लीची की फसल में तेज गर्मी से होने वाले नुकसान से संबंधित जानकारी
हमारे देश में कई प्रकार की खेती की जाती हैं जिसमें बागवानी , दलहनी और तिलहनी सभी प्रकार की फसलें बोई जाती हैं।बागवानी फसलों में लीची की खेती भी प्रमुख रूप से की जाती हैं।लीची एक स्वादिष्ट और ठंडक प्रदान करने वाला फल हैं।लीची एक उष्णकटिबंधीय फल हैं।लीची का वैज्ञानिक नाम लीची चिनेंसिस हैं।लीची सोपबैरी परिवार का सदस्य है।लीची मूल रूप से चीन का फल हैं और लीची की खोज दक्षिण चीन में हुई थीं। लीची की पैदावार की बात करें तो चीन के बाद दूसरे नंबर पर भारत का स्थान आता हैं।हमारे देश में लीची की पैदावार कई राज्यों में की जाती हैं।लीची की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य में होती हैं किंतु लीची की बाजार मांग में वृद्धि को देखते हुए लीची की खेती उड़ीसा , झारखंड ,पंजाब , हरियाणा , पश्चिम बंगाल , असम , त्रिपुरा और उत्तरांचल आदि राज्य में भी की जाने लगी हैं।गर्मी के मौसम में लीची के पेड़ पर फल आने प्रारंभ हो जाते हैं ।लीची के पेड़ पर अप्रैल और मई के माह में फल आने लगते हैं।फल आने के साथ ही लीची में कीटो और रोगों का प्रकोप भी होता हैं।लीची का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों को कीटों और रोगों का प्रकोप होने पर शुरुआती अवस्था में ही नियंत्रण करना चाहिए ताकि फसल में होने वाली हानि से बचा जा सकें।आइए , लीची की फसल को तेज गर्मी से होने वाले नुकसान से बचाव से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।
लीची में लगने वाले रोग , रोग के लक्षण और समाधान
(1) झुलसा रोग
गर्मी के मौसम में उच्च तापमान के कारण लीची में झुलसा रोग का प्रकोप होने की संभावना अधिक होती हैं। रोग के प्रकोप से उच्च तापमान के कारण लीची की पत्तियां और कोपलें झुलसने लगती हैं।झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियों के सिरों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं।इस रोग से फसल को काफी हानि होती हैं।
झुलसा रोग के मुख्य लक्षण
लीची में झुलसा रोग कवक की कई प्रजातियों के कारण हो सकता हैं।लीची में झुलसा रोग से लीची के पौधे की नई पत्तियां और कोपलें झुलसने लगती हैं।लीची में झुलसा रोग के प्रकोप से शुरुआत में पत्तियों के किनारों पर उत्तकों के मृत होने से भूरे धब्बे बन जाते हैं जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।झुलसा रोग के बढ़ने पर टहनियों के ऊपरी हिस्से भी झुलसे हुए दिखाई देते हैं।
झुलसा रोग का समाधान
लीची की फसल को झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान भाई रसायनों का प्रयोग करें।इसके लिए फसल में प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा का घोल(0.2%) बनाकर छिडक़ाव करें।इसके अतिरिक्त इस रोग का अधिक प्रकोप होने पर प्रति लीटर पानी में क्लोरोथैलोनिल 75% WP या कार्बेन्डाजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा के घोल का छिडक़ाव करें।
(2) श्याम वर्ण रोग
लीची में श्याम वर्ण रोग(एन्थ्रेकनोज रोग) के प्रकोप से लीची के छिलके का रंग काला पडऩे लग जाता हैं और यह संक्रमण तेजी से फैलता हैं।इस रोग के प्रकोप से लीची की फसल को भारी हानि होती हैं और किसान भाइयों को आर्थिक हानि होती हैं।
श्याम वर्ण रोग के मुख्य लक्षण
