जानिए : प्याज की खेती में खर्चा घटाने के ये 6 उपाय
वर्तमान में खेती की बात करें तो किसानों के लिए प्याज की खेती नगदी फसल के रूप में होने लग गई है क्योंकि प्याज एक ऐसी सब्जी है जिसकी मांग वर्ष भर रहती है। भारत में अधिकांश प्रदेशों में किसानों द्वारा प्याज की खेती की जाती है। प्याज की मांग दैनिक जीवन में घरों में होने के साथ ही होटल और ढाबों आदि जगहों पर भी होती है। इन बढ़ती मांग को देखते हुए ही प्याज के भाव में उतार चढ़ाव होता रहता है। कभी-कभी प्याज का भाव इतना होता है कि किसानों को भरपूर मुनाफा प्राप्त हो जाता है, कभी-कभी प्याज में नुकसान भी उठाना पड़ता है। प्याज की खेती में कम लागत पर बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के बारे में जानेंगे वह तरीके जिससे किसान भाई कम लागत में बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें। प्याज की खेती में 6 तरीके इस प्रकार हैं-
(1) मौसम के अनुसार प्याज की किस्मों को बोए
जिन किसान भाइयों द्वारा प्याज की खेती की जाती है, सबसे पहले उनको यह ध्यान रखना चाहिए कि वह प्याज की खेती किस मौसम में करना चाहते हैं क्योंकि मौसम के अनुसार ही प्याज की किस्मों का चयन किया जाना चाहिए। सामान्य रूप से प्याज की खेती वर्ष में दो बार की जा सकती है। प्याज की खेती रबी सीजन और खरीफ सीजन में की जाती है और किसानों द्वारा एक ही किस्म को दोनों सीजन में लगा दिया जाता है जिससे कि उत्पादन पर असर होता है और लागत भी ज्यादा होती है। किसानों को प्याज की खेती में सीजन के अनुसार प्याज की किस्म का चयन करके प्याज की खेती करना चाहिए। इसके लिए किस्मों के बारे में जानिए।
खरीफ सीजन के लिए – N-53, N-257-1, F-1 हाईब्रिड सीड ऑनियन, एग्री फाउंड डार्क रेड और ब्राउन स्पेनिश आदि।
रबी सीजन के लिए – एग्री फाउंड रोज, रतनारा पूछा, अर्का कीर्तिमान, पूसा रेड और कल्याणपुर रेड राउंड आदि।
सीजन के अनुसार प्याज की उन्नत किस्म का चयन करके किसान भाई कम लागत में बेहतर मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
(2) प्याज के पौधे तैयार करने का तरीका
प्याज की खेती में लागत को कम करने के लिए प्याज के पौधे तैयार करने की प्रक्रिया भी ध्यान में रखना चाहिए। इसके लिए खेत में पंक्तियां बनाएं जिसका आकार 10×10 हो। इसके पश्चात बीजों को बोने के लिए बीजों की मात्रा लगभग प्रति एकड़ 5 किलोग्राम प्रयोग करें और बीजों की बुवाई से पूर्व उनको फफूंद नाशक दवा से उपचारित कर लें। अब क्यारियों में बीजों को बोएं। बीजों की बुवाई के पश्चात लगभग 30 से 35 दिन बाद पौधे तैयार हो जाते हैं। इन पौधों का रोपण खेत में करें।
(3) रोपाई इस प्रकार करें
प्याज की फसल में बुवाई के पश्चात जब पौधे तैयार हो जाते हैं, तब इन पौधों का रोपण मुख्य खेत में किया जाता है। इसके लिए खेत तैयार करें। खेत तैयार करने के लिए खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। खेत की दो से तीन जुताई कल्टीवेटर से करें, उसके पश्चात भूमि को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें। प्याज की खेती में पौधों की रोपाई भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंचाई पर की जाती है, जिसके लिए 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी होना चाहिए। इसके लिए किसान भाइयों को खेत रेज्ड बेड सिस्टम से तैयार करना चाहिए। प्याज के पौधे का रोपण अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में होना चाहिए जिससे कि जल भराव की समस्या ना हो और पौधों को नुकसान ना पहुंचे।
(4) पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा का करें प्रयोग
प्याज की फसल एक ऐसी फसल है जिसमें अधिक मात्रा में पोषक तत्व की आवश्यकता होती है, इसलिए प्याज की फसल में पोषक तत्व को संतुलित मात्रा में ही प्रयोग करना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण करने के पश्चात ही खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। प्याज की खेती में लागत को कम करने के लिए खाद एवं उर्वरकों की निश्चित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। प्याज की फसल में पौधों के रोपण के 1 से 2 माह पहले सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर 20 से 25 मात्रा में प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद के रूप में लगभग प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम स्फुर, 50 किलोग्राम पोटाश और 100 किलोग्राम नत्रजन का प्रयोग करें। रासायनिक खाद के रूप में इनके अतिरिक्त प्याज की गुणवत्ता में सुधार के लिए लगभग प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम जिंक और 25 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करें। इसके पश्चात खेत में प्याज का रोपण करें और आवश्यकता अनुसार निश्चित अंतराल में सिंचाई करते रहें।
(5) समय-समय पर करें सिंचाई
प्याज की खेती में आवश्यकतानुसार समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए क्योंकि सिंचाई में कमी होने पर प्याज की गुणवत्ता में असर होता है। खरीफ सीजन में प्याज की बुवाई पर बारिश होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, किंतु मानसून चले जाने पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। किसान भाई इस बात का ध्यान रखें कि कंद बनते समय सिंचाई में कमी ना रहे, अन्यथा पैदावार पर असर होता है और पैदावार में कमी आती है। पानी की कमी होने पर शल्क कंद जल्दी फट जाते हैं और फसल जल्दी आती है जिससे पैदावार कम प्राप्त होती है। प्याज की फसल में अधिक मात्रा में सिंचाई होने पर भी कई रोग जैसे पानी बैंगनी धब्बा हो जाता है। प्याज की फसल में आवश्यकता अनुसार 8 से 10 दिनों के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए और यदि अधिक सिंचाई या अधिक बारिश होने पर खेत में पानी भर जाए तब पानी निकालने की उत्तम व्यवस्था हो। इसके लिए प्याज का रोपण अच्छी जल निकासी वाली भूमि में होना चाहिए जिससे कि जलभराव की समस्या ना हो। पानी की कमी होने और पानी की अधिकता दोनों ही अवस्था में प्याज की फसल को नुकसान होता है।
(6) खरपतवार नियंत्रण कैसे करें??
प्याज की खेती में भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए बताए गए तरीकों में एक तरीका यह है कि खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। यह प्याज के खेत में फसल आने तक तीन से चार निराई गुड़ाई हो जानी चाहिए। प्याज के पौधे एक दूसरे के पास लगाए जाते हैं और उनकी जड़ें भी उथली रहती हैं, जिससे निराई गुड़ाई करने से पौधों को हानि होती है, इसलिए रासायनिक रूप से खरपतवार को नष्ट करें। रासायनिक खाद के रूप में पौधों के रोपण के 3 दिन के पश्चात लगभग प्रति हेक्टेयर 750 लीटर पानी में पेंडीमैथलीन 2.5 से 3.5 लीटर या फिर ऑक्सीफ्लोरोफेन 600 से 1000 मिलीलीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें। इस घोल के छिड़काव से खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है।
इन 6 तरीकों के प्रयोग से और बेहतर तकनीक से खेती कर किसान भाई प्याज की खेती में लागत कम कर सकते हैं और अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।