गाय के गोबर से लाखो का बिजनेस पिता-पुत्री की इस जोड़ी ने इस बिजनेस आइडिया कमाए लाखो देखे बिजनेस

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success Story : पिता-पुत्री की इस जोड़ी ने गाय के गोबर से लकड़ी बनाना शुरू किया और इस बिजनेस आइडिया को नाम दिया