नींबू की खेती कैसे करें : नींबू की खेती में उन्नत किस्मों का करें चयन और पाए भरपूर लाभ

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नींबू की खेती क्यों करें??

इन दिनों नींबू की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे आम आदमी की रसोई का बजट गड़बड़ा गया है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के बढ़ते दामों के बीच नींबू की कीमतें भी बेतहाशा बढ़कर 70 रुपये से 400 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी हैं। सब्जी बाजार में एक नींबू 10 रुपये में बिक रहा है, जिससे यह गर्मी के मौसम में लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है।विशेषज्ञों के अनुसार, नींबू की कीमतें जल्द ही कम होने के आसार नहीं हैं। भारत में नींबू को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है। इसके औषधीय गुण और सालभर बनी रहने वाली मांग इसे खास बनाते हैं। भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा नींबू उत्पादक देश है, में इसकी खेती तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, असम, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और नींबू के पौधे को एक बार लगाने के बाद 10 साल तक पैदावार मिलती है। पौधे रोपने के 3 साल बाद यह पूरी तरह तैयार हो जाता है और सालभर उत्पादन देता है। एक एकड़ में नींबू की खेती से 4-5 लाख रुपये तक सालाना कमाई की जा सकती है। कई किसान नींबू की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और इसे एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं।यदि आप भी नींबू की खेती कर मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो अच्छी किस्मों का चयन और बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। सही जानकारी और बाजार की स्थिति का विश्लेषण आपको इसमें सफलता दिला सकता है। नींबू की खेती से जुड़ी जानकारी के लिए विशेषज्ञों से परामर्श करें और स्थानीय मंडियों के भाव पर नजर बनाए रखें।नींबू की बढ़ती कीमतें जहां आम आदमी के लिए चुनौती बन रही हैं, वहीं किसानों के लिए इसे एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है।

नींबू की उन्नत किस्में

नीबू की विभिन्न किस्में होती हैं, जो अलग-अलग उपयोगों के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख किस्में जैसे फ्लोरिडा रफ, करना, खट्टा नीबू, जंबीरी, आदि विशेष रूप से प्राकंद के काम में आती हैं। वहीं, कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल और लाइम सिलहट मुख्य रूप से घरेलू उपयोग में प्रचलित हैं, जिनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। यह किस्म खासतौर पर अपने पतले छिलके और रसीले फल के लिए जानी जाती है।
भारत में कागजी नीबू का उत्पादन प्रमुख रूप से मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर और बड़ौदा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इन क्षेत्रों में नीबू की उपज अच्छे से होती है, जिससे इसकी उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है। नींबू की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं-

(1) प्रमालिनी किस्म

नींबू की प्रमालिनी किस्म व्यापारिक रूप वाली किस्म हैं।नींबू की इस किस्म के फल गुच्छों के रूप में होते हैं।नींबू की इस किस्म से 57% तक रस प्राप्त होता हैं।नींबू की प्रमालिनी किस्म से प्राप्त फल प्रति पौधा लगभग 50 किग्रा होते हैं।

(2) बारामासी किस्म

नींबू की बारामासी किस्म वर्ष में 2 बार फल देने वाली किस्म हैं।नींबू की इस किस्म के फलों के पकने का समय जुलाई से अगस्त और फरवरी से मार्च तक होता हैं।नींबू की बारामासी किस्म से प्राप्त फल प्रति पौधा लगभग 55 से 60 किग्रा होते हैं।

(3) विक्रम किस्म

नींबू की विक्रम किस्म अधिक उपज देने वाली किस्म हैं।पंजाब में विक्रम किस्म को पंजाबी बारहमासी के नाम से भी जाना जाता हैं।नींबू की इस किस्म के फल गुच्छों के रूप में होते हैं।नींबू की इस किस्म से एक गुच्छे से लगभग 7 से 10 नींबू प्राप्त होते हैं।

(4) कागजी नींबू किस्म

नींबू की कागजी नींबू किस्म को भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता है।नींबू की इस किस्म से 52% तक रस प्राप्त होता हैं।
नींबू की कागजी नींबू किस्म से प्राप्त फल प्रति पौधा लगभग 50 से 55 किग्रा होते हैं।

