मूंग की खेती : तकनीकी रूप से करे मूंग की उन्नत खेती और बढ़ाए अपनी आए

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मूंग की खेती : मूंग राजस्थान में खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली महत्पूर्ण दलहनी फसल हैl राज्य में इसकी खेती 12 लाख हेक्टयर क्षेत्र में की जाती हैl राज्य में मूंग के सकल क्षेत्रफल की औसत उपज काफी कम हैl निम्न उन्नत तकनीक के प्रयोग द्वारा मूंग की पैदावार को 20 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता हैI

किस्मपकने की अवधि (दिनों में )औसत उपजविशेषतायें
आर एम जी-6265-706-9सिंचित एवं अ सिंचित क्षत्रो के लिए उपयुक्तI राइजक्टोनिया ब्लाइट कोण व् फली छेदन किट के प्रति रोधक ,फलिया एक साथ पकती है I
आर एम जी-26862-708-9सूखे के प्रति सहनसीलI रोग एवं कीटो का कम प्रकोपI फलिया एक साथ पकती है I
आर एमजी-34462-727-9खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्तI ब्लाइट को सहने की क्षमता चमकदार एवं मोटा दाना I
एस एम एल-66862-708-9खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्तlअनेक बिमारियों एवं रोगो के प्रति सहनसील I पीत शिरा एवं बैक्टीरियल ब्लाइट का प्रकोप कम I
गंगा-870729-10उचित समय एवं देरी दोनों के लिए उपयुक्त , खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त I पीत शिरा एवं बैक्टीरियल ब्लाइट का प्रकोप कम I
जी एम-462-6810-12फलिया एक साथ पकती है Iदाने हरे रंग के तथा  बड़े आकर के होते है
मूंग के -85170-808-10सिंचित एवं अ सिंचित क्षत्रो के लिए उपयुक्त I चमकदार एवं मोटा दाना I

मूंग की खेती के लिए भूमि की तैयारी

मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैl भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहियेl पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए तथा फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से एवं एक जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिएl

मूंग की खेती के लिए बीज की बुवाई


मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिएl देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती हैl स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाला तथा उपचरित बीज बुवाई के काम लेने चाहिएl वुबाई कतरों में करनी चाहिए l कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है l

मूंग की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक


दलहन फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती हैl मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है l नाइट्रोजन एवं फास्पोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा  बुवाई के समय देनी चाहिएl मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम एक बार  5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिएl इसके अतिरिक्त 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिएl खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिटटी की जाँच कर लेनी चहियेl

मूंग की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण

फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात तक पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिये या  इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मी. ली . मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

मूंग की खेती के लिए रोग तथा किट नियंत्रण


दीमक
दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैl बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए  बोनेके समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए I

कातरा
कातरा का प्रकोप बिशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है l इस किट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है l इसके  नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये l कतरे की लटों पर क्यूनालफोस1 .5  प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये I

मोयला,सफ़ेद मक्खी एवं हरा तेला

ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैंI इनकी रोकथाम के किये मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए.सी या  मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार दोबारा चिकाव किया जा सकता है l
पती बीटल
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूंनफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए l

फली छेदक
फली छेदक को नियंत्रित  करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव /भुरकाव  किया जा सकता है।

रस चूसक कीड़े
मूंग की पतियों ,तनो एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैंI इन कीड़ों की रोकथाम हेतु एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मी.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15  दिन  के अंतराल पर करें I

चीती जीवाणु रोग

इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे  के रूप में दिखाई देते है I इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्रामया स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए I

पीत शिरा मोजेक
इस रोग के लक्षण फसल की पतियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते हैI फैले हुए पीले धब्बो के रूप  में रोग दिखाई देता हैI यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता हैI इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल दिमेटान 0.25 प्रतिशत व मैलाथियोन 0.1प्रतिशत मात्रा को मिलकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी  होता है I 

तना झुलसा रोग
इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।

पीलिया रोग
इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये I

सरकोस्पोरा  पती धब्बा
इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं I पौधों की पत्तियां,जड़ें व अन्य भाग भी सुखने लगते हैंI इस के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की1ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चहिये बीज को 3 ग्राम केप्टान या २ ग्राम कार्बेंडोजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाइये
किंकल विषाणु रोग

इस रोग के कारण पोधे की पत्तियां सिकुड़ कर इकट्ठी हो जाती है तथा पौधो पर फलियां बहुत ही कम बनती हैं। इसकी रोकथाम हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. आधा लीटर अथवा मिथाइल डीमेंटन 25 ई.सी.750 मि.ली.प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए l ज़रूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चहिये I

जीवाणु पती धब्बा, फफुंदी पती धब्बा  और विषाणु रोग

इन रोगो की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम १ ग्राम , सरेप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान  25 ई .सी.की एक मिली.मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये l

फसल चक्र

अच्छी पैदावार प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने

हेतु उचित फसल चक्र आवश्यक है l वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग -बाजरा तथा सिंचित क्षेत्रों में मूंग-गेहू/जीरा/सरसो फसल चक्र अपनाना चहिये l

मूंग की खेती के लिए बीज उत्पादन

मूंग के बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत चुनने चहिये जिनमें पिछले मौसम में मूंग अन्हिं उगाया गया हो l मूंग के लिए निकटवर्ती खेतो से संदुषण को रोकने के लिए फसल के चारो तरफ 10 मीटर की दुरी तक मूंग का दूसराखेत नहीं होना चहिये l भूमि की अच्छी तैयारी,उचित खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग ,खरपत वार, कीड़े एवं विमारियों के नियंत्रण के साथ साथ समय समय पर अवांछनीय पौधों को निकालते रहना चहिय तथा फसल पकने पर लाटे को अलग सुखाकर दाना निकाल कर ग्रेडिंग कर लेना चहियेI बीज को साफ करके उपचारित कर सूखे स्थान में रख देना चाहिये I इस प्रकार पैदा किये गये बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है I

मूंग की खेती के लिए कटाई एवं गहाई


मूंग की फलियों जब काली परने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए I अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है I फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है I

मूंग की खेती के लिए उपज एवं आर्थिक लाभ

उचित विधिओं के प्रयोग द्वारा खेती करने पर मूंग  की 7 -8  कुंतल  प्रति हेक्टयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है I एक हेक्टयर क्षेत्र में मूंग की खेती करने के लिए 18 – 20 हज़ार
रुपए का खर्च आ जाता है I  मूंग का भाव 40 रु . प्रति किलो होने पर 12000 /- से 14000 रूपये  प्रति हेक्टयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है I  

स्त्रोत: राजसिंह एवं शैलेन्द्र कुमार,केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), जोधपुर


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नमस्ते! मैं कपिल पाटीदार हूँ। सात साल से मैंने खेती बाड़ी के क्षेत्र में अपनी मेहनत और अनुभव से जगह बनाई है। मेरे लेखों के माध्यम से, मैं खेती से जुड़ी नवीनतम तकनीकों, विशेषज्ञ नुस्खों, और अनुभवों को साझा करता हूँ। मेरा लक्ष्य है किसान समुदाय को सही दिशा में ले जाना और उन्हें बेहतर उत्पादकता के रास्ते सिखाना।
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