कपास की खेती क्यों करना चाहिए??
कपास की फसल का भारत में महत्वपूर्ण स्थान है।हमारा देश विश्व में कपास उत्पादक में दूसरा स्थान रखता है।पहले स्थान पर चीन का नाम आता है। कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है ।कपास एक नगदी फसल के अंतर्गत आने वाली फसल है ।कपास से प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है जिसका निर्यात कई देशों में किया जाता है। यही कारण है कि कपास देश की औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।कपास की बुवाई का उचित समय मई के माह में शुरू हो जाता है ।कपास की की खेती सिंचित व असिंचित दोनों भूमि में की जा सकती है।कपास के साथ दूसरी फसल की बुवाई करके भी किसान भाई अधिक लाभ कमा सकते हैं।आइए , कपास की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे।
कपास की खेती से संबंधित क्षेत्र
कपास नकदी फसल के अंतर्गत आने वाली फसल है।कपास उत्पादक देश में भारत का दूसरा स्थान है।पहले स्थान पर चीन का नाम आता है किंतु वर्तमान में कपास उत्पादक देश में पहला स्थान भारत ने हासिल कर लिया है।इस दौर में भारत ने चीन को पीछे छोड़कर पहले स्थान पर कपास उत्पादक देश में अपना नाम बनाया है क्योंकि 360 लाख गांठ कपास उत्पादन के साथ भारत प्रथम स्थान पर है।विश्व भर के कपास उत्पादन में भारत का 25% योगदान रहता है।इससे पूर्व चीन में भारत से ज्यादा कपास की खेती की जाती थी।विश्व का लगभग 38% कपास का उत्पादन भारत में होता है और भारत की 9.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती होती है।हमारे देश में कपास से संबंधित राज्य इस प्रकार हैं-
मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , आंध्र प्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान , पंजाब , हरियाणा , कर्नाटक , तेलंगाना , तमिलनाडु , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा और त्रिपुरा आदि है।
कपास की क्षेत्र के अनुसार विभिन्न किस्में
हमारे देश में वर्तमान में बी .टी. कपास का प्रचलन ज्यादा है। किसान भाई मिट्टी और क्षेत्र के अनुसार कपास की विभिन्न किस्म का चयन करें।कपास के कुछ विभिन्न किस्म किस प्रकार है-
उत्तरी क्षेत्र के लिए किस्में –
राजस्थान
देशी कपास – RG-8
नरमा (अमरीकन) कपास – RS-875 , RS-2013 , पूसा 8 व 6 , गंगानगर अगेती और बीकानेरी नरमा आदि।
संकर कपास – राज. HH-116 (मरू विकास)
पंजाब
देशी कपास – LD-230 , LD- 327 , LD- 491 , LD-694 , PAU- 626 और मोती।
नरमा (अमरीकन) कपास – F-286 , F-414 , F-846 , F-1378 , F-1861 , LS-886 , LH-1556 और पूसा-8 व 6।
संकर कपास – LDH-11 , LHH-144 और फतेह।
हरियाणा
देशी कपास – LDDS-1 , DS-5 , H- 107 और HD-123
नरमा (अमरीकन) कपास – HS-6 , HS-45 , H-1098 , FH-1117 और पूसा 8 व 6।
संकर कपास – HHH-223 , CSAA-2 ,धनलक्ष्मी और उमा शंकर।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
देशी कपास – लोहित और यामली
नरमा (अमरीकन) कपास – विकास
संकर कपास – HHH-223 , CSAA-2 ,धनलक्ष्मी और उमा शंकर।
मध्य क्षेत्र के लिए किस्में –
मध्य प्रदेश
देशी कपास – माल्जरी
नरमा (अमरीकन) कपास – KC-94-2 और कंडवा-3
संकर कपास – JKHY-1 और JKHY-2
गुजरात
देशी कपास – गुजरात कॉटन-11 और गुजरात कॉटन-15
नरमा (अमरीकन) कपास – गुजरात कॉटन-12 , गुजरात कॉटन -14 , गुजरात कॉटन -16 , CNH- 36 और LRK-516
संकर कपास – H-8 , H-10 , DH-5 और DH-7
महाराष्ट्र
देशी कपास – AKA-4 , PA-183 और रोहिणी
नरमा (अमरीकन) कपास – CNH-36 , PKV-081 , LRK-516 और रजत
संकर कपास – HHV-12 और NHH-44
दक्षिण क्षेत्र के लिए किस्में –
कर्नाटक
देशी कपास – G-22 और AK-235
नरमा (अमरीकन) कपास – Jk-119 , शारदा और अबदीता
