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मेथी की खेती कैसे करें : जानिए मेथी के स्वास्थ्यवर्धक लाभ , उन्नत किस्में और बुवाई की प्रक्रिया

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मैथी की खेती क्यों करें??

किसान वर्तमान में ऐसी फ़सल की खेती करना चाहते हैं जिससे अधिक लाभ मिल सकें। समय के साथ – साथ खेती करने का तरीका भी बदल गया हैं। आज के समय में किसान प्राचीन खेती के तरीकों के स्थान पर लाभदायक फ़सल जो कम समय में तैयार हो जाए उसकी खेती करना पसंद कर रहे हैं। इसी क्रम में किसान मैथी की खेती करके अच्छा मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। मैथी एक नकदी फसल हैं। दलहनी फसलों में मैथी का अपना मुख्य स्थान हैं। मैथी लिग्यूमनस कुल का पौधा हैं। मैथी के पौधे की लंबाई 1 फूट से भी कम होती हैं। मैथी की सब्जी बनाने के अलावा अचार, सर्दी के मौसम में लड्डू बनाकर भी खाया जाता हैं। मैथी का स्वाद कड़वा होता हैं किंतु महक अच्छी होती हैं। मैथी की फ़सल से दो प्रकार से लाभ मिलता हैं। पहला मैथी जब हरी होती हैं तब मैथी की पत्तियों से और दूसरा मैथी जब सुख जाती है तब मैथी के दानों से। किसान मैथी के साथ दूसरी चीजें भी लगा सकते हैं जैसे मैथी के साथ खरीफ की फ़सल (मक्का, धान, मूली, हरे चने और हरे मूंग) की बुवाई करके भी अच्छा मुनाफा ले सकते हैं। यदि किसान भाई व्यवसाय के रूप में मैथी की खेती करें तब काफी लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आइए, मैथी की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।

मेथी के स्वास्थ्यवर्धक लाभ

मेथी के बीज को मेथीदाना कहते हैं। मैथी की पत्तियां सब्जी बनाने के काम आती है और मैथी का बीज मसाले के रूप में प्रयुक्त होता हैं।

मेथीदाना कई रोगों को दूर कर देता हैं विशेषकर डाइबिटीज के मरीजों के लिए मेथी या मेथीदाने का उपयोग फायदेमंद होता हैं। मैथी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। मेथी दाने में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे – कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन, जिंक, खनिज-लवण, फोलिक एसिड और विटामिन B और C आदि। इसके अतिरिक्त मैथी में प्रोटीन, फाइबर, फास्फोरिक एसिड, शुगर और स्टार्च जैसे तत्व पाए जाते हैं। मेथी का सेवन करने से जोड़ों के दर्द में भी राहत मिलती है। हरी मेथी खाने से शुगर कम करने में सहायता मिलती है। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और अपच में मेथी का उपयोग लाभदायक होता है। हरी मैथी और मैथी दाना दोनों ही शरीर के लिए फायदेमंद है।
मैथी दाने के लाभों के विपरित इसका अधिक सेवन हानिकारक भी होता हैं। मैथीदाने के अधिक सेवन से अपच, एलर्जी, रेशेज, त्वचा पर जलन और गैस आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। इसलिए मैथीदाने का उपयोग सीमित रुप से करें।

मैथी के उत्पादन से संबंधित राज्य

हमारे देश में मैथी के उत्पादन से संबंधित राज्य उत्तरी भारत क्षेत्र जैसे – दिल्ली, पंजाब और राजस्थान आदि हैं। सामान्य रूप से मेथी की खेती रबी के मौसम में की जाती है किंतु दक्षिण भारत क्षेत्र में मैथी की खेती बारिश के मौसम में की जाती है। मैथी का उत्पादन करने में मुख्य राज्य गुजरात और राजस्थान है। 80% से भी ज्यादा मैथी का उत्पादन राजस्थान में होता हैं।