(5) मीठा नींबू किस्म

मीठा नींबू किस्म के फल की कोई विशेष किस्म नही होती हैं।नींबू की कागजी नींबू किस्म से प्राप्त फल प्रति पौधा लगभग 300 से 500 किग्रा होते हैं।

इसके अतिरिक्त नींबू की अभयपुरी लाइम , करीमगंज लाइम , साई शरबती , चक्रधर , विक्रम और PKM-1 आदि किस्में है जो अधिक रस और उपज वाली किस्में हैं।

नींबू की खेती के लिए मिट्टी का निर्धारण

नींबू मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है और इसका मूल स्थान संभवतः भारत है। यह पौधा हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता है और समुद्रतल से लेकर 4,000 फीट की ऊंचाई तक के मैदानी इलाकों में भी सफलता से उगाया जा सकता है।

नींबू के पौधे के लिए बलुई और दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा, लाल लेटराइट मिट्टी में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है। खास बात यह है कि अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में भी नींबू की खेती संभव है, जिससे यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में अनुकूल हो जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है, लेकिन पौधे को सर्दी और पाले से बचाने की आवश्यकता होती है।
नींबू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 4 से 9 के बीच होना चाहिए। इस प्रकार, नींबू के पौधे अनुकूल मिट्टी और जलवायु में अच्छा उत्पादन देते हैं और इन्हें विविध प्रकार की परिस्थितियों में उगाना संभव है।

नींबू की खेती के लिए जलवायु का निर्धारण

नींबू के पौधों के लिए अर्ध-शुष्क जलवायु सबसे आदर्श मानी जाती है। ऐसे क्षेत्रों में जहां सर्दियां अत्यधिक तीव्र होती हैं या पाला पड़ता है, वहां नींबू की खेती में पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्दी के कारण पौधों का विकास रुक जाता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में कमी आती है।
इस वजह से भारत में नींबू की सबसे अधिक खेती उष्ण जलवायु वाले दक्षिणी राज्यों में की जाती है। हालांकि, उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में भी नींबू की खेती की जाती है। लेकिन जब इन क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में ठंड का स्तर बढ़ जाता है, तो नींबू की पैदावार पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है।
इसलिए, नींबू की अच्छी फसल के लिए ऐसी जलवायु का चयन करना जरूरी है, जहां सर्दियों में तापमान मध्यम रहे और पाले का खतरा न हो।

नींबू की बुवाई की उचित प्रक्रिया

नींबू की खेती के लिए दो प्रमुख विधियां अपनाई जाती हैं – बीज बुआई और पौधों की रोपाई। हालांकि, पौधों की रोपाई विधि अधिक प्रभावी और समय की बचत करने वाली होती है। इस विधि से नींबू के पौधे जल्दी विकसित होते हैं और फसल भी बेहतर होती है, जबकि बीज से बुआई करने में अधिक समय और मेहनत लगती है।

अगर आप पौधों की रोपाई से नींबू की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी से एक महीने पुराने और स्वस्थ पौधे खरीदें। ऐसे पौधे जो रोगमुक्त हों और अच्छी तरह विकसित हो रहे हों, खेती के लिए आदर्श होते हैं। यह विधि न केवल आसान होती है, बल्कि समय की बचत भी करती है और फसल जल्दी तैयार होती है।
वहीं, यदि आपको उन्नत किस्म के पौधे उपलब्ध न हों, तो बीज से बुआई का विकल्प अपनाना चाहिए। बीज बुआई की प्रक्रिया लंबी होती है और इसमें अधिक मेहनत लगती है, लेकिन यह स्थिति में उपयोगी होती है जब विशेष किस्म की पौध नर्सरी में उपलब्ध न हो। दोनों विधियों के लिए सही तैयारी और देखभाल से उत्तम परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