लीची में श्याम वर्ण रोग(एन्थ्रेकनोज रोग) कोलेटोट्रीकम ग्लियोस्पोराइडिस नामक कवक से फैलता हैं।उच्च तापमान और नमी के कारण इस रोग का संक्रमण और फैलाव काफी तेजी से होता हैं।श्याम वर्ण रोग के प्रकोप से फलों के छिलकों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई बन जाते हैं जिनका आकार बड़ने पर ये काले रंग में बदल जाते हैं।श्याम वर्ण रोग के बढ़ने के साथ ही इसका संक्रमण छिलकों के आधे हिस्से से तक हो जाता हैं।
श्याम वर्ण रोग का समाधान
लीची की फसल को श्याम वर्ण रोग(एन्थ्रेकनोज रोग) से बचाव के लिए किसान भाई रसायनों का प्रयोग करें।इसके लिए फसल में प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा का घोल(0.2%) बनाकर छिडक़ाव करें।इसके अतिरिक्त इस रोग का अधिक प्रकोप होने पर प्रति लीटर पानी में क्लोरोथैलोनिल 75% WP या कार्बेन्डाजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा के घोल का छिडक़ाव करें।
(3) पर्ण चित्ती रोग
लीची में पर्ण चित्ती रोग का प्रकोप अधिकांश रूप से जुलाई के महीने में होता हैं।
पर्ण चित्ती रोग के मुख्य लक्षण
लीची में पर्ण चित्ती रोग के प्रकोप से पत्तियों पर गहरे चॉकलेटी रंग या बोले भूरे की चित्ती पत्तियों के ऊपर दिखाई देती हैं।इन चित्तियों का प्रारंभ पत्तियों के किनारों से होता हैं और यह रोग के प्रकोप के बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ती हुई किनारे और बीच के भाग में भी फैल जाती हैं।इससे इन चित्तियों के किनारे अनियमित दिखाई देते हैं।
पर्ण चित्ती रोग का समाधान
लीची की फसल को पर्ण चित्ती रोग से बचाव के लिए लीची में रोग से प्रभावित भाग की कटाई-छंटाई कर देना चाहिए और भूमि पर गिरी हुई पत्तियों को भी जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त लीची की फसल को पर्ण चित्ती रोग से बचाव के लिए किसान भाई रसायनों का प्रयोग करें।इसके लिए फसल में प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा का घोल(0.2%) बनाकर छिडक़ाव करें।इसके अतिरिक्त इस रोग का अधिक प्रकोप होने पर प्रति लीटर पानी में क्लोरोथैलोनिल 75% WP या कार्बेन्डाजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा के घोल का छिडक़ाव करें।
(4) फल विगलन रोग
लीची में फल विगलन रोग के कारण फल मुलायम होकर सडऩे लग जाते हैं।यदि समय रहते फल विगलन रोग पर नियंत्रण ना किया जाए तो इससे फसल को बहुत हानि हो सकती हैं।
फल विगलन रोग के मुख्य लक्षण
लीची में फल विगलन रोग कई प्रकार के कवकों के कारण फैलता हैं।इन कवक में मुख्य रूप से कोलेटोटाइकम ग्लिओस्पोराइडिस , अल्टरनेरिया अल्टरनाटा और एस्परजिलस स्पीसीज आदि हैं।फल विगलन रोग का प्रकोप मुख्य रूप से उस समय होता हैं जब फल परिपक्व अवस्था में होने लगता हैं।फल विगलन रोग का प्रकोप फलों के परिवहन और भंडारण के समय अधिक होता हैं।किसान भाइयों को फलों के परिवहन और भंडारण के समय विशेष ध्यान रखना चाहिए।फल विगलन रोग के प्रकोप से शुरुआती अवस्था में लीची का छिलका मुलायम हो जाता हैं और फल सड़ने लग जाता हैं।फल के छिलके का रंग भूरे से काला हो जाता हैं।
फल विगलन रोग का समाधान
