लोबिया की खेती के बारे में जानिए : लोबिया की विभिन्न किस्में , बाजार भाव और खेती की उचित प्रकिया

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लोबिया की खेती क्यों करें??

लोबिया एक ऐसी सब्ज़ी है जो दलहन फसलों के अंतर्गत आता है। लोबिया को चोला, चौरा या बोड़ा भी कहा जाता है। लोबिया एक बहुत बड़ा पौधा होता है जिसका रंग सफेद होता है। लोबिया के पौधे की फली आकार में पतली और लंबी होती है। लोबिया के फल का आकार लंबा और चौड़ाई में तीन अंगुली के समान होता है तथा फल कोमल होते हैं। लोबिया को खरीफ और जायद दोनों ही मौसम में उगाया जाता है। लोबिया की खेती किसानों के लिए फायदेमंद होती है क्योंकि लोबिया की खेती से दो प्रकार से मुनाफा होता है, जैसे पहला फायदा यह है कि लोबिया की फली की सब्ज़ी बनाई जाती है वहीं दूसरे रूप में पशुओं के लिए चारा और हरी खाद भी मिल जाती है। इस प्रकार लोबिया से किसान काफी मुनाफा कमाते हैं। यह एक उपयोगी फसल है जो बहुत रूपों में उपयोगी होती है। आइए लोबिया की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

लोबिया की विभिन्न किस्में


लोबिया की विभिन्न किस्में हैं, जिनमें कई उन्नत किस्में हैं जो अपने गुणों के कारण अच्छी पैदावार देती हैं। इसलिए किसान भाइयों को लोबिया की खेती करने से पहले अपनी भूमि और फसल के हिसाब से उन्नत किस्म का चयन करना चाहिए जिससे अच्छी गुणवत्ता की फसल प्राप्त हो। लोबिया की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार हैं जो विभिन्न मौसम और उद्देश्य के अनुसार अलग-अलग हैं:

  • खरीफ और जायद के मौसम के लिए उन्नत किस्मेंUPC-287, UPC-621, UPC-622, UPC-625, UPC-628, UPC-4200, UPC-5286, UPC-5287, C-8, K-395, IGFRI (कोहिनूर), बंडल लोबिया-1 और रशियन ग्रेन्ट आदि।
  • दाने के लिए उन्नत किस्में
  • पूसा फाल्गुनी, पूसा सम्पदा (V-585), श्रेष्ठा (V-37), स्वर्णा (V-38), अम्बा (V-16), C-152 और GC-3 आदि।
  • चारे के लिए उन्नत किस्में
  • GFC-1, GFC-2 और GFC-3 आदि।

लोबिया की खेती के लिए मिट्टी का निर्धारण


लोबिया की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी अनुकूल होती है किंतु जल भराव की समस्या न हो, इसके लिए उचित जल निकासी होना चाहिए। लोबिया की खेती के लिए क्षारीय भूमि नहीं होनी चाहिए क्योंकि क्षारीय भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती। मिट्टी का pH मान 5.5 से 6.5 के मध्य हो।

लोबिया की खेती के लिए जलवायु और तापमान का निर्धारण


लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु गर्म और आर्द्र जलवायु होती है। लोबिया की खेती अधिक ठंडे मौसम में नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे पौधों की वृद्धि रूकती है और ठंडे मौसम में पौधे का विकास सही से नहीं हो पाता है। लोबिया की खेती के लिए तापमान 24°C से 27°C के मध्य होना चाहिए।

कब करें लोबिया की बुवाई??


लोबिया की बुवाई खरीफ के सीजन में जून के अंत और जुलाई के प्रारंभ के माह में करें। गर्मी के मौसम में लोबिया की बुवाई फरवरी और मार्च के महीने में करें।

लोबिया की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा


लोबिया की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा की बात करें तब लोबिया की विभिन्न किस्मों के लिए बीजों की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है तथा मौसम के अनुसार बीजों की मात्रा तय करना चाहिए। सामान्यतः लोबिया की बुवाई में बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर 12 से 20 किलोग्राम होना चाहिए। वहीं यदि बेल वाली किस्में हैं तब बीजों की मात्रा कम कर दें।

