आलू की आधुनिक खेती : आधुनिक कृषि उपकरणों और तकनीक का करें प्रयोग और पाए अधिक लाभ

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आलू की खेती के लिए आधुनिक तकनीक और कृषि उपकरण

संपूर्ण विश्व में कृषि के क्षेत्र में धान, गेहूं और मक्का के पश्चात् सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल आलू है। वर्तमान में किसान परंपरागत खेती के अतिरिक्त अन्य खेती में जैसे आलू की खेती में अधिक मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। भारत में उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और गुजरात राज्य में भी आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। हमारे देश में आलू का उत्पादन करने वाला अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में भारत के कुल आलू उत्पादन का 35% आलू का उत्पादन किया जाता है। हमारे देश में उत्तर प्रदेश राज्य में लगभग 6.1 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश के किसान भाइयों का कहना है कि आलू की फसल की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग करना आवश्यक है। किसान भाइयों को आलू की खेती से संबंधित आधुनिक तकनीक का ज्ञान होना आवश्यक है। आइए, आलू की खेती से संबंधित वैज्ञानिक तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

आलू की विभिन्न किस्में

आलू की विभिन्न किस्में हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के किसान भाइयों द्वारा अधिक उत्पादन देने वाली किस्म का चयन किया जाता है। आलू की उन्नत किस्म इस प्रकार है:

  • कुफरी सिंदुरी
  • कुफरी लालिमा
  • कुफरी बहार
  • कुफरी सदाबहार
  • कुफरी पुखराज
  • कुफरी आनंद
  • कुफरी बादशाह
  • कुफरी सतलज
  • कुफरी अरूण आदि।

आलू की अगेती किस्में

  • कुफरी ख्याति
  • कुफरी अशोकी
  • कुफरी चन्द्रमुखी
  • कुफरी सूर्या
  • कुफरी बहार
  • कुफरी पुखराज आदि।

आलू की पछेती किस्में

  • कुफरी बादशाह
  • कुफरी आनंद
  • कुफरी सतलज आदि।

प्रोसेसिंग के लिए किस्में

  • कुफरी चिप्सोना-1
  • कुफरी चिप्सोना-3
  • कुफरी चिप्सोना-4
  • कुफरी फ्राईसोना
  • कुफरी सूर्या

आलू की खेती के लिए भूमि, जलवायु और तापमान का निर्धारण

आलू की खेती में मिट्टी की बात की जाए तो आलू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट और दोमट मिट्टी होना चाहिए। मिट्टी का pH मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। आलू की खेती के लिए जलवायु की बात की जाए तो आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु समशीतोष्ण जलवायु होती है। आलू की खेती के लिए तापमान की बात करें तो उत्तर प्रदेश में आलू की खेती रबी के मौसम में की जाती है। रबी के सीजन में दिन का तापमान 25°C से 30°C और रात में तापमान 4°C से 15°C होता है और यह तापमान आलू की खेती के लिए उपयुक्त होता है।

आलू की खेती के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें

आलू की खेती में अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत की अच्छी जुताई होना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश के किसान भाइयों के अनुसार आलू की भरपूर उपज प्राप्त करने के लिए गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई आवश्यक करें। आलू की बुवाई के समय खेत की कल्टीवेटर की सहायता से 2 बार जुताई करें। किसान भाई सही ट्रैक्टर और कृषि उपकरणों का प्रयोग करें। उत्तर प्रदेश के आलू की खेती करने वाले किसानों द्वारा महिंद्रा सीरीज के ट्रैक्टर का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। कृषि उपकरणों के सही चुनाव द्वारा श्रम और लागत में बचत हो जाती है।

आलू के उचित बीजों का चुनाव और बीजोपचार

आलू की खेती में उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना चाहिए। उत्तर प्रदेश के किसान भाई आलू की बुवाई में 40 से 50 तथा 60 से 100 ग्राम के आलू का चुनाव करते हैं। आलू के बीजों को बुवाई से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। बुवाई के लिए आलू को 15 दिन पूर्व कोल्ड स्टोरेज से निकाल लिया जाता है इसके पश्चात् बुवाई के लिए इन बीजों को 3% बोटिक एसिड से उपचारित करके 15 दिनों के लिए छांव में रखा जाता है ताकि बीज अंकुरित हो सकें।

