मेहंदी की खेती : मेहंदी की उन्नत खेती करे और जाने इसके तकनीकी तरीके…….

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Mehandi ki kheti : मेंहंदी जिसे ‘हिना’ भी कहते हैं, का वानस्पतिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है। यह लाइर्थिएसी कुल का सदस्य है। मेहंदी को संस्कृत में मेहन्दिका, बंगला में मेहंदी, मराठी में मेंधी और गुजराती में मेंदी के नाम से पुकारा जाता है। यह एक बहुशाखीय, बहुवर्षीय एवं व्यावसायिक फसल है। इसकी पत्तियों का मुख्य तौर पर उत्पादन प्राकृतिक रंग (डाई) तैयार करने के लिए किया जाता है। यह पौधा सम्पूर्ण भारत में बहुतायत में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह मिस्र, अफ्रीका, अरब और ईरान आदि देशों में भी मिलता है। यह पौधा ईरान का मूल निवासी है। मेहंदी, राजस्थान की एक महत्वपूर्ण फसल है। राजस्थान के पाली जिले में मेहंदी का उत्पादन सबसे अधिक होता है। अधिकतर किसान इसकी पत्तियों को सूखे पाउडर के रूप में पैकिंग कर निर्यात करते हैं।

मेहंदी एक झाड़ीदार छोटा वृक्ष है। इसकी शाखाएं कांटेदार, नुकीले पर्ण अभिमुख क्रम में, लंबे, अग्र भाग की ओर कम चौड़े, एवं सरल धार वाले होते हैं। इसके पुष्प हरिताभ श्वेत, गुच्छों में सुगंधित, शाखाग्र फल गोल व कई बीजों वाले होते हैं। एक बार लगाने के बाद कई वर्षों तक इसकी फसल ली जा सकती है। इसकी फसल सितंबर-अक्टूबर तक काट ली जाती है तथा फरवरी से पुनः पौधा स्फुटन करने लगता है।

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Mehandi मेहंदी औषिधीय उपयोग

मेहंदी के पत्तों, छाल, फल और बीजों का उपयोग विभिन्न औषधियों के उत्पादन में किया जाता है। औषधीय रूप से मेहंदी कफ व पित्तनाशक, शोथहर तथा वर्णशोधक होती है। इसके फल निद्राजनक, शोथहर और ज्वरनाशक तथा बीज अतिसार एवं प्रवाहिका होते हैं। पत्तियों और फूलों से तैयार पेस्ट कुष्ठ रोगों में उपयोगी होता है। इसकी पत्तियों का रस, सिरदर्द और पीलिया के निवारण में प्रयोग किया जाता है। मेहंदी में लासोन 2-हाइड्रोक्सी, 1-4 नाप्थ विनोन, रेजिन, टेनिन गौलिक एसिड, ग्लूकोज, वसा, म्यूसीलेज व क्विनोन आदि तत्व पाये जाते हैं। इसकी खेती कंकरीली, पथरीली और हल्की, भारी सभी तरह की भूमि पर की जा सकती है। यह पौधा गर्म व शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में सरलता से उगता है। बीजों व कलमों द्वारा मेहंदी का प्रवर्धन भी किया जाता है। मार्च-अप्रैल में छायादार स्थान पर तैयार नर्सरी में बीजों को छिड़कना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव करने के लिए 20 कि.ग्रा. बीजों की मात्रा पर्याप्त होती है। 14 से 20 दिनों के अंतराल पर बीजों का अंकुरण होता है। जब पौधे की ऊंचाई 40-50 सें.मी. तक हो तब उन्हें खेत में सीधी लाइनों में 50 सें.मी. की दूरी पर रोपना चाहिए। इस समय खेत की मिट्‌टी अच्छी तरह गीली होनी चाहिए। मेहंदी की खेती में सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे पत्तों के रंजक तत्वों में कमी आ जाती है। रोपण के एक माह बाद खेत में निराई कर अनावश्यक खरपतवारों को बाहर निकाल देना चाहिए। मार्च-अप्रैल में इसकी प्रथम कटाई जमीन से लगभग 2-3 इंच ऊपर से करनी चाहिए। 