मैथी की विभिन्न किस्में

(1) कश्मीरी किस्म

मैथी की कश्मीरी किस्म मैथी की पूसा अर्ली बंचिंग किस्म के समान हैं। मैथी की कश्मीरी किस्म पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं। इस किस्म के फूलों का रंग सफेद होता हैं। मैथी की कश्मीरी किस्म की फलियों की लंबाई लगभग 6 से 8 सेमी होती हैं। मैथी की कश्मीरी किस्म ठंड को सहन कर सकने वाली किस्म हैं जो 15 दिन देरी से पकती हैं।

(2) हिसार सुवर्णा किस्म

मैथी की हिसार सुवर्णा किस्म के विकास का श्रेय चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) को जाता हैं। मैथी की हिसार सुवर्णा किस्म के लिए उपयुक्त क्षेत्र राजस्थान, गुजरात और हरियाणा राज्य हैं। इस किस्म में सर्कोस्पोरा पर्ण धब्बा रोग नहीं लगता हैं। मैथी की यह किस्म मैथी की पत्तियों और दानों दोनों के लिए बेहतर हैं। मैथी की हिसार सुवर्णा किस्म से औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 16 क्विंटल प्राप्त होता हैं।

(3) कसूरी मेथी किस्म

मैथी की कसूरी मेथी किस्म के विकास का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली को जाता हैं। इस किस्म की पत्तियों का आकार हंसिए के समान और पत्तियां छोटी होती हैं। मैथी की कसूरी मेथी किस्म में फूल महकदार और फूलों का रंग पीला होता हैं। इस किस्म में फूल देरी से आते हैं। मैथी की इस किस्म में 2 से 3 कटाई कर सकते हैं। मैथी की कसूरी मेथी किस्म के बुवाई से बीज बनने तक की अवधि लगभग 5 माह हैं। मैथी की कसूरी मेथी किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 65 क्विंटल है।

(4) लाम सिलेक्शन किस्म

मैथी की लाम सिलेक्शन किस्म का पौधा झाड़ीदार और ऊंचाई औसत होती हैं। इस किस्म में अधिक शाखाएं निकलती हैं। मैथी की लाम सिलेक्शन किस्म की बुवाई दक्षिण क्षेत्र के राज्यों में बीजों के लिए की जाती हैं।

(5) पूसा अर्ली बंचिंग किस्म

मैथी की पूसा अर्ली बंचिंग किस्म के विकास का श्रेय ICAR को जाता हैं। यह किस्म जल्दी पकने वाली किस्मों में आती हैं। इस किस्म के फूल गुच्छेदार होते हैं। मैथी की इस किस्म की फलियों की लंबाई 6 से 8 सेमी होती हैं। मैथी की इस किस्म में 2 से 3 कटाई कर सकते हैं। मैथी की पूसा अर्ली बंचिंग किस्म के बुवाई से बीज बनने तक की अवधि लगभग 4 माह हैं।

(6) UM-112 किस्म

मैथी की UM-112 किस्म सीधी बढ़ने वाली किस्मों में आती हैं। इस किस्म के पौधे की लंबाई औसत होती हैं। मैथी की UM-112 किस्म सब्जी और दानों दोनों के लिए लगाई जा सकती हैं।

मैथी की इन किस्मों के अलावा मैथी की अन्य उन्नत किस्में हैं जैसे – RMT-1, RMT-143, RMT-365, RMT 303, RMT 305, RMT-365, HM 103, AFG 1, AFG 2, हिसार माध्वी, हिसार सोनाली, हिसार मुक्ता और राजेंद्र क्रांति आदि।

