बस एक बार शुरू करें इस फूल की खेती, 30 साल तक गिनते रहेंगे नोट ! जानिए कैसे?

Rate this post

कारनेशन के फूलों की खेती: फूलों में कारनेशन बहुत ही विशिष्ट स्थान रखता ही। इसकी कलमों व खूबसूरत कटे फूलों का व्यवसाय देश-विदेश में अच्छी तरह स्थापित है और व्यावसायिक स्तर पर अगर देखा जाए तो कारनेशन विश्व के 10 प्रमुखतम फूलों में एक है। हमारे देश में कारनेशन को व्यवसायिक स्तर नासिक, पुणे, बैंगलोर, कोयम्बटूर, दिल्ल्ली, यू.पी. पंजाब, कश्मीर व् हिमाचल प्रदेश में उगाया जाता है। जहाँ तक प्रश्न है झारखण्ड में इसकी कहती की संभावनाओं का तो जलवायु की दृष्टि से खासतौर पर रांची के आसपास के इलाकों की उपोष्ण कारनेशन की सफलतापूर्वक खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है। इसकी उपयुक्त जलवायु के चलते किसान भाई चाहे तो कारनेशन की अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

कारनेशन फूलों की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

कारनेशन के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन कैसे किया जाए व इसे गलाने का तरीका क्या है? कारनेशन की खेती के लिए बलुई-दोमट मिट्टी जिसका पी. एच,. मान 6 से 7 हो जिसमें वायु संचार व जल निकासी का उचित प्रबंध हो बहुत ही उपयुक्त होती है। जहाँ तक इसे लगाने के तरीके का प्रश्न है तो कारनेशन को अक्तूबर, नवम्बर के महीने में कलमों के द्वारा लगाया जाता है। इसकी तैयार कलमों को लगाने के लिए जमीन से 15 से 20 से. मी. ऊँची क्यारियां बनाई जाती है जिससे कि पानी के ठहराव की संभावना बिल्कुल न हरे और फिर इन उठी क्यारियों में पौर्धों को 20 सें. मी. 20 से. में. की दुरी पर लगाया जाता है। यहाँ पर यह भी बताना आवश्यक है कि पानी के ठहराव की तरह पानी का आभाव भी हानिकारक होता है, इसलिए किसान भाई सिंचाई की महत्ता को समझते हुए गर्मी के मौसम में सप्ताह में दो से तीन बार बा सर्दी के मौसम सप्ताह में एक बार पानी अवश्य दें।

कारनेशन में खाद की मात्रा के बारे में कुछ जानकरी

खाद की उचित मात्रा किसी भी पौधे अच्छे विकास के लिए अत्यावश्यक है। कारनेशन की सफल खेती के लिए 20 से 25 टन सड़ी गोबर की खाद, 500 से 600 कि.ग्रा. यूरिया, तकरीबन 800 कि. ग्रा. एस.एस.पी. व 250 से 300 कि. ग्रा. एम्. ओ.पी. प्रति हेकटेयर देना बहुत जरूरी है। इसमें एस.एस.पी., एम. ओ.पी. की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा खेत तैयार करते वक्त व यूरिया की आधी मात्रा पौधा लगाने के एक महीने बाद देनी चाहिए।

किसान बाही अगर इन सारी बातों को ठीक से अनुसरण करेंगे तो प्रति हेक्टेयर तकरीबन 7-8 रुपया का शुद्ध लाभ उठा सकते हैं। कारनेशन में अलग-अलग रंग के लिए अलग-अलग किस्में हैं, जैसे कि लाल रंग में डेसियों स्कैंनियाँ, टांगा, गुलाबी में बोलोगना, पिंक में दमयंते, पीले रंग में पिंटो यलो, तहिती सफेद में वोगोटा, व्हाइट जाएंट सोनसारा और बहुरंगीय में सुपरस्टार, फारएवर, कैबरी इत्यादि। ग्लेडियोलस की खेती से लाभ कमाएं:-