मेहंदी एक बहुवर्षीय सूखारोधी पौधा

आगामी वर्षों में प्रतिवर्ष दो कटाई करनी चाहिए, जिनमें से प्रथम कटाई अक्टूबर-नवंबर एवं दूसरी कटाई मार्च में करनी चाहिए। कटाई कर इसे छोटी-छोटी ढेरियों में सुखाकर संग्रहित करना चाहिए। प्रतिवर्ष 15-20 क्विंटल सूखे पत्ते प्रति हैक्टर की दर से प्राप्त होते हैं। मेहंदी एक बहुवर्षीय सूखारोधी झाड़ीनुमा पौधा है। राजस्थान में इसकी खेती पत्तियों में पाये जाने वाले रंग (1 से 2.5 प्रतिशत लासोन) के लिए की जाती है, जो कि केश रंगने और पारंपरिक साज-सज्जा में काम आता है। इसके अलावा फूलों से प्राप्त सुगंधित तेल (इत्र) और पौधे के विभिन्न औषधीय गुण सुप्रसिद्ध हैं। स्त्रियां इसकी पत्तियां पीसकर हाथ-पांव में लाल रंग रंगने के काम में उपयोग करती हैं। इसके पुष्प, हरिताभ-श्वेत, गुच्छों से सुगंधित शाखाग्र खिलते हैं तथा फल गोल एवं कई बीज वाले होते हैं। मेहंदी के पौधे सम्पूर्ण भारत में पाए जाते हैं। कई जगह इनको खेतों में और बगीचों की मेड़ों पर भी लगाया जाता है तथा फेंसिंग के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। इसके फूलों की अत्यधिक मीठी सुगंध मन को भाती है। वर्तमान में सोजत की मेहंदी का कई ब्रांड नामों से विपणन हो रहा है। अकेले पाली में लगभग 3,400 महिलाओं और पुरुषों को मेहंदी व्यवसाय द्वारा रोजगार मिल रहा है। 125 से अधिक ब्रांड नामों से बिकने वाली मेहंदी के कारण ही सोजत मंडी का नाम पश्चिमी राजस्थान में मेहंदी मंडी के नाम से प्रसिद्ध है, जहां मेहंदी बेचने के लिए दूर गांवों से आने वाले किसानों के लिए सभी तरह की उचित व्यवस्था है।

मेहंदी की खेती के जलवायु और भूमि

मेहंदी के पौधे अनेक प्रकार की मृदा व जलवायु में उगाये जा सकते हैं। अच्छी गुणवत्ता की पैदावार के लिए सामान्य बलुई दोमट मृदा एवं उष्ण और शुष्क जलवायु उत्तम है। मेहंदी के पुनर्विकास और अच्छी वृद्धि के लिए तेज धूप, शुष्क वातावरण और गर्मी जरुरी है। यह कम पानी तथा लवणीय व क्षारीय भूमि में भी बड़ी आसानी से वृद्धि करती है। इन्हीं कारणों से पश्चिमी राजस्थान में सीमांत शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र मेहंदी उत्पादन के लिए श्रेष्ठ साबित हुए हैं। इसकी खेती की विधि सरल है और सीमित संसाधनों पर निर्भर करती है।

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Mehandi ki kheti ke liye खेत की तैयारी

यह एक बहुवर्षीय फसल है, जो एक बार लगाने पर वर्षों तक (100 साल) उत्पादन देती रहती है। जिस खेत में मेहंदी लगानी होती है, उस खेत की पहले मिट्‌टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। इससे भूमि से लगने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। मानसून की पहली बरसात के साथ खेत में 2-3 जुताई कर पाटा लगाकर खेत को तैयार करें।

Mehandi ke liye पौधरोपण

मेहंदी फसल की शुरुआत पौधरोपण से होती है। एक हैक्टर में पौधरोपण के लिए 1.5 × 10 मीटर की 8-10 क्यारियां तैयार की जाती हैं। क्यारियों में 40-50 सें.मी. गहरी बलुई मिट्‌टी होनी चाहिए। इसके अलावा 8-10 टन प्रति हैक्टर की दर से सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट डालनी चाहिए। दीमक नियंत्रण के लिए मिथाइल पाराथियॉन 10 प्रतिशत चूर्ण मिलाना चाहिए। मेहंदी का बीज बहुत छोटा होता है, अतः 5-6 कि.ग्रा. बीज उपचारित कर क्यारियों में समान दर से बोना चाहिए। क्यारियों को समतल व उठे स्थान पर बनाना चाहिए, जिससे पानी का निकास आसानी से हो सकता है।

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मेहंदी की खेती के लिए बीज उपचार

बीज को 10-15 दिनों तक लगातार पानी में भिगोकर रखा जाता है। हर दिन ताजे पानी का प्रयोग करते हुए समय की बचत के लिए 3 प्रतिशत नमक के घोल में एक दिन भिगोकर उसके बाद बाकी दिनों साधारण पानी में रखकर धोना चाहिए। इसके पश्चात बीजों को हल्के छायादार स्थान में रखकर सुखाना चाहिए। सुखाने के बाद बीजों को क्यारियों में बोना चाहिए।