संकर कपास – DDH-2 , DDH-11 , DCH-32 , DHB-105
तमिलनाडु
देशी कपास – K-10 और K-11
नरमा (अमरीकन) कपास – MCU-5 , MCU 7 , MCU-9 और सुरभि
संकर कपास – RCH-2 , DCH-32 , HB-224 , सविता और सूर्या
आंध्र प्रदेश
देशी कपास – NA-1315 और श्री साईंलम महानदी
नरमा (अमरीकन) कपास – LA-920 , LRA-5166 और कंचन
संकर कपास – HB-224 और सविता
कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
कपास की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी होना चाहिए जिससे जल भराव की समस्या ना हो।जहां सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो वहां कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी बलुई दोमट है।कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कपास की खेती अधिक जल धारण वाली मटियार मिट्टी में की जाती है।कपास हल्की अम्लीय और क्षरिय मिट्टी में बोई जा सकती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.0 के मध्य हो।
कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
कपास की उम्र को छुपाने के लिए जलवायु आदर्श जलवायु होना चाहिए और यदि कपास की बुवाई पर्याप्त सिंचाई वाले क्षेत्र में की गई हो तब फसल मई के माह में भी लगा सकते हैं किंतु सिंचाई की व्यवस्था ना होने पर मानसून की बारिश के होने के साथ कपास की फसल को लगाएं। कपास की फसल के लिए बारिश 50 सेंटीमीटर होना चाहिए किंतु 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा कपास की फसल को नुकसान पहुंचाती है।
कपास के लिए तापमान की बात की जाए तो फसल के उगने की अवस्था में तापमान 16°C , अंकुरण के समय 32 से 34°C , पौधों की वृद्धि के समय 21 से 27°C और फल के आने के समय दिन में तापमान 25 से 30°C और रात में ठंडी होना चाहिए।
कपास की खेती में खेत तैयार करने की प्रक्रिया
कपास की खेती में खेत तैयार करने के लिए अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं।दक्षिण और मध्य भारत में कपास के लिए उपयुक्त भूमि वर्ष वाली काली भूमि है।इन क्षेत्रों में खेत तैयार करने के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें।खेत की जुताई रबी की फसल के पश्चात करें जिससे खरपतवार नष्ट होकर बारिश का जल सिंचित हो सके।इसके पश्चात तीन से चार बार हैरो चलाएं।बुवाई से पहले खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें।
उत्तरी भारत में कपास की खेती मुख्य रूप से सिंचाई के आधार पर होती है। इन क्षेत्रों में खेत को तैयार करते समय एक सिंचाई करें उसके पश्चात खेत की एक से दो बार गहरी जुताई करें।खेत की तीन से चार बार हल्की जुताई करने के पश्चात खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें।खेत की जुताई के पश्चात् बुवाई करनी चाहिए। खेत में खरपतवार की समस्या न होने पर खेत की बिना जुताई या हल्की जुताई के बाद भी बुवाई की जा सकती है।
बीजों की मात्रा इस प्रकार हों
कपास की बुवाई में बीजों की मात्रा किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है।बीजों की बुवाई लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करें।कपास की देशी और नरमा किस्म की बुवाई में बीज लगभग प्रति हेक्टेयर 12 से 16 किलोग्राम होना चाहिए। वही संकर और बी.टी.किस्म के लिए लगभग प्रति हेक्टेयर 4 किलोग्राम प्रमाणिक बीच होना चाहिए। बीजों की क्वालिटी उन्नत हो जिससे उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त हो।
कपास की खेती में बीजोपचार करें
कपास की खेती में बीज उपचार अवश्य करें-
- बीजों से होने वाले रोगों से बचने के लिए बीज को 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में 8 से 10 घंटे तक भिगोए और सुखा लें इसके बाद बुवाई करें।
