प्राकृतिक खेती ने बदल दी किसान की किस्मत, सिर्फ 15 हजार खर्च कर कमाएं लाखों

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प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) लागत कम करने के साथ फसल उत्पादन बढ़ाने में सक्षम है. इसे अपनाकर किसान अपनी आमदनी दोगुनी कर सकते हैं.

देश का किसान आज एक ऐसी व्यावहारिक खेती विधि की तलाश में है जिससे उसकी कृषि की लागत घटे और उत्पादन और आय में बढ़ोतरी हो.

प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) लागत कम करने के साथ फसल उत्पादन बढ़ाने में सक्षम है. इसे अपनाकर किसान अपनी आमदनी दोगुनी कर सकते हैं.

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के युवा किसान सुनील दत्त प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपनाकर न सिर्फ अपनी खेती की लागत को कम किया, बल्कि खेती में खरपतवारों को कम करने का तरीका भी इज़ाद किया.

खरपतवार की समस्या हुई तीन वर्षों से प्राकृतिक खेती से जुड़े सुनील दत्त अपने एक दोस्त के साथ मिलकर 35 कनाल जमीन में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. इन दोनों मेहनती किसानों ने अपने खेत में 5 तरह की गेहूं की किस्मों के साथ एक दर्जन से अधिक सब्जियों को लगाया है.

उसने बताया कि प्राकृतिक खेती विधि को अपनाने के बाद उन्होंने खेतों में गोबर और अन्य रासायनों को प्रयोग पूरी तरह बंद कर दिया. इसके बदले में वे प्राकृतिक खेती विधि में बताए हुए आदानों का इस्तेमाल करते हैं.

जिसकी वजह से उनकी खरपतवार की समस्या कम हुई है और उत्पादन में भी किसी तरह का कोई असर नहीं पड़ा.

किसानों को दी ये सीख सुनील बताते हैं कि अगर किसान खरपतवारों से बचना चाहते हैं, तो वे खेत में एक ही तरह की फसलें लगाने के बजाए हर सीजन में फसलों को बदलकर लगाया करें.

उन्होंने बताया कि जिस खेत में ज्यादा खरपतवार की समस्या हो उसमें अगली फसल बरसीन की लगाएं और इसके बाद उसमें धान की फसल लगाए.

इससे अगली बार खरपवार कम होंगे. इसके अलावा उन्होंने बताया कि गोबर से भी खरपतवारों की संख्या में बढ़ोतरी होती है इसके लिए जीवामृत और घनजीवामृत का प्रयोग करना चाहिए.

उनके दोस्त बताते हैं कि प्राकृतिक खेती में उन्हें अच्छे नतीजे देखने को मिले. इस खेती विधि में उन्हें बार-बार जोताई करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. क्षेत्र के अन्य किसान भी इसे अपनाने शुरू कर चुके हैं. अभी तक उन्होंने 150 से अधिक किसानों को इस खेती विधि से जोड़ चुके हैं.

कम लागत में ज्यादा मुनाफा

सुनील प्राकृतिक खेती विधि से कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. वो मूली, करेला, शलगम, धनिया, पालक, लहसुन, मटर, गेहूं, धान, मक्की, गोभी और आम की खेती करते हैं.

हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, रासायनिक खेती में वो 1 लाख रुपये खर्च कर 4 लाख की कमाई करते थे, जबकि प्राकृतिक खेती में खर्च घटकर 15,000 रुपये हो गया और मुनाफा वही रहा.

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