राजस्थान में मेहंदीराजस्थान देश में मेहंदी पत्ती का सबसे प्रमुख उत्पादक प्रदेश है। इस प्रदेश के पाली जिलों विशेषकर सोजत और मारवाड़ में मेहंदी मुख्य फसल के रूप में ली जाती है। इसीलिए यह क्षेत्र इसके उत्पादन का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। जिले की 40,000 हैक्टर क्षेत्रफल में फैली मेहंदी की व्यावसायिक खेती से किसानों, व्यापारियों और इससे जुड़े हुए उद्योगों को प्रतिवर्ष 40 करोड़ रुपये से अधिक की आमदनी होती है। इसी कारण सोजत पूरे विश्व में मेहंदी उत्पादन और विपणन की प्रमुख मंडी है। सोजत क्षेत्र में मेहंदी का पाउडर बनाने तथा मेहंदी की सपफाई करने वाले लगभग 50-60 कारखाने लगे हुए हैं। इन कारखानों के मालिक अपना उत्पाद तैयार कर पूरे विश्व के साथ-साथ भारत के दूरदराज के गांवों, कस्बों और शहरों में भी आपूर्ति करते हैं। 

मेहंदी का बुआई का समय

मेहंदी की बुआई फरवरी-मार्च में करते हैं। पौधों की रोपाई का उचित समय जुलाई-अगस्त रहता है। बुआई के बाद झारे की सहायता से पानी देते रहना चाहिए, जिससे अंकुरण ठीक प्रकार से हो सके।

मेहंदी बुआई की विधि

उपचारित बीज की मात्रा के बराबर रेत मिलाकर बीज को क्यारियों में छिड़ककर बुआई करते हैं। इसके बाद  हल्का झाड़ू फेरकर व बारीक सड़ा हुआ गोबर ऊपर से छिड़ककर बीज को ढक दिया जाता है।

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मेहंदी की खेती की सिंचाई विधि

10 से 15 दिनों में बीज का अंकुरण पूरा होने तक प्रतिदिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। बाद में हर दूसरे दिन या आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई करते समय ध्यान रहे कि पानी तेज गति से नहीं डालें, जिससे बीज पानी के साथ बह न सके।

मेहंदी निराई-गुड़ाई

बुआई के 20-30 दिनों बाद और समय-समय पर हल्की निराई-गुड़ाई करते हैं। पौधशाला में पौधे 3 से 4 माह की अवधि में 30 से 45 सें.मी. की ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं और खेत में स्थानांतरित करने योग्य हो जाते हैं। जब जुलाई में मानसून आ जाता है, तब पौधों की दूसरे खेत में रोपाई करनी चाहिए।

मेहंदी में लगने वाले कीटों एवं रोगों का प्रंबधनमेहंदी में लगने वाले कीटों एवं रोगों के उपचार के लिए काजरी संस्थान ने कीट एवं रोगनाशकों, जैव कीटनाशियों एवं जैव नियंत्रण द्वारा कापफी सफलता प्राप्त की है, जो निम्न प्रकार है :रोगनाशी रसायनों द्वारा कीट एवं रोग की रोकथाम   सायनिक नियंत्रण बाविस्टिन (1.5 ग्राम/लीटर पानी) + मोनोक्रोटोफॉस (1 मि.ली./लीटर पानी) के घोल का छिड़काव कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए अत्याधिक प्रभावी पाये गए। कीट नियंत्रण में 40 प्रतिशत से 2.25 प्रतिशत तथा रोग नियंत्रण 43 प्रतिशत से 8.4 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई।   पाली जिले के सोजत में ट्राइकोडर्मा (1 कि.ग्रा.), वर्मीकम्पोस्ट (40 कि.ग्रा. + फोरेट 20 ग्राम/प्लांट) का उपचार करने पर मेहंदी की फसल उत्पादन में वृद्धि पाई गई। अतः मृदा उपचार व पत्ती उपचार द्वारा मेहंदी की फसल का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।जैविक नियंत्रण जैव नियंत्रण द्वारा कीटों एवं रोगों की रोकथाम के लिए 1 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा कल्चर को 40 कि.ग्रा., वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर पौधे के चारों ओर डाल दें। फोरेट का उपचार करने से जड़गलन रोग एवं दीमक का प्रकोप नियंत्रित हो जाता है। लट्‌ट को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरोध भी हो जाता है तथा पैदावार दर बढ़ जाती है। खेत में दीमक से छुटकारा पाने के लिए पहले खेत की 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। फिर नीम की खली का चूर्ण 50-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से डालना चाहिए। नर्सरी में समय-समय पर नीम की पत्तियों के घोल का छिड़काव, दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए करना चाहिए। 

