Kisan News: किसान मिश्रित खेती से किसान कमा सकते है अधिक मुनाफा, ऐसे करें मिश्रित खेती

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मिश्रित खेती का इतिहास हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। सदियों से कृषि और पशुपालन की प्रथा चली आ रही है और उसके महत्व से भी सभी परिचित हंै। खेती के साथ पशुपालन करना एक-दूसरे से जुड़ा हुआ था क्योंकि खेती के लिये ऊर्जा (पावर) पशुओं के द्वारा ही प्राप्त होता था साथ में गाय/भैंस को खिलाने के लिये पर्याप्त भूसा भी खेती से ही मिलता था। इस तरह खेती और पशुपालन एक-दूसरे के लिये परिहाय या यूं कहें कि पूरक ही थे।

पशुओं से प्राप्त गोबर खाद का उपयोग खेती के लिये उपयोगी और आवश्यक होता था। सीमित आबादी, लम्बी-चौड़ी जोत के चलते दशकों यह चक्र चलता रहा परंतु धीरे-धीरे जनसंख्या का विस्तार होता गया और कुटुम्ब/परिवार बढ़ते गये बंटवारे की जरूरत सामने आने लगी और जरूरत के अनुरूप अनाज इस सीमित कृषि क्षेत्र से पाना असंभव होने लगा और इस चुनौती का सामना करने के विकल्प की खोज शुरू हो गई। कहावत है अविष्कार की तह में आवश्यकता ही रहती है।

कम क्षेत्र से अधिक अन्न की प्राप्ति के लिये अनुसंधान के द्वारा विभिन्न फसलों की बोनी किस्मों को पैदा किया गया जिनकी खुराक अधिक थी केवल धरती में उपलब्ध पोषक तत्वों के भरोसे उनकी क्षमता के अनुसार पैदावार सम्भव नहीं थी इस कारण रसायनिक उर्वरकों के उपयोग का युग शुरू हुआ रसायनिक उर्वरकों की मांग भरपूर पानी होती है इस कारण जतन किये गये और जगह-जगह जहां जैसा सम्भव था छोटे, मध्यम, बड़े बांध बनाकर वर्षा के जल का संग्रहण किया गया और खेतों में लहलहाती फसल को काटने/गहाने के लिये मशीनों के उपयोग का युग भी इस प्रगति में जुड़ गया बस इसी मशीनीकरण/नवीनीकरण के कारण खेती से पशुओं के अटूट रिश्ते में दरार पडऩे लगी और धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्र में भी खेती के साथ पशुपालन के व्यवसाय को एक बड़ा धक्का लगा।

दशकों तक अंधाधुंध उर्वरकों के उपयोग के साथ अनियंत्रित जल के उपयोग करने से भूमि के स्वास्थ्य पर असर पडऩे लगा और हमारी आधुनिक खेती के दुष्परिणाम सामने आने लगे और एक बार फिर से सभी का ध्यान खेती के पुराने तरीकों पर वापस जाने पर बाध्य हो गया विशेषकर जैविक खादों के विस्तार और विकास पर परंतु आज हम इस विकास के पथ पर इतनी दूरी तय कर चुके हंै कि एकाएक वापस जाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है क्योंकि वर्तमान की हमारी आवश्यकतायें इतनी बढ़ चुकी हैं कि उनकी ओर से ध्यान हटाना भी संभव नहीं होगा।

आज हमारे सामने ढेरों विकल्प भी हंै। पशुपालन तो एक महत्वपूर्ण अंग है ही खेती का, पर इस खेती को मुनाफे की बनाने के लिये मुर्गी पालन/मछली पालन भी व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण है। पहले मुर्गीपालन/मछली पालन को समुदाय विशेष की सीमा में बांध कर रखा गया था परंतु आज यह स्थिति नहीं है सभी के लिए इस व्यवसाय को करने के लिये अनुदान की पात्रता है। आज मशरूम पालन, खेती के साथ मधुमक्खी पालन करने के लिये सभी स्वतंत्र हैं।

वर्तमान में कृषकों को इन विषयों पर विधिवत प्रशिक्षण देने के लिये कृषि विज्ञान केन्द्रों का मकडज़ाल जिलों-जिलों तक फैला है छोटी जोत के कृषकों को चाहिये कि इस मुनाफे की खेती के लिये मिश्रित खेती का कितना बड़ा योगदान है इसको समझें और अमल भी करें। खेती के साथ बकरीपालन बड़े सस्ते में किया जा सकता है और बड़ा लाभ लिया जा सकता है बकरी दूध के साथ मांस के लिये भी पाली जा सकती है। इस तरह यदि देखा जाये तो खेती एक बड़ा विशाल शब्द है इससे जुड़े अनगिनत धंधे हो सकते हंै। यह तो कृषक की इच्छा है जहां चाह वहां राह, इस बात को समझें और यदि उसे मुनाफे की खेती करना है तो मिश्रित खेती के किसी भी पक्ष को पकडक़र अपनी तथा देश की प्रगति में अपना योगदान दें।

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