आलू की बुवाई की उन्नत प्रक्रिया

आलू की बुवाई के लिए उन्नत विधि का चयन करें। आलू की बुवाई की उन्नत और वैज्ञानिक विधि से बुवाई करने पर अच्छा लाभ प्राप्त हो जाता है। उत्तर प्रदेश के किसान भाइयों द्वारा बुवाई करने के लिए यह अवश्य ध्यान रखा जाता है कि वह बुवाई से पूर्व खेत में नमी पर्याप्त होना चाहिए। खेत में पर्याप्त नमी होने पर अक्टूबर के पहले सप्ताह में खेत को पलेवा करके गहरी जुताई करें। आलू की बुवाई गहराई में करने के लिए ट्रैक्टर की हाइड्रोलिक सटीकता होना आवश्यक है। महिंद्रा XP प्लस ट्रैक्टर का mLift हाइड्रोलिक किसानों के लिए लोकप्रिय और फायदेमंद है।

आलू बुवाई मशीन : महिंद्रा पोटैटो प्लांटर

भारत के अलावा अन्य विकसित देशों में आलू की खेती के लिए आधुनिक कृषि तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस कारण हमारा देश आलू की खेती में अन्य देशों की तुलना में पीछे है। आलू की खेती उन्नत तकनीकों द्वारा करने पर अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। इसी क्रम में आलू की बुवाई के लिए महिंद्रा का महिंद्रा आलू प्लांटर मशीन किसान भाइयों के लिए फायदेमंद है। महिंद्रा पोटैटो प्लांटर आलू की बुवाई की एक सटीक मशीन है। महिंद्रा पोटैटो प्लांटर को विकसित करने का श्रेय महिंद्रा और उसके साथ वैश्विक पार्टनर डेल्फ को जाता है।

आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर की खासियत

आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर द्वारा आलू की बुवाई करने पर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसकी खासियत इस प्रकार है:

  1. आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर की खींचने की क्षमता काफी अच्छी है।
  2. आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर का हाई लेवल सिंगुलेशन आलू के बीजों को खराब नहीं होने देता जिससे आलू की अच्छी गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त होती है। यह एक जगह पर एक ही बीज की बुवाई करता है।
  3. आलू की बुवाई का महिंद्रा पोटैटो प्लांटर मशीन बीजों की बुवाई समान दूरी और गहराई पर करता है जिससे पैदावार अधिक प्राप्त होती है।
  4. आलू बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर का मैकेनिकल वाइब्रेटर से एक स्थान पर एक ही आलू की बुवाई होती है और एडजेस्टेबल रीडर द्वारा आलू के कंद तक पर्याप्त हवा और प्रकाश पहुंचने में सहायता मिलती है।
  5. आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर में लगे गहराई नियंत्रण पहिया द्वारा आलू की उचित गहराई पर बुवाई होती है। इसके द्वारा 20 से 60 मिलीमीटर आकार के आलू के बीजों की सरलतापूर्वक बुवाई की जा सकती है।
  6. आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा आलू पोटैटो प्लांटर का डिजाइन इस प्रकार है कि आलू के बीजों के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है जैसे कि सही या कटे हुए आलू को सीधी रेखा या जिगजैग पद्धति से किस गहराई पर बुवाई करना है।
  7. आलू की बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर आलू की बुवाई के समय उसे पर लकीरों का निर्माण कर देता है जिससे कंद के विकास में सहायता मिल जाती है।
  8. आलू बुवाई मशीन महिंद्रा पोटैटो प्लांटर में एक फर्टिलाइजर टैंक होता है जिससे बीजों की बुवाई के समय उर्वरकों का अनुपातिक वितरण किया जा सकता है।

आलू की सिंचाई कब करें?

आलू की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए निश्चित अंतराल पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई अवश्य करें। उत्तर प्रदेश के किसान भाई आलू की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7 से 10 सिंचाई करते हैं। आलू की खेती में सिंचाई के लिए आधुनिक विधि जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रयोग किया जाता है। स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा आलू की फसल में सिंचाई करने से पानी की 40% से 50% तक बचत होने के साथ ही उपज में 10% से 12% की वृद्धि हो जाती है। आलू की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के 8 से 10 दिन पश्चात् करना चाहिए। यदि आलू की बुवाई पलेवा करके ना की गई हो तब बुवाई के 2 से 3 दिन पश्चात् हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि खरपतवार में अधिक वृद्धि न हो। तापमान कम होने या पाले की स्थिति में सिंचाई करना चाहिए ताकि फसल को नुकसान ना हो।

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