गर्मी के सीजन में भिंडी की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी
रबी फसलों की कटाई के पश्चात खेत खाली हो जाते हैं। किसान भाई रबी और खरीफ सीजन के मध्य के अंतराल में खेतों में ज़ायद सीजन की फसलों की खेती कर सकते हैं। कम भूमि वाले किसान भाई खेती से अधिक लाभ कमाने के लिए कई प्रकार की फसलों की खेती करते हैं। किसान इन खेती में सब्जियों की खेती करके काफ़ी अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त कर रहे हैं क्योंकि सब्ज़ियों की बाज़ार मांग हमेशा बनी रहती है और सब्ज़ियों की खेती से कम समय में काफ़ी अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त किया जा सकता है। इसी क्रम में भिंडी की खेती से काफ़ी अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। भिंडी एक कम अवधि में पकने वाली सब्ज़ी है। भिंडी की बाज़ार मांग हमेशा बनी रहती है जिससे इसका काफ़ी अच्छा भाव मिल जाता है। भिंडी की बाज़ार मांग के कारण भिंडी की खेती किसान भाइयों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। हमारे देश में भिंडी की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, पंजाब और हरियाणा राज्य में की जाती है। भिंडी की उन्नत तरीक़े से खेती करके कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। किसान भाइयों को गर्मी के मौसम में भिंडी की खेती की संपूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। आइए, गर्मी के मौसम में भिंडी की खेती में ध्यान रखने वाली विशेष बातों से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
भिंडी के स्वास्थ्यवर्धक फायदे
भिंडी का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फ़ायदेमंद होता है। भिंडी में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे – कैल्शियम, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज-लवण और विटामिन A, B और C आदि। इसके अतिरिक्त भिंडी में थायमिन और राइबोफ्लेविन भी पाया जाता है और इसमें आयोडीन की मात्रा भी अधिक होती है। भिंडी के सेवन से कब्ज़ से छुटकारा मिलता है। डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए भिंडी का सेवन काफ़ी लाभदायक होता है। भिंडी के सेवन से कैंसर की बीमारी दूर रहती है। एनीमिया रोग में भिंडी का सेवन फ़ायदेमंद होता है। इसके अतिरिक्त भिंडी हृदय संबंधी विकारों को दूर करने में सहायक होती है।
भिंडी की विभिन्न किस्में
भिंडी की विभिन्न किस्में हैं जैसे – अर्का अनामिका, अर्का अभय, हिसार उन्नत, वर्षा उपहार, परभनी क्रांति, पंजाब-7, पूसा A-4 और VRO-6 (काशी प्रगति) आदि।
गर्मी के सीजन में किसान भाई भिंडी की इन किस्मों की खेती कर सकते हैं जैसे – परभनी क्रांति, अर्का अनामिका और पूसा A-4 आदि।
भिंडी की बुवाई का उचित समय
भिंडी की खेती वर्ष में दो बार की जा सकती है – ज़ायद और खरीफ के सीजन में। ज़ायद की भिंडी अधिक फ़ायदा देने वाली होती है।
ज़ायद के सीजन में भिंडी की बुवाई फरवरी और मार्च के माह में की जाती है।
खरीफ के सीजन में भिंडी की बुवाई जून और जुलाई के माह में की जाती है।
भिंडी की खेती के लिए मिट्टी और तापमान का निर्धारण
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए। मिट्टी का pH मान 7 से 7.8 के मध्य होना चाहिए। भिंडी की खेती में तापमान की बात करें तो बीजों को अंकुरित होने के लिए उपयुक्त तापमान 20°C और पौधों के अंकुरित होने के पश्चात् पौधों के विकास के लिए उपयुक्त तापमान 30°C से 35°C होना चाहिए।
भिंडी की खेती में खेत तैयार करना
भिंडी की खेती में फसल की बुवाई से पूर्व खेत तैयार करना चाहिए। भिंडी की खेती में खेत तैयार करने के लिए खेत को 2 से 3 बार गहरी जुताई करें। मिट्टी को भुरभुरा और समतल बनाने के लिए पाटा का प्रयोग करें।
भिंडी की खेती में बीजों की मात्रा
भिंडी की खेती में बीजों की मात्रा असिंचित क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर लगभग 5 से 7 किग्रा और सिंचित क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर लगभग 2.5 से 3 किग्रा और भिंडी की संकर किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 5 किग्रा होनी चाहिए। बीजों को बुवाई से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए प्रति किग्रा बीज में मैंकोजेब कार्बेन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा का प्रयोग करें।
भिंडी की खेती में बुवाई की प्रक्रिया
भिंडी के बीजों की बुवाई सीधे खेत में की जाती है। भिंडी की बुवाई के लिए पूरे खेत को समान आकार की पट्टियों में बाँट लें ताकि सिंचाई करने में कोई समस्या ना हो। खरीफ के सीजन में भिंडी की बुवाई करने के लिए जलभराव की समस्या ना हो इसके लिए बुवाई ऊँची क्यारियों में करें।
यदि दूरी की बात की जाए तो क्यारियों की आपसी दूरी लगभग 40 से 45 सेमी होनी चाहिए और बीजों की बुवाई 3 सेमी से अधिक गहराई में ना करें।
भिंडी की फसल में सिंचाई व्यवस्था
भिंडी की खेती में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। भिंडी की खेती में सिंचाई करते समय जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए।
भिंडी की खेती में ज़ायद के सीजन में फसल की सिंचाई:
- मार्च माह में बुवाई के 10 से 12 दिन पश्चात
- अप्रैल माह में हर 7 से 8 दिन में
- जून माह में हर 4 से 5 दिन में करनी आवश्यक होती है।
खरीफ के सीजन में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
भिंडी में खाद एवं उर्वरकों की निश्चित मात्रा का करें प्रयोग
भिंडी की खेती में खाद एवं उर्वरकों के रूप में प्रति हेक्टेयर:
- सड़ी गोबर की खाद: 15 से 20 टन
- पोटाश: 60 किग्रा
- नत्रजन: 80 किग्रा
- स्फुर: 60 किग्रा
नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा बीजों की बुवाई से पहले मिट्टी में मिला दें। नत्रजन की शेष बची मात्रा को दो हिस्सों में बाँटकर 30 से 40 दिन के अंतराल पर प्रयोग करें।
भिंडी की खेती में निराई और गुड़ाई
भिंडी की खेती में खरपतवार ना हो इसके लिए समय-समय पर निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए भिंडी की बुवाई के 15 से 20 दिन पश्चात् प्रथम निराई एवं गुड़ाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त खरपतवार के नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
भिंडी से प्रति एकड़ प्राप्त कमाई
भिंडी की खेती में उन्नत तरीक़े का प्रयोग करके और उन्नत किस्म के बीजों की बुवाई करके प्रति एकड़ 5 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है। यदि लागत 1 लाख 50 हज़ार रुपए को हटा दिया जाए तब भी भिंडी की खेती से कम से कम 3 लाख 50 हज़ार रुपए तक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।