लौकी की खेती क्यों करना चाहिए??
सब्जियों की खेती के बारे में बात करें तो लौकी की सब्जी कद्दू के वर्ग की सब्जियों में सबसे मुख्य मानी जाती हैं। लौकी एक कद्दुवर्गीय सब्जी हैं। लौकी सामान्य रुप से दो प्रकार की होती हैं पहली गोल लौकी और दूसरी लंबी वाली लौकी। अगर बात करें गोल वाली लौकी की तो इसे पेठा कहा जाता हैं और लंबी वाली लौकी को घीया कहा जाता हैं। पहले शराब भरने के लिए लौकी के सूखे खोल का उपयोग होता था इसी कारण लौकी को बॉटल गॉर्ड भी कहते हैं।
अनाज वाली फसलों की तुलना में सब्जियों की खेती में ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता हैं। पहले किसान भाई अनाज उत्पादन को ही आय का एक साधन मानते थे परन्तु वर्तमान में किसान सब्जियों और फलों की खेती को आय का जरिया मानते हैं और वर्षभर बहुत मुनाफा प्राप्त कर लेते हैं किन्तु मुनाफा खेती की तकनीक पर भी निर्भर करता हैं।
लौकी का उपयोग सब्जी भाजी के अतिरिक्त रायता और हलवा बनाने में भी करते हैं। लौकी के तने, गुदे और पत्तियों का उपयोग औषधियों को बनाने में भी किया जाता हैं।
लौकी एक ऐसी सब्जी हैं जो सभी मौसम में मिल जाती हैं इसलिए लौकी की खेती वर्ष में तीन बार की जा सकती हैं। मंडी में लौकी की सब्जी की मांग हर समय बनी रहती हैं। लौकी की खेती से कम लागत पर अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
लौकी की खेती कब करना चाहिए??
लौकी एक कद्दू के वर्ग की सब्जी हैं। लौकी की फसल वर्ष में तीन बार लगाई जाती हैं। खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में लौकी की खेती की जाती हैं। इसके लिए समय इस प्रकार हैं:
- खरीफ की फसल के समय लौकी की बुवाई: 15 जून से 1 जुलाई तक
- रबी की फसल के समय बुवाई: सितंबर के अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक
- जायद की फसल के लिए बुवाई: 15 जनवरी तक
लौकी (घीया) में पाए जाने वाले पोषक तत्व
लौकी स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। इसमें बहुत प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे:
कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटैशियम, आयरन, ज़िंक, लवण, प्रोटीन, विटामिन A व C आदि।
ये तत्व शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं और आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हैं। लौकी गंभीर बीमारियों में औषधि के रूप में भी कार्य करती हैं।
लौकी से होने वाले फायदे
• लौकी डाइजेशन सिस्टम को सही रखती हैं।
• वजन कम करने में सहायक हैं।
• शरीर को हाइड्रेटेड और ठंडा रखती हैं।
• नींद ना आने की समस्या को कम करती हैं।
• समय से पहले बाल सफेद होने से रोकती हैं।
• त्वचा के लिए फायदेमंद हैं।
• हृदय को स्वस्थ रखने में लाभदायक हैं।
• तनाव कम करती हैं।
लौकी की खेती के लिए मिट्टी, जलवायु एवं तापमान का निर्धारण
लौकी की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली और जीवाश्म युक्त हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती हैं।
- मिट्टी का pH मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
- लौकी पाले को सहन नहीं कर सकती, अतः गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त हैं।
- बीज जमने के समय तापमान: 30-35°C
- पौधों के बढ़ने के समय तापमान: 32-38°C
लौकी की विभिन्न किस्मों के बारे में जानकारी
प्रमुख किस्में:
पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश, पूसा नवीन, पूसा हाइब्रिड 3, काशी सम्राट, काशी बहार, काशी कुंडल, काशी कीर्ति, काशी गंगा, अर्का बहार, अर्का नूतन, अर्का श्रेयस और अर्का गंगा।
हाइब्रिड किस्में जैसे अर्का गंगा, काशी बहार, पूसा हाइब्रिड 3 लगभग 50-60 दिन में तैयार होती हैं और 32-58 टन/हेक्टेयर तक उत्पादन देती हैं।
लौकी की खेती करने की प्रक्रिया
- पहले पौधे नर्सरी में तैयार करें
- क्यारियाँ बनाकर उनमें 50% मिट्टी और 50% कम्पोस्ट खाद मिलाएं
- बीजों को गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित करें
- 4 से.मी. की गहराई में बीज बोकर हल्की सिंचाई करें
- 20-25 दिनों में पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
लौकी की खेती में बुवाई और सिंचाई कैसे की जाए??
- जायद की बुवाई: 15 जनवरी तक
- खरीफ की बुवाई: 15 जून से 1 जुलाई तक
- रबी की बुवाई: सितंबर के अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक
सिंचाई:
- जायद में: 4-5 दिन के अंतराल पर
- खरीफ में: वर्षा की स्थिति अनुसार
- रबी में: 15-20 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई
लौकी की खेती में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
- बुवाई से पूर्व 200-250 क्विंटल गोबर खाद/हेक्टेयर
- रासायनिक खाद:
30 कि.ग्रा. पोटाश, 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 35 कि.ग्रा. फास्फोरस - फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा, नाइट्रोजन की आधी मात्रा शुरू में और शेष दो बार में दें।
लौकी की फसल को रोगों से कैसे बचाएं??
मुख्य रोग:
उकठा, चुर्णी फफूंद, लाल कीड़ा, फल मक्खी
- कीटनाशकों, जैविक खाद, या रसायनों का उपयोग करें
- फसल का समय पर उपचार करें।
लौकी की तुड़ाई करना
- 50-60 दिनों में फल देना शुरू करती है
- जब लौकी गहरे हरे रंग की हो और आकार सही हो तब तुड़ाई करें
- डंठल के साथ तोड़ें और पैकिंग कर मंडी भेजें।
लौकी की खेती से प्राप्त उत्पादन एवं लाभ
- लागत: 15,000 से 25,000 रुपये/एकड़
- उत्पादन: 75 से 90 क्विंटल/एकड़
- मुनाफा: 80,000 से 1,00,000 रुपये तक, यदि बाजार भाव अच्छा हो।