नींबू के पौधों के रोपण की प्रक्रिया

नींबू के पौधों की रोपाई के लिए जून से अगस्त का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान बारिश के मौसम में पौधों को प्राकृतिक जल उपलब्ध होता है, जो उनकी तेजी से वृद्धि में सहायक होता है। साथ ही, इस समय तापमान पौधों की बढ़वार के लिए अनुकूल रहता है। पौधों की रोपाई के बाद वे तीन से चार वर्षों में फल उत्पादन के लिए तैयार हो जाते हैं।
नींबू के पौधों को लगाने के लिए खेत में पहले से गड्ढे तैयार करने होते हैं। गड्ढों के बीच 10 फीट की दूरी रखना आवश्यक है ताकि पौधे फैलकर आसानी से विकास कर सकें। गड्ढों का आकार लगभग 70 से 80 सेंटीमीटर चौड़ा और 60 सेंटीमीटर गहरा होना चाहिए। गड्ढों में मिट्टी और गोबर की खाद को समान अनुपात में मिलाकर भरें और फिर पौधों की रोपाई करें।
नींबू की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर खेत में लगभग 600 पौधे लगाए जा सकते हैं। इस प्रकार की रोपाई विधि न केवल पौधों के विकास को सुनिश्चित करती है, बल्कि उत्पादकता को भी बढ़ाती है।

नींबू के पौधों में सिंचाई की व्यवस्था

नींबू के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, खासकर जब इनकी रोपाई या बीजाई जून से अगस्त के बीच की जाती है। यह समय वर्षा ऋतु का होता है, जिससे प्राकृतिक रूप से पौधों को पर्याप्त नमी मिल जाती है। हालांकि, यदि इस दौरान बारिश नहीं होती, तो 15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करना आवश्यक है। इस हल्की सिंचाई का उद्देश्य मिट्टी में 6-8 प्रतिशत तक नमी बनाए रखना होता है।
सर्दियों के मौसम में पौधों को पाला और ठंड से बचाने के लिए प्रति सप्ताह एक बार सिंचाई करनी चाहिए। इसके अलावा, जब पौधों में कलियों का विकास होने लगे, तो सिंचाई करना आवश्यक है। लेकिन जैसे ही कलियां बनने लगें, पानी देना रोक देना चाहिए, क्योंकि अधिक पानी के कारण फूल कमजोर हो जाते हैं और झड़ने लगते हैं, जिससे पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पौधों की सिंचाई नियमित अंतराल पर ही करनी चाहिए। अत्यधिक पानी देने से खेत में जलभराव की समस्या हो सकती है, जो नींबू के पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक है। उचित नमी बनाए रखना और अधिक पानी से बचाव करना, पौधों की स्वस्थ वृद्धि और उच्च उत्पादकता के लिए आवश्यक है।

नींबू की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

नींबू के पौधों को स्वस्थ और उत्पादक बनाने के लिए समय पर उचित मात्रा में खाद देना अत्यंत आवश्यक है। खेत में पौधों की रोपाई के बाद गोबर की खाद और यूरिया का सही अनुपात में उपयोग करना चाहिए।

पहले वर्ष प्रत्येक पौधे को 5 किलोग्राम गोबर की खाद दी जानी चाहिए। दूसरे वर्ष इस मात्रा को बढ़ाकर 10 किलोग्राम प्रति पौधा कर देना चाहिए। इसके बाद, हर वर्ष पौधों में फल लगने तक गोबर की खाद की मात्रा को इसी अनुपात में बढ़ाते रहना चाहिए।
इसी प्रकार, नींबू के पौधों को यूरिया की आवश्यकता भी होती है। पहले वर्ष प्रत्येक पौधे को 300 ग्राम यूरिया देना चाहिए। दूसरे वर्ष यह मात्रा बढ़ाकर 600 ग्राम प्रति पौधा कर देनी चाहिए। इसके बाद, पौधों के विकास के अनुसार यूरिया की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए।यूरिया की खाद विशेष रूप से सर्दियों के महीनों में देनी चाहिए। इसे एक बार में देने की बजाय, दो से तीन बार में विभाजित कर पौधों में डालना चाहिए। इस तरह खाद का उचित उपयोग पौधों की जड़ों तक पोषण पहुंचाने में मदद करता है, जिससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं और अधिक उपज देते हैं।इस प्रकार, गोबर की खाद और यूरिया के नियमित और संतुलित उपयोग से नींबू के पौधों की बेहतर वृद्धि और फलन सुनिश्चित होती है।