- फसल में जड़ गलन रोग से बचने के लिए लगभग प्रति किलोग्राम बीज में 10 ग्राम जीव नियंत्रक ट्राइकोड़मा हारजेनियम से उपचारित करें।यदि रासायनिक रूप से बीजों को उपचारित करना हो तब लगभग प्रति किलोग्राम बीज में रासायनिक फफूंदनाशी कार्बेन्डेजिम 50 WP की 2 ग्राम मात्रा या कार्बोक्सिन 70 WP की 3 ग्राम मात्रा या थाईरम की 3 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करें।
- बीज में छुपी हुई गुलाबी सुंडी को खत्म करने के लिए बीजों को धुमित कर देना चाहिए।बीजों की 40 किलोग्राम तक की मात्रा को धूमित करने के लिए एल्युमिनियम फास्फाइड की एक गोली बीजों में डालें और हवा ना लगने दें और 24 घंटे तक बंद रखें।यदि बीजों को धूमित ना करना हो तब तेज धूप में बीजों को पतली सतह के रूप में फैला कर 6 घंटे तक तेज धूप में तपने दें।
- सूखे की अवस्था में कपास की बुवाई करने पर यदि उत्पादन में वृद्धि के लिए लगभग प्रति किलोग्राम बीज में 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित करें।
- बीजों से रेशे हटाने के लिए लगभग 10 किलोग्राम बीजों में 1 लीटर व्यापारिक गंधक का तेजाब उपयोग करें।इसके लिए प्लास्टिक या मिट्टी के बर्तन में बीजों को डालकर तेजाब डालें और 1 से 2 मिनट तक लकड़ी से हिलाए बीज जैसे ही काला पड़े उसे बहते हुए पानी में और ऊपर तैरते हुए बीजों को अलग कर दे। गंधक के तेजाब से बीजों को उपचारित करने पर अंकुरण अच्छा होगा।
- कपास की फसल में नरमा किस्म के रेशे रहित बीजों को पत्ती मरोड़ वायरस और पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट से बचाने के लिए लगभग 1 किलोग्राम बीज में थायोमिथोक्साम 70 WS की 4 ग्राम मात्रा या इमिडाक्लोप्रिड 70 WS की 5 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करें।
कपास की खेती में बुवाई कैसे की जाए??
कपास की खेती में बुवाई किस्म के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है
- पॉलिथीन की थैलियां में पौधे तैयार करें जहां स्थान रिक्त हो वहां पर पौधों की रोपाई कर कपास की फसल में उत्पादन उचित तरीके से ले सकते हैं।
- कपास की फसल की बुवाई यदि लवणीय मिट्टी में की जाए तो बीजों को मेढ़े बनाकर मेड़ों पर उगाना चाहिए।
- कपास की बीटी किस्म की बुवाई बीजों की रोपाई करके होती है इसके लिए पौधों की आपसी दूरी 60 सेंटीमीटर और पंक्तियों की आपसी दूरी 108 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
- कपास की देशी किस्म में पौधों की आपसी दूरी 45 सेंटीमीटर और पंक्तियों की आपसी दूरी 60 सेंटीमीटर होना चाहिए।
- कपास की अमेरिकन किस्मों में पौधों की आपसी दूरी 45 सेंटीमीटर और पंक्तियों की आपसी दूरी 60 सेंटीमीटर होना चाहिए।
कपास की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किस आधार पर हों??
कपास की फसल में उर्वरक को और खाद का प्रयोग किस आधार पर हो इसकी जानकारी किसान भाई को होना आवश्यक है-
- कपास की फसल में बुवाई से 3 से 4 सप्ताह पूर्व लगभग प्रति हेक्टेयर में 25 से 30 तक सड़ी गोबर की खाद को जुताई करने के पश्चात मिट्टी में मिला दें।
- मिट्टी परीक्षण के अनुसार पोटाश उर्वरक का प्रयोग करें।फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बुवाई से पूर्व देना चाहिए और बाकी शेष आधी नत्रजन की मात्रा जब फूलों में कलियां बनने लगे तब देना चाहिए।
- कपास की अमेरिकन और बीटी किस्मों में रासायनिक खाद के रूप में लगभग प्रति हेक्टेयर में 35 किलोग्राम फास्फोरस और 75 किलोग्राम नत्रजन मिला दें और वही देशी किस्मों में लगभग प्रति हेक्टेयर में 25 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम नत्रजन की मात्रा को मिलाएं।
कपास की उन्नत खेती में सिंचाई कैसे की जाए??