कट फ्लावर व्यवसाय में ग्लेडियोलस की मांग सर्वाधिक है। तीन महीने के अंदर इसमें फूल आने लगते हैं, फूलों के साथ-साथ इसके कंद बिक्री द्वारा भी लाभ कमाया जा सकता है।

झारखण्ड की जलवायु इस फूल के लिए काफी उपयुक्त हैं तथा यहाँ पाई जाने वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा हो तथा जिसमें जल न जमता हो, इसकी खेती के लिए अच्छी है। हलकी अम्लीय मिट्टी अपेक्षाकृत नम जलवायु उपयुक्त है। जिसका पी.एच.6-7.5 हो। इसे लगाने का सही समय क्या है, तथा इसके लिए खेत की तयारी कैसी होनी चाहिए?

इसे लगाने का उचित समय सितम्बर-दिसम्बर है, परन्तु पानी की सुविधा होने पर हम अन्य समय भी भी लगा सकते हैं। 2-3 जुताई के बाद, दो ट्रोली गोबर खाद/एकड़ 150 किलोग्राम करंज खल्ली तथा 10 किलो चूना मिलाकर खेत को अच्छी तरह तैयार किया जाता है। साथ ही पाटा लगाने के पश्चात, मिट्टी को बराबर/एकसार का लिया जाता है। मिट्टी उपचार के लिए 10 किलोग्राम लिन्डेन पाउडर/एकड़ खेतों में डाला जाता है। रासायनिक खाद के रूप में यूरिया फोस्फोरस पोटाश (40:20:15) का मिश्रण खेतों में दिया जाता है।

ग्लेडियोलस की रोपाई कंदों से की जाती है जिन्हें कार्म कहा जाता है। लगाने के लिए 1.5-२.5 इंच व्यास के कंद उपयुक्त होते हैं। ये कंद प्याज की तरह दिखलाई पड़ते है। इसकी दुरी 30 से.में. 20 से.मी. उपयूक्त होती है। बीजोपचार इसमें आवश्यक है। छिलके उतारकर कंद को २ ग्राम प्रति लीटर बेविस्टीन के घोल में 15 मिनट तक डुबोयो जाता है तथा छाया में थोड़ी देर रखकर बनाई गई निर्धारित दुरी में लगा दिया जाता है। एक एकड़ में लगभग 60,000-70,000 कार्म लग जाते हैं। इसे समतल भूमि में , आलू एक समान मेढ़ बनाकर या 1 मी. चौड़े व 1.5 मी. ऊँचे बेड बनाकर लगाया जाता है। इसमें कितने दिनों पर सिंचाई एवं निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए?

कंद के पूर्णतया अंकुरित हो जाने पर पहली सिंचाई देनी चाहिए। कंद करीब 10-15 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। इसके बाद मौसम/भूमि की दशा को देखते हुए 15 दिनों के अंतराल पर अपनी देना चाहिए। पौधा जब 10-15 सें.मी. का हो जाए तो निकाई-गुडाई का थोड़ा यूरिया देकर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए तथा बीच-बीच में खरपतवार निकालते रहना चाहिए। ग्लेडियोलस में फूल कितने दिनों में लगते हैं इसकी तुड़ाई की विशेष तकनीक है क्या?

