ग्वार की बुवाई : किसान भाई सही समय पर करें ग्वार की बुवाई , नहीं होगा नुकसान

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जानिए, ग्वार की उन्नत खेती और खासियत

ग्वार की खेती करने वाले किसान भाइयों को कृषि विशेषज्ञों ने ग्वार की बुवाई मई माह में नहीं करने की सलाह दी हैं। इससे संबंधित नाथूसरी चौपटा खंड, सिरसा (हरियाणा) के कृषि विभाग के अधिकारी और ग्वार विशेषज्ञों की संयुक्त टीम किसानों को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं। इसी क्रम में नाथूसरी चौपटा खंड, सिरसा (हरियाणा) के ATM डॉ. मदन सिंह की निगरानी में ग्वार विशेषज्ञ के सहयोग द्वारा नाथूसरी चौपटा खंड के खेड़ी गांव में ग्वार की बुवाई समय से पूर्व ना करने और जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के लिए किसान भाइयों को जागरूक करने की दिशा में एक शिविर का आयोजन किया गया। शिविर के दौरान हुई वार्तालाप में ग्वार विशेषज्ञ डॉ. यादव ने ग्वार की उन्नत किस्मों, ग्वार के बीज उपचार, ग्वार की बुवाई सही समय पर और ग्वार में संतुलित खाद के प्रयोग से संबंधित जानकारी दी गई। नाथूसरी चौपटा खंड, सिरसा (हरियाणा) के ATM डॉ. मदन सिंह ने शिविर में संबोधित करते हुए ग्वार की बुवाई से पूर्व अपने खेत की मिट्टी और पानी की जांच कराने और खेती की पारंपरिक पद्धति के स्थान पर नई तकनीक को अपनाने की बात कही।
आइए, ग्वार की खेती में बुवाई का सही समय और खेती की उचित प्रक्रिया से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।

ग्वार के मुख्य उपयोग

ग्वार की खेती से प्राप्त होने वाली फलियों को सब्जी बनाने के लिए प्रयोग किया जाता हैं। ग्वार से प्राप्त ग्वार गम का प्रयोग कपड़ा उद्योग, पेपर उद्योग और इमारत की लकड़ी की फिनिशिंग में किया जाता हैं। ग्वार के बीजों का उपयोग गोंद उद्योग के अतिरिक्त पेट्रोलियम उद्योगों में भी किया जाता हैं। ग्वार के बीजों को गोंद बनाने में प्रयुक्त किया जाता हैं। ग्वार से गोंद निकालने के पश्चात् इससे कई प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं जैसे – ग्वार चूरी, ग्वार खली, ग्वार कोरमा और ग्वार आटा जो प्रोटीन से भरपूर होता हैं। यह पशुओं के आहार में सम्मिलित किया जाता हैं। ग्वार के दानों को पशु आहार के लिए प्रयोग किया जाता हैं। ग्वार से प्राप्त शुष्क चारे को पशु आहार में सम्मिलित किया जाता हैं।

ग्वार की उन्नत किस्में

ग्वार की उन्नत किस्में जैसे – HG 365, HG 563 और HG-2-20 किस्म आदि।

किसान भाई ग्वार की बुवाई मई के माह में क्यों नहीं करें?

हरियाणा में सिरसा जिले के नहरी क्षेत्र में कपास (नरमा) की बुवाई करने के पश्चात् किसान भाइयों की सामान्य धारणा यह रहती हैं कि नहर का पानी उपलब्ध होने पर वे अपने खेत में पानी लगाकर मई के माह में ग्वार की बुवाई कर देते हैं। ग्वार विशेषज्ञ डॉ. यादव ने किसान भाइयों को ग्वार की बुवाई मई के माह में नहीं करने की सलाह दी हैं। इसका मुख्य कारण यह हैं कि यदि किसान भाई द्वारा ग्वार की बुवाई मई के माह में की जाती हैं तब फसल की वृद्धि अधिक हो जाएगी और फसल के गिरने की संभावना अधिक होगी। इसके अतिरिक्त नीचे की फलियां सिकुड़ कर सूख जाएगी और फलों की उत्पादकता में कमी आएगी। इन सभी कारणों से ग्वार के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव होगा।

ग्वार की बुवाई का सही समय और जड़ गलन रोग पर नियंत्रण

किसान भाई ग्वार की बुवाई दो समय पर कर सकते हैं — यदि ग्वार की खेती सब्जी के लिए की जा रही हो तब ग्वार की बुवाई फरवरी से मार्च के माह में की जा सकती हैं। यदि ग्वार की खेती पशुओं के दाने और चारे के लिए की जा रही हो तब ग्वार की बुवाई जून से जुलाई के माह में करना चाहिए। ग्वार की बुवाई जून या जुलाई के माह में की जा सकती हैं। कुछ क्षेत्रों में ग्वार की बुवाई सितंबर से अक्टूबर के माह में की जाती हैं। ग्वार की बुवाई का सही समय 15 जून तक होता हैं। किसान भाई सिंचित क्षेत्रों में जब भी नहर का व्यर्थ पानी उपलब्ध हो जाए तब ग्वार की बुवाई प्रारंभ कर सकते हैं।

ग्वार की फसल में जड़ गलन रोग पर नियंत्रण करने के लिए बीजों को उपचारित करना आवश्यक हैं। ग्वार की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके बुवाई करें। बीजों को उपचारित करने के लिए प्रति किग्रा बीज में कार्बन्डाजिम 50% (बेविस्टीन) की 3 ग्राम मात्रा से बीजों को 15 से 20 मिनट सूखा उपचारित करके ही बीजों की बुवाई करें।

ग्वार की खेती की उन्नत प्रक्रिया

ग्वार की खेती जायद और खरीफ दोनों सीजन में की जा सकती हैं। ग्वार की खेती के लिए काली मिट्टी को छोड़कर किसी भी मिट्टी में की जा सकती हैं। ग्वार की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी दोमट मिट्टी होती हैं। ग्वार की बुवाई के लिए खेत तैयार करते समय मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से पहली जुताई करें। इसके पश्चात् कल्टीवेटर की सहायता से 2 जुताई करें। खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का प्रयोग करें। ग्वार की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 5 से 8 किग्रा होना चाहिए। ग्वार की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करने के लिए फॉस्फोरस सोलूबलाइजिंग बैक्टीरिया (P.S.B.) और राईजोबियम कल्चर का प्रयोग करें।

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