लीची की फसल को फल विगलन रोग से बचाव के लिए फलों की पैकेजिंग कार्बन डायऑक्साइड गैस की 10 से 15% वाले वातावरण के साथ करना चाहिए।फलों को तोडऩे के तुरत बाद पूर्वशीतलन उपचार (तापमान 4°C और नमी 85 से 90%) करना चाहिए।लीची के फल की तुड़ाई के समय फलों को यांत्रिक हानि होने से बचाना चाहिए।इसके अतिरिक्त लीची की फसल को फल विगलन रोग से बचाव के लिए किसान भाई रसायनों का प्रयोग करें।इसके लिए फलों की तुड़ाई के 15 से 20 दिन पूर्व पौधों पर प्रति लीटर पानी में कार्बेन्डाजिम 50 WP की 2 ग्राम मात्रा का छिड़काव करें।
लीची में फलों के फटने की समस्या और समाधान
लीची की खेती में अत्यधिक गर्म और सूखे इलाकों में लीची के फलों के फटने की समस्या ज्यादा होती हैं।लीची में फलों के फटने की समस्या अधिक सिंचाई करने से भी होती हैं।फलों को फटने की समस्या से बचाव के लिए किसान भाई खेत की मेड़ों पर हवा अवरोधक पौधे लगाकर भी इस समस्या को कम किया जा सकता हैं।किसान भाई बागवानी में लगातार नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें जिससे भूमि सुखी ना रहें।इसके अतिरिक्त किसान भाई लीची के फलों के फटने की समस्या से बचाव के लिए रसायनों के रूप में मैग्नीशियम का छिड़काव करें और बोरेक्स (बोरोन 1 प्रतिशत 1 किग्रा/100 लीटर पानी) का पत्तियों और जड़ के पास रिंग में छिडक़ाव करें।इससे फलों के फटने की समस्या दूर होने के साथ ही 40 से 50% तक उपज में वृद्धि हो जाती हैं।
लीची में असामयिक फल झड़ना और समाधान
लीची की खेती में गर्म हवाओं के प्रकोप से असामयिक फल झडऩे की समस्या भी हो जाती हैं।लीची की फसल में असामयिक फल झड़ना सिंचाई की कमी के कारण होता हैं।किसान भाई इस समस्या के समाधान के लिए फसल में फल बनने के पश्चात् बागवानी में लगातार नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें।इसके अतिरिक्त किसान भाई असामयिक फल झडऩे की समस्या से बचाव के लिए रसायन और खाद के रूप में ट्राईकोडरमा की 2 किग्रा मात्रा में गोबर की खाद की 50 किग्रा मात्रा मिलाकर जड़ के पास मिट्टी में मिला देना चाहिए और साथ ही प्रति लीटर पानी में मिली प्लानोफिक्स की 4 मिली मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करें।गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद की 50 क्विंटल मात्रा समान रूप से बागवानी में डाल दें।
लीची के फल को नुकसान से बचाव के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान
लीची के फल को नुकसान से बचाव के लिए किसान भाई इन बातों का भी विशेष ध्यान रखें।लीची के फल को नुकसान से बचाव के लिए ध्यान रखने वाली बातें इस प्रकार हैं-
- लीची की फसल में मंजर या फूल खिलने से लेकर फल के दाने के निर्माण तक किसी भी प्रकार की रासायनिक दवा का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे मधुमक्खियों का भ्रमण प्रभावित होता हैं जो लीची में परागण के लिए बहुत जरूरी हैं।
- लीची की फसल में रासायनिक कीटनाशकों का छिडक़ाव दोपहर के समय में करना सही रहता हैं।कीटनाशकों का छिडक़ाव सुबह और शाम के समय ना करें।
- लीची की फसल में कीटों और रोगों पर नियंत्रण करने वाले रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग में ध्यान रखें कि एक ही कीटनाशक का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए क्योंकि बार-बार एक ही कीटनाशक का प्रयोग करने से कीटों और रोगों पर कीटनाशकों का प्रभाव होना खत्म हो जाता हैं।
- लीची की फसल में रासायनिक दवाओं का छिड़काव करते समय घोल में स्टीकर अवश्य मिलाएं।सोडा या डिटर्जेंट का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।