ग्लेडियोलस के फिल एक लंबी डंडी(स्पाइक) में पंक्ति में आयते हैं जो कि प्रजातियों के अनुसार 7-20 तक हो सकते हैं। ये एकल/बहुत हो सकते हैं। कंद लगाने के ली 65-90 दिनों के अंदर फूल आ जाते हैं। स्पाइक की पहली कली में रंग दिखने पर इसे काट लिया जाता है।

कंद की खुदाई एवं भंडारण के विषय

फूल कट जाएं के 45 दिनों पश्चात कंदों की खुदाई की जाती है। कंदों की खुदाई के दो सप्ताह पूर्व सिंचाई कर देनी चाहिए। खुदे कंद को भण्डारण के पूर्वं २ ग्राम प्रति लीटर बेविस्टीन के घोल में 15 मिनट डुबोने के पहचात छायादार कमरे में फैलाकर सुखा लेना चाहिए तथा भण्डारण में डाल देना चाहिए।

इसकी उपज एवं लाभ:- एक एकड़ में जितने कंद लगते हैं (60-70 हजार) उतने ही स्पाइक फूल के निकलते हैं तथा जो छोटे कंद उसमें बनते हैं उनकी संख्या औसतन 5 होती है, जिसे अगले समय में प्रकन्द के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं या बिक्री कर लाभ कमा सकते हैं। इस तरह देखा जाए तो फसल के प्रथम वर्ष में 50% शुद्ध लाभ तथा द्वितीय से तृतीय वर्ष में 1 से २ गुणा लाभ मिलने लगता है तथा यह बढ़ता हो जाता है।

जरबेरा एक परिचय:-जरबेरा अस्ट्रेसी कुल एक एक तना विहीन बहुवर्षीक नाजुक हर्ब है। जर्मन प्रकृतिवद के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। जरबेरा को ट्रांसवल डेजी, बारबेटेन डेजी अथवा अफ्रीकन डेजी हबी कहते हैं। यह दक्षिण अफ्रीकन तथा एशियाई मूल का पौधा है। जरबेरा में जड़ के पास के चारों तरफ से 25-30 की संख्या में हरे रंग के पत्ते निकलते हैं जिनकी लम्बाई लगभग 25-30 सेंटीमीटर तक होती आधार में 10-12 सेंटीमीटर पेतिओल होता है तथा उपर में लीफ ब्लेड होता है। पत्ती का अग्रभाग नुकीला होता है। पत्ती कभी-कभी लेदरी हो जाता है।

जरबेरा की खेती:-जरबेरा में जड़ के पास से 45-50 सेंटीमीटर लम्बाई के फूल के डंठल निकलते है, जिनके शीर्ष पर एक फूल खिलता है। फूल का डंठल पतला एवं पत्ती विहीन होता है। फूल विविध रंग- पीला, नारंगी, क्रीमी, उजला, गुलाबी, गहरा लाल एवं विविध शेड में होते हैं। फूल का व्यास 8-10 सेंटीमीटर का होता है जिसमें बीच में डिस्क फोलेरेट तथा बाहरी हिस्से में दो-तीन :रो: में रे फोलोरेट होते हैं। फूल का आकार एस्टर या जिनिया से मिलते-जुलते हैं।

जरबेरा को गमला, वेड, बोर्डर या रोंक गार्डन में लगा सकते है। कट फ्लावर के रूप में यह काफी लोकप्रिय है, क्योंकि इसे 5-13 दिन तक फ्लावर वेस में रखा जा सकता है। इसे दूर तक भेजा भी जा सकता है। इसे दूर तक भेजा भी जा सकता है क्योंकि फूल के डंठल मजबूत होते हैं। प्रति पौधा प्रतिवर्ष 25-30 फूल मिल सकते हैं। प्रतिवर्गमीटर 100=00 रुपया।

जरबेरा की किस्में:-जरबेरा के देशी एवं विदेशी कई किस्में हैं। कबाना, सुजान, रूबी रेड, एपेल ब्लाउसम, अम्बर, रोजाबेला, इबीजा, गोल्ड स्पॉट, गोल्डन गेट, सनवे, टौरनाडो, एम -२, लिंडेसा, इवनिंग बेल्स, रेड मोनार्क इत्यादि किस्में हैं।जरबेरा की खेती वैसी तो खुली जगह में की जा सकती है लेकिन छायादार जगह पर इसकी कहती अच्छी होगी। इसकी कहती के लिए हल्की छायादार जगह उपयुक्त है इसलिए 50% नेट हाउस में खेती करने से अच्छी किस्मों के फूल मिलते हैं जिनकी मांग अधिक रहती है। इसमें फूल के डंठल की लंबाई भी अधिक होती है। जरबेरा की खेती के लिया दिन तापक्रम 22-25 डिग्री से. तथा रात का तापक्रम 12-16 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए।