मैथी की खेती की संपूर्ण प्रक्रिया

मैथी की उन्नत खेती में बुवाई से पहले खेत तैयार किया जाता हैं। खेत तैयार करने के लिए देशी हल या हैरो की सहायता से जुताई करें। जुताई के समय प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद की 150 क्विंटल मात्रा को मिट्टी में मिला दें। खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का प्रयोग करें। यदि खेत में दीमक का प्रकोप हो तब पाटा लगाने से पूर्व खेत में प्रति हेक्टेयर मिथाइल पैराथियान (2% चूर्ण) की 25 किग्रा मात्रा या क्विनालफास (1.5%) की 25 किग्रा मात्रा को मिला दें। इसके बाद पाटा का प्रयोग करें।

मैथी की खेती में बीजों की मात्रा और बीजोपचार

मैथी की खेती में बीजों की मात्रा प्रति एकड़ 12 किग्रा होना चाहिए। बीजों को बुवाई से पूर्व 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो देना चाहिए। बीजों को बुवाई से पूर्व उपचारित करें। इसके लिए प्रति किग्रा बीज में कार्बेनडाजि़म 50% WP की 3 ग्राम मात्रा और थीरम की 4 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करें। इसके पश्चात् प्रति 12 किग्रा बीज में ट्राइकोडरमा विराइड की 20 ग्राम मात्रा + एजोसपीरीलियम की 600 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करें।

मैथी की बुवाई का तरीका

फ़सल खरपतवार से मुक्त हों इसके लिए मेथी की खेती में बुवाई कतार में करना अच्छा माना जाता हैं क्योंकि कतार में बुवाई होने से निराई और गुड़ाई करना आसान हो जाता हैं। संभवतः कुछ किसान मैथी की बुवाई में बीजों को छिड़काव करके बोते हैं। बुवाई के समय खेत में नमी हों। जब बुवाई कतार में हों तब कतार से कतार की दुरी 22 – 22.5 से.मी. और बीजों के लिए गहराई 3 – 4 से.मी. होना चाहिए।

मैथी की खेती में सिंचाई कब की जाए??

मैथी की खेती में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना चाहिए। मैथी के बीजों के जल्दी अंकुरण हो इसके लिए बुवाई से पूर्व सिंचाई अवश्य करें। मैथी की उन्नत खेती में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई के 30 दिन बाद, 75 दिन बाद, 85 दिन बाद और 105 दिन के बाद तीन से चार सिंचाई करना चाहिए। मैथी की खेती में फली और बीजों के विकसित होने के समय आवश्यकता होने पर सिंचाई अवश्य करें ताकि उत्पादन पर कोई प्रभाव ना हो।

मैथी की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

मेथी की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी के अनुसार करना चाहिए इसलिए मिट्टी की जांच के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करें।
• मेथी की उन्नत खेती में बुवाई के समय प्रति एकड़ पोटेशियम (50 किग्रा सुपर फासफेट) की 8 किग्रा मात्रा और नाइट्रोजन (12 किग्रा यूरिया) की 5 किग्रा मात्रा का प्रयोग करें।
• मेथी की खेती में पौधों की तेजी से वृद्धि के लिए बुवाई के 20 दिन पश्चात् प्रति 15 लीटर पानी में NPK (19:19:19) की 75 ग्राम मात्रा का छिड़काव करें।
• मैथी के पौधे के अच्छे विकास के लिए बीजों के अंकुरण के 15 से 20 दिन पश्चात् प्रति 10 लीटर पानी में ट्राइकोंटानोल हारमोन की 20 मिली मात्रा का छिड़काव करें।
• मैथी का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई के 40 से 50 दिन पश्चात प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में ब्रासीनोलाइड की 50 मिली मात्रा को मिलाकर छिड़काव करें। इसका दूसरी बार छिड़काव 10 दिन पश्चात करें।
• मेथी को कोहरे से बचाव के लिए बुवाई के 45 से 65 दिन पश्चात् प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में थाइयूरिया की 150 ग्राम मात्रा का छिड़काव करें।

मैथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण

मैथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई और गुड़ाई करना चाहिए। मैथी की खेती में प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन के पश्चात् और दूसरी निराई-गुड़ाई प्रथम निराई-गुड़ाई के 30 दिन पश्चात् करें।
रासायनिक तरीके से खरपतवार को नष्ट करने के लिए बुवाई के 1 से 2 दिनों के अंदर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में पैंडीमैथालिन की 1.3 लीटर मात्रा को मिलाकर छिड़काव करें जिससे मिट्टी में नमी भी रहेगी। इसके अतिरिक्त प्रति एकड़ फलूक्लोरालिन की 300 ग्राम मात्रा का प्रयोग करें। जब मैथी के पौधे की लंबाई 4 इंच हो जाए तब उसे बांध देना चाहिए ताकि वह बिखरे नहीं।

मैथी की फसल की कटाई का कार्य

मेथी की पहली कटाई बुवाई के 1 माह पश्चात् कर सकते हैं। इसके पश्चात् 15 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहें। मैथी के बीजों को प्राप्त करने के लिए मैथी की कटाई का कार्य बुवाई के 90 से 100 दिन के पश्चात् करना चाहिए। मैथी के दानों के लिए कटाई नीचे के पत्तों के पीले होने, झड़ने और फली के पीले रंग के होने पर करना चाहिए। मैथी को काटने के पश्चात् सुखाने के लिए काटी गई फ़सल की गठरी बनाकर बांध लें और 6 से 7 दिन सूर्य प्रकाश में रखें और अच्छी तरह से जब सुख जाए तब सफाई करके इसका भंडारण करें।
मैथी की फसल जब अक्टूबर माह में बोई जाए तब कटाई 5 बार एवं जब नवंबर माह में बोई जाए तब कटाई 4 बार की जानी चाहिए।

मैथी की खेती में प्राप्त उपज और लाभ

उन्नत तकनीकों से हम मेथी की खेती से में एक बार कटाई करने पर बीज लेना हो तब प्रति हेक्टेयर लगभग 6 से 8 क्विंटल उपज प्राप्त होती है किंतु मैथी की कटाई यदि चार से पांच बार की जाए तो उपज प्रति हेक्टेयर 1 क्विंटल तक प्राप्त होती है।
मैथी की फ़सल से हम हरी पत्तियों और सुखाकर दोनों तरीकों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
एक हेक्टेयर में मेथी की फसल से 70 से 80 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं। मेथी को सुखाकर बेचने पर प्रति किलो 100 रूपये तक भाव मिल जाते हैं। मैथी की खेती से प्रति हेक्टेयर लगभग 50 हजार तक का मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।

मैथी की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें

(1) मैथी की खेती में फसल को पाला सहने की क्षमता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है इसलिए मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ठंडी जलवायु है।
(2) मैथी की खेती के लिए सामान्य बारिश वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं क्योंकि अधिक बारिश वाले क्षेत्र में मैथी की खेती नहीं की जा सकती हैं।
(3) मैथी की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उचित होती है किंतु मैथी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी है। मिट्टी का PH मान 6 से 7 के मध्य हो।
(4) मैथी की खेती में बुवाई के लिए समय पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई से अगस्त और मैदानी क्षेत्रों में सितंबर से मार्च तक होता है।
(5) मैथी की खेती यदि सब्जी के लिए की जाए तब 8 से 10 दिनों के अंतर पर बुवाई करनी चाहिए जिससे ताजी सब्जी प्राप्त हों और यदि मैथी की खेती बीजों के लिए की जाए तब मेथी की बुवाई नवंबर के अंत तक करना चाहिए।
(6) मैथी की खेती में बुवाई के लिए छिड़कवा विधि का प्रयोग करना चाहिए और बुवाई के समय खेत में नमी अवश्य हों।
(7) मैथी की खेती में मैथी की फसल के साथ खरीफ फसलें जैसे – मक्का, धान, हरी मूंग और हरे चारे वाली फसलें भी लगाई जा सकती है।
(8) मैथी की खेती में मैथी की फसल के साथ मेड़ों पर मूली उगा कर भी अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।

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