रोपाई

रोपाई के लिए खेत में पहले हल, तवेदार (हैरो) और कल्टीवेटर चलाकर मिट्‌टी भुरभुरी कर ली जाती है। दीमक नियंत्रण के लिए खेत में 25 कि.ग्रा./हैक्टर मिथाइल पाराथियॉन या क्लोरपाइरीफॉस डस्ट का छिड़काव तथा उत्पादकता व जल संग्रहण बढ़ाने के लिए 5 टन/हैक्टर कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए। पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्त में बरसात के बाद जल्दी की जाती है। पौधशाला में उपलब्ध पौध (जड़ से उखाड़े पौधे) के अधिकतम तने व जड़ों को काटकर छोटा करके खेत में स्थानांतरित करते हैं। खेत में रोपाई लाईन से लाईन 45 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. की दूरी पर खूंटी से 10-15 मि.मी. गहरा गड्‌ढा करके की जाती है। क्लोरपाइरीफॉस 35 ई.सी. घोल में जड़ों को गीला करके लगाने से दीमक से अतिरिक्त बचाव होता है। जड़ को सूखने से रोकने के लिए आसपास की मिट्टी को अच्छी तरह दबाना अति महत्वपूर्ण है। रोपण कार्य पूर्ण होने के बाद एक-दो बरसात होना जरुरी है, ताकि रोप खेत में सफलतापूर्वक स्थापित हो सके। रोपे गए पौधों के उचित विकास के लिए 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन पौधरोपण के समय देनी होती है।

मेहंदी की खेती के लिए सिंचाई

सामान्यतः मेहंदी की खेती बरसात पर आधारित खरीफ फसल के रूप में लेते हैं। सफल रोपण के बाद दो या तीन अच्छी वर्षा मेहंदी पत्ती उत्पादन के लिए पर्याप्त है। प्रथम वर्ष पौधरोपण के बाद वर्षा नहीं होने पर मेहंदी की सफल स्थापना के लिए एक सिंचाई की आवश्यकता रहती है। इसके उत्पादन बढ़ाने या अत्यधिक सूखे से फसल को बचाने के लिए सिंचाई करना एक वैकल्पिक जरुरत है।

मेहंदी की खेती के लिए अंतरासस्य व पोषण

खरपतवार नियंत्रण और नमी संरक्षण के लिए निराई-गुड़ाई जरुरी है। प्रथम वष कुदाली से और बाद के वर्षों में हल चलाकर कर सकते हैं। मेहंदी फसल में एक से दो गुड़ाई 30-50 दिनों के अंतराल पर की जाती है। पौधों की उचित बढ़वार के लिए मेहंदी के स्थापित खेतों या बागानों में हर वर्ष प्रथम निराई-गुड़ाई के समय 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन उर्वरक पौधों की कतारों के दोनों तरफ डालनी चाहिए। अच्छी बरसात की स्थिति में दूसरी निराई-गुड़ाई के समय इसे दोहरायें।

मेहंदी की खेती के लिए कीट एवं रोग

मेहंदी में मुख्यतः लगने वाले कीट, पत्ती निष्पत्रक (लीफ डिफोलिएटर), सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई), एफिड, मॉइलासिरस बीटल एवं दीमक हैं। उनमें से पत्ती निष्पत्रक का प्रकोप फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इस कीट का लार्वा पत्तियों को अपना भोजन बनाता है तथा बहुत नुकसान पहुंचाता है। इस कीट का संक्रमण मुख्यतः जुलाई से सितंबर के बीच पाया जाता है। इससे लगभग 35-50 प्रतिशत तक नुकसान होता है। राजस्थान में मेहंदी में किसी भयंकर रोग का प्रकोप नहीं पाया जाता है, किन्तु वर्षा के मौसम में ऑल्टरनेरिया नामक कवक पत्तियों में गहरे भूरे रंग के धब्बे बनाते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं, जिससे पत्तियां समय से पूर्व गिर जाती हैं। इसके अतिरिक्त मेहंदी की कई वर्षों तक फसल लेने से इसमें मृदा रोग का प्रकोप पाया गया है। यह रोग मेहंदी की जड़ों को ग्रसित करता है, जिसे चारकोल जड़ गलन रोग कहते हैं। इस रोग का जनक राइजोबटोनिया बटाइकोला होता है। ऐसी जड़ें कवक रोग के कारण काले रंग की हो जाती हैं। ग्रीष्म काल में वर्षा न होने तथा अधिक तापमान के कारण मेहंदी के पौधे इस रोग से ग्रस्त होकर सूख जाते हैं।