अच्छी निकास वाली जीवांश से प्रचुर हलकी मिट्टी जो उदासीन से लेकर हल्का अल्कालाइन हो, इसकी खेति के लिए उपयुक्त है। अम्लीयता 5.5 से 6.5 के बीच होनी चाहिए। जमीन की अच्छी तरह तैयारी का खरपतवार मुक्त कर भुरभुरा बना लेते हैं। एके बाद आवश्यकतानुसार लम्बाई रखते हुए 1 से 1.20 मीटर चौड़ाई के तथा 20-30 सेंटीमीटर उंचाई की क्यारी बना लेते हैं। दो क्यारियों के बीच 30 सेंटीमीटर जगह छोड़ देते हैं ताकि खरपतवार निकालने में सुविधा हो।

जरबेरा फूल को लगाने के मौसम

जरबेरा को दो मौसम में लगाते है। बंसत ऋतु में (जनवरी –मार्च) तथा वर्षा काल में (जुन-जुलाई) वर्षा काल के समाप्ति के बाद सितम्बर में भी लगाते हैं जहाँ वर्षा से पौधों को हानि होने की संभावना रहती है। जरबेरा की जड़ के पास के कई कल्म्प निकलते हैं जिन्हें लगाने के लिए लिए अलग-अलग कर लेते हैं। रोपाई के पहले ऊपर की पत्तियों को भाग को 8-10 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट देते हैं तता जड़ को भी प्रुनिंग कर देते हैं। रोपाई के लिए कतार की दुरी 30-40 सेंटीमीटर तथा पौधा की दुरी 25-30 सेंटीमीटर’ अथवा 3- सें.मी. 30 सें. मी. रखते हैं। इस तरह अगर 1.20 मीटर चौड़ा बेड हो तो चार लाइन में पौधे लगेंगे। पौधे को इस तरह लगाते हैं कि :कॉन”मिट्टी के सतह से २-3 सेंटीमीटर ऊँचा रहे। सिंचाई की सुविधा न हो तो एक लाइन में लगाना अच्छा होगा ताकि पानी पटाने में दिक्कत न हो।

सफल खेती के लिए रासायनिक खाद भी आवशयक है। रोपने के प्रथम तीन माह तक यूरिया 20 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 90 ग्राम तथा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 30 ग्राम प्रति वर्गमीटर प्रति माह देना चाहिए। चौथे महीने में जब फूल आने लगे तब दो माह के अंतराल पर प्रति वर्गमीटर यूरिया 30 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 60 ग्राम एवं एम्.ओ. पी. 50 ग्राम देना चाहिए।

आवश्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई एंव सिंचाई देते रहना चाहिए। प्रति वर्गमीटर 4.5-6.0 लीटर पानी प्रतिदिन के हिसाब से लगता है। जरबेरा में रोपाई के तीन माह बाद फूल आना शुरू करते हैं। फूलों की तोड़ाई तब करते हैं जब बारही डिस्क फ्लोरेट का दो-तीन रो डंठल पर लम्ब बनावें। फूल तोड़ने के लिए फूल डंठल के आधार को धीरे से झुकाकर एक तरफ खिंचाव करने से कॉन अलग हो जायेंगे। सुबह में तोड़ाई करना चाहिए तथा फूल डंठल के आधार को ताजे पानी में रखते जाना चाहिए। दो साल तक फूल मिल सकते हैं।

  social whatsapp circle 512
WhatsApp Group
Join Now
2503px Google News icon.svg
Google News 
Join Now
Spread the love