए।
(3) सुंडी कीट
मेंथा की फसल में सूंडी कीट का प्रकोप अप्रैल और मई महीने के प्रारंभ और अगस्त के महीने में होता है। मेंथा में लगने वाले सूंडी कीट पीले-भूरे रंग के रोयेंदार होते हैं। सूंडी कीट की लंबाई लगभग 2.5 से 3.0 सेमी होती है। सूंडी कीट के प्रकोप से पत्तियां झड़ने लगती हैं और सूंडी कीट पत्तियों के हरे ऊपक खाकर पत्तियों को जालीनुमा बना देती हैं। इस कारण पौधें पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।
- बचाव – मेंथा की फसल को सूंडी कीट से बचाव के लिए किसान भाई प्रति हेक्टेयर पानी की 1000 लीटर मात्रा में मैलाथिऑन 50 E.C. और थायोडान 35 E.C. की 1.25 लीटर मात्रा का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
(4) जालीदार कीट
जालीदार कीट काले रंग के होते हैं। जालीदार कीट की लंबाई लगभग 2 मिमी और चौड़ाई लगभग 1.5 मिमी होती है। जालीदार कीट पत्तियों और तने का रस चूस लेते हैं। इस कारण पौधे जले हुए दिखाई देते हैं।
- बचाव – मेंथा की फसल को जालीदार कीट से बचाव के लिए किसान भाई प्रति हेक्टेयर में डाइमेथोएट की 400 से 500 मिली मात्रा का फसल पर छिड़काव करें।
(5) लालड़ी कीट
लालड़ी कीट पत्तियों के हरे पदार्थ को खाकर उसे खोखला बना देते हैं। लालड़ी कीट के प्रकोप से पत्तियों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। पोषक तत्वों की कमी का असर मेंथा की तेल की मात्रा पर होता है।
- बचाव – मेंथा की फसल को लालड़ी कीट से बचाव के लिए किसान भाई कार्बेरिल का 0.2% का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार फसल पर छिड़काव करें।
(6) कैस्टर सेमीलूपर (गडेहला) कीट
कैस्टर सेमीलूपर (गडेहला) कीट काले, भूरे या हरे रंग का होता है, जो मेंथा की पत्तियों को खाता है। कैस्टर सेमीलूपर (गडेहला) कीट दिन के समय छिप जाता है और रात के समय में पौधों की पत्तियों को खाता है।
- बचाव – मेंथा की फसल को लालड़ी कीट से बचाव के लिए किसान भाई प्रति हेक्टेयर पानी की 600 से 800 लीटर मात्रा में एमामेक्टिन बेंजोएट(5%), क्लोरपाइरीफोस (20%), इमिडाक्लोप्रिड (17.8%), क्विनालफॉस (25%) का पानी में घोल बनाकर पत्तों पर छिड़काव करें।