मेहंदी की खेती के लिए कटाई

मेहंदी की फसल को साल में एक या दो बार काटते हैं। मुख्य फसल मानसून के बाद तेज गर्मी से पत्तियां पकने पर अक्टूबर-नवंबर में काटी जाती है। कटाई का समय उत्पादन की दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। शाखाओं के निचले भाग में पत्तियां पूरी तरह पीली पड़ने पर और स्वतः झड़ने से पहले ही मेहंदी की फसल काट लेनी चाहिए। पत्तियों का आधा उत्पादन पौधों के निचले एक चौथाई भाग से मिलता है। पत्तियों से भरी डालियों/शाखाओं को जमीन के नजदीक से काटकर सूखे खेत या अन्य स्थान पर खुले में सूखने के लिए तीन-चार दिनों तक छोड़ दिया जाता है। सुखाते समय फसल बरसात/पानी से भीगनी नहीं चाहिए। एक भी बौछार कटी हुई मेहंदी की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। इसलिए कटाई के समय मौसम साफ और खुला होना आवश्यक है। सूखने के बाद पत्तियों को झाड़कर इकट्‌ठा किया जाता है और बोरियों में भरकर सूखे स्थान पर भंडारण किया जाता है।

मेहंदी की खेती के लाभ  हर घर में उपयोग होने के कारण इसके विपणन में आसानी रहती है, जिससे उत्पादन लागत मिल जाती है  बहुवर्षीय फसल होने के कारण प्रति वर्ष उत्पादन की निश्चितता तथा बार-बार नई फसल लगाने के झंझट से मुक्ति  बहुवर्षीय फसल होने के कारण बाढ़, सूखा आदि आपदाओं का विशेष असर नहीं है  खाली पड़ी भूमि का सदुपयोग।  मृदा के जल संरक्षण में लाभकारी  इसके उत्पादन में रासायनिक एवं कीटनाशक दवाओं की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे किसानों को कम लागत आती है।    लवणीय और क्षारीय भूमि में भी आसानी से फसल ली जा सकती है।    कम खर्चे में अधिक आय प्राप्त होती है।  मेहंदी के औषधीय गुणों के कारण इसका दोहरा लाभ मिलता है

मेहंदी की खेती के लिए उपज

बारानी फसल से औसतन 1200 से 1600 कि.ग्रा. सूखी पत्ती प्रति हैक्टर प्राप्त होती है। स्थापना के प्रथम तीन वर्ष तक पैदावार कम होती है (500 से 700 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर) मेहंदी बागान सामान्यतः 20 से 30 साल तक उपजाऊ और लाभप्रद रहते हैं।

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मेहंदी की खेती आर्थिक लाभ

मेहंदी की खेती में मुख्य लागत प्रथम वर्ष लगभग 15,000 रुपये प्रति हैक्टर आती है, जिसमें 15 प्रतिशत खर्च जुताई, 55 प्रतिशत मजदूरी और 30 प्रतिशत पौध खरीदने पर होता है। बाद के वर्षों में इसका आधा व्यय रखरखाव, कटाई और पत्ती झड़ाई इत्यादि पर होता है। मेहंदी की खेती से कुल आमदनी व लाभ सूखी पत्ती की उपज, गुणवत्ता और बाजार (मंडी) में आवक पर निर्भर करती है। मंडी में सूखी पत्ती औसतन 20 रुपये प्रति कि.ग्रा. की दर से बिकती है। एक अनुमान के अनुसार 1500 कि.ग्रा. उपज से लगभग 60,000 रुपये प्रति हैक्टर शुद्ध लाभ होता है। स्थापना के प्रथम तीन वर्षों में इससे कम आर्थिक लाभ मिलता है परंतु बाद में अच्छा उत्पादन व भाव मिलने पर शुद्ध लाभ 2 से 3 गुना बढ़ सकता है।

स्त्रोत: खेती पत्रिका, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर),लेखक-मोती लाल मीणा, ऐश्वर्य डूडी और धीरज सिंह भाकृअनुप-काजरी, कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली-मारवार-306401 (राजस्थान )


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