नींबू में लगने वाले कीट-रोग एवं नियंत्रण के उपाय

नींबू के पौधों पर कीटों और रोगों का प्रकोप फसल की गुणवत्ता और पैदावार पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। इनसे बचाव और नियंत्रण के लिए एन्थ्रेकनोज मिश्रण का छिड़काव एक प्रभावी उपाय है। इसका छिड़काव न केवल एन्थ्रेकनोज जैसे मुख्य रोगों पर नियंत्रण करता है, बल्कि अन्य प्रकार के कीट और रोगों से भी पौधों की रक्षा करता है।

(1) आयरन व जिंक की कमी का नियंत्रण

कभी-कभी मिट्टी में जिंक और आयरन की कमी के कारण नींबू के पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इसके लक्षणों में पौधों की पत्तियों का पीला पड़ना और समय से पहले गिरना शामिल है।मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद डालें और जिंक की कमी को पूरा करने के लिए 10 लीटर पानी में 2 चम्मच जिंक पाउडर मिलाकर इसका छिड़काव करें।

(2) सफेद धब्बे का रोग

सफेद धब्बे के रोग में नींबू के पौधों के ऊपरी भाग में रुई जैसे सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। इसके कारण पत्तियां मुड़कर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं और बाद में यह रोग फल पर भी असर डालता है।जैसे ही इस रोग का पता चले, तुरंत प्रभावित पत्तियों को काटकर जला दें।रोग के बढ़ने पर कार्बेनडाजिम का छिड़काव महीने में तीन से चार बार करें, जिससे रोग का नियंत्रण किया जा सकता है।

(3) काले धब्बे का रोग

काले धब्बे के रोग का असर मुख्य रूप से नींबू के फल पर देखा जाता है। इस रोग के कारण फल पर काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग को नियंत्रित करने के लिए शुरुआत में पानी से फल को अच्छी तरह से धोकर रोग को फैलने से रोका जा सकता है।सफेद तेल और कॉपर को मिलाकर पानी में घोल तैयार करें और फिर पौधों पर इसका छिड़काव करें। यह उपाय रोग के नियंत्रण में मदद करता है।

(4) कैंकर रोग

कैंकर रोग के लक्षण दिखाई देने पर पौधों पर स्ट्रेप्टोमाइसिल सल्फेट का छिड़काव 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए। यह उपाय रोग को नियंत्रित करने में प्रभावी होता है और पौधों को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

(5) गोंद रिसाव रोग

गोंद रिसाव रोग मुख्य रूप से खेत में पानी भरने के कारण होता है, जिससे पौधों की जड़ें गलने लगती हैं और पौधा पीला पड़ने लगता है। इस रोग से बचाव के लिए सबसे पहले खेत से पानी को पूरी तरह से निकालें फिर मिट्टी में 0.2 प्रतिशत मैटालैक्सिल, एमजेड-72 और 0.5 प्रतिशत ट्राइकोडरमा विराइड मिलाकर पौधों की जड़ों में डालें। इस उपचार से पौधों को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है और रोग का प्रभाव कम होता है।

(6) रस चूसने वाले कीट

नींबू के पेड़ की शाखाओं और पत्तियों का रस चूसकर उन्हें कमजोर करने वाले कीट, जैसे कि सिटरस सिल्ला, सुरंगी और चेपा, पर नियंत्रण पाने के लिए मोनोक्राटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए। यदि पौधों की शाखाएं रोग से प्रभावित होकर सूख जाएं, तो उन्हें तुरंत काटकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि रोग और न फैल सके।

नींबू की खेती से प्राप्त कमाई

नींबू के पौधे लगाने के बाद इन्हें केवल नियमित देखभाल और उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है। समय के साथ इनकी उत्पादकता में भी वृद्धि होती जाती है।नींबू के एक पेड़ से औसतन 20 से 30 किलोग्राम तक उपज प्राप्त होती है। वहीं, मोटे छिलके वाले नींबू की उपज प्रति पेड़ 30 से 40 किलोग्राम तक हो सकती है। बाजार में नींबू की मांग पूरे वर्ष बनी रहती है, जिससे किसान को लगातार आय का स्रोत मिलता है।नींबू का मंडी भाव आमतौर पर 40 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होता है। इस हिसाब से, एक एकड़ भूमि पर की गई नींबू की खेती से किसान को प्रति वर्ष लगभग 4 से 5 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है।

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