- कपास की फसल में उर्वरक देने के पश्चात् और फूल आने लगे तब सिंचाई अवश्य करना चाहिए।
- कपास की खेती में बुवाई के पश्चात 5 से 6 बार सिंचाई करना चाहिए।
- कपास के नरमा या बीटी किस्म की पंक्तियों में ड्रिप लाइन डालने के स्थान पर पंक्तियों के जोड़े में ड्रिप लाइन डाले जिससे लागत कम जाएगी।
- जब फसल में अंकुरण हो जाए उसके पश्चात प्रथम सिंचाई 20 से 30 दिन पश्चात् करें जिससे पौधों की जड़े ज्यादा गहराई तक वृद्धि करती है और उसके पश्चात की सिंचाई 20 से 25 दिन में करें।
- बारिश होने पर बारिश की मात्रा को देखते हुए सिंचाई आवश्यकता अनुसार करें एक दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- जब फसल की बुवाई सुखी अवस्था में हो प्रतिदिन लगभग 2 घंटे के हिसाब से 5 दिन तक ड्रिप लाइन को चलाएं जिससे फसल में उगने की क्षमता अच्छी होती है और बुवाई के 15 दिन पश्चात बूंद बूंद सिंचाई करें।
- बूंद बूंद सिंचाई द्वारा नाइट्रोजन की मात्रा 6 हिस्सों में बराबर करके दो सप्ताह के अंतराल पर ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई करने से सतह सिंचाई से भी ज्यादा फायदा होता है।
- ड्रिप सिंचाई पद्धति से उत्पादन में वृद्धि होने के साथ ही जल की बचत हुई की गुणवत्ता में वृद्धि और कीड़ों से फसल को होने वाले नुकसान में कमी की जा सकती है।
- कपास की खेती में दूरी का विशेष ध्यान रखें।पौधे की आपसी दूरी 60 सेंटीमीटर , पंक्तियों की आपसी दूरी 60 सेंटीमीटर , ड्रिप लाइन में जोड़ों की आपसी दूरी 120 सेंटीमीटर और ड्रिप लाइन में ड्रिपर की आपसी दूरी 30 सेंटीमीटर होना चाहिए और इसके पानी की दर लगभग प्रति घंटा 2 लीटर होना चाहिए।
कपास की उन्नत खेती में निराई-गुड़ाई का कार्य
कपास की खेती में निराई-गुड़ाई का कार्य प्रथम सिंचाई होने के पश्चात कसौले से करें और उसके पश्चात एक से दो बार त्रिफाली का उपयोग करें। यदि कपास की फसल में मुख्य फसल के अलावा दूसरी किस्म के पौधे भी उग जाए तब निराई गुड़ाई के समय उन्हें अलग कर दे क्योंकि कपास की किस्म के मिश्रित होने से कीमत पर असर होता है।
कपास की फसल में खरपतवार को नष्ट करने के लिए रासायनिक विधि का भी प्रयोग किया जा सकता है इसके लिए फसल में बीजों की बुवाई के पक्ष और अंकुरण से पूर्व लगभग प्रति हेक्टेयर में 600 लीटर पानी में 833 मिलीलीटर पेन्डीमेथालीन 30 E.C. और बुवाई के पूर्व मिट्टी पर छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेयर में 600 लीटर पानी में 780 मिलीलीटर ट्राइलूरालीन 48 E.C. का छिड़काव करने से खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है। इन रसायनिक उत्पादों का प्रयोग बुवाई से पूर्व मिट्टी पर करें।
कपास की फसल में पुष्प और टिंडों को गिरने से कैसे बचाए??
कपास की फसल में पुष्प की कलियां और टिंडे स्वत: ही गिर जाते हैं। इन पुष्प की कलियों और टिंडों को गिरने से बचाने के लिए इन पर लगभग 100 लीटर पानी में 2 ग्राम NAA 20 PPM के घोल का छिड़काव फसल में कलियां बनते समय और टिंडों के बनने के साथ शुरुआत में करना चाहिए।
कपास की नरमा किस्म में जब टिंडे पूर्ण रूप से विकसित हो जाए और 60% टिंडे के खिल जाने पर लगभग प्रति बीघा में 150 लीटर पानी में 50 ग्राम ड्रॉप अल्ट्रा का घोल बनाकर छिड़काव करें। ऐसा करने से 15 दिन के अंतराल में पूर्ण विकसित लगभग सभी टिंडे खिलने लगते हैं ड्रॉप अल्ट्रा गोल का उपयोग करने का उचित समय 20 अक्टूबर से 15 नवंबर है इससे कपास के उत्पादन में भी वृद्धि होती है और गेहूं की बुवाई भी समय पर हो जाती है।
कपास की चुनाई का कार्य
कपास की चुनाई का कार्य जब टिंडे पूर्ण रूप से खिल जाए तब करना चाहिए। कपास में जब टिंडे 50 से 60% तक खिल जाए तब प्रथम चुनाई और शेष टिंडो के खिलने पर दूसरी चुनाई करना चाहिए।
कपास की उन्नत खेती से प्राप्त उत्पादन
कपास की उचित तरीके से की गई खेती से लगभग प्रति हेक्टेयर बीटी कपास से 30 से 50 क्विंटल , देशी कपास से 20 से 25 क्विंटल और संकर कपास से 25 से 32 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।