लोबिया के बुवाई की प्रक्रिया


लोबिया की बुवाई के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को राईजोबियम जीवाणु से उपचारित कर लेना चाहिए और बुवाई के पश्चात हल्की सिंचाई कर देना चाहिए जिससे कि मिट्टी में नमी रहे और बीज अच्छी तरीके से जम जाएं। लोबिया की बुवाई में दूरी का ध्यान रखा जाना चाहिए। लोबिया की विभिन्न किस्मों के अनुसार दूरी भी भिन्न-भिन्न रखना चाहिए। यदि दूरी की बात करें तो बेल वाली किस्मों के लिए पंक्तियों की आपसी दूरी 80 से 90 सेंटीमीटर होनी चाहिए। लोबिया की झाड़ीदार किस्म के लिए पंक्ति की आपसी दूरी 45 सेंटीमीटर और बीजों की आपसी दूरी 10 सेंटीमीटर हो।

लोबिया की खेती में सिंचाई कब की जाए??


लोबिया की फसल में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। यदि लोबिया की बुवाई खरीफ के मौसम में की हो तब इसमें अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि बारिश के कारण अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है। बारिश न होने पर सिंचाई करनी चाहिए जिससे भूमि में नमी बनी रहे। यदि लोबिया की बुवाई गर्मी के मौसम में की हो तब लोबिया की फसल को 5 से 6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। यह सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल में करते रहना चाहिए।

लोबिया में खाद और उर्वरकों का प्रयोग


लोबिया की फसल में खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए लोबिया की बुवाई से 1 माह पूर्व मिट्टी में गोबर या कंपोस्ट खाद को प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन तक मात्रा का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम नत्रजन अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। नत्रजन की 20 किलोग्राम मात्रा को लोबिया की फसल में जब फूल आने लगे तब मिलाना चाहिए।

लोबिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण


लोबिया की खेती में पौधे के अलावा कई अन्य पौधे भी उग जाते हैं जिन्हें खरपतवार कहते हैं। इन खरपतवारों पर नियंत्रण करना आवश्यक है जिससे कि मुख्य पौधा अच्छी तरह से विकसित हो सके और फसल को हानि न हो। इन अन्य पौधों से फसल को हानि होती है और पैदावार में कमी आती है, इसलिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। लोबिया की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए दो से तीन बार निराई और गुड़ाई करना चाहिए और रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर 3 लीटर स्टाम्प को बुवाई के पश्चात 2 दिन के अंदर प्रयोग करना चाहिए।

लोबिया की खेती में ध्यान रखने वाली बातें


लोबिया की खेती में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए जिससे कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके: • बुवाई के पूर्व बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए।

  • पौधों में पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी के आधार पर देना चाहिए।
  • फसल में खरपतवार को नियंत्रित करना चाहिए।
  • तीन वर्ष में एक बार गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक है।
  • लोबिया के पौधों को संरक्षित करने के लिए एकीकृत पौध संरक्षण के उपाय करने चाहिए।

लोबिया की तुड़ाई और कटाई का कार्य

  • लोबिया की खेती में तुड़ाई और कटाई का कार्य लोबिया की विभिन्न किस्मों के आधार पर होता है। लोबिया की फसल में हरी फली की तुड़ाई का कार्य किस्म के आधार पर बुवाई के 45 से 90 दिन के पश्चात करना चाहिए। लोबिया की फलियों की तुड़ाई नर्म और कच्ची अवस्था में करना चाहिए और फलियों की तुड़ाई 4 से 5 दिन के अंतराल में करनी चाहिए। लोबिया की बेल वाली किस्म में 8 से 10 तुड़ाई की जा सकती है और झाड़ीदार किस्म में 3 से 4 तुड़ाई की जा सकती है।
  • लोबिया की फसल यदि दाने के उद्देश्य से की गई हो तब कटाई का कार्य बुवाई के 90 से 125 दिन के पश्चात करना चाहिए।
  • लोबिया की फसल यदि चारे के उद्देश्य से की गई हो तब कटाई का कार्य बुवाई के 40 से 45 दिन के पश्चात करना चाहिए।

लोबिया से प्राप्त उत्पादन


लोबिया से प्राप्त उत्पादन की बात करें तो उचित तरीके से की गई खेती से लगभग प्रति हेक्टेयर 12 से 17 क्विंटल दाना और 50 से 60 क्विंटल भूसा प्राप्त हो जाता है।
और चारे के उद्देश्य से की गई खेती में हरा चारा लगभग प्रति हेक्टेयर 250 से 400 क्विंटल तक प्राप्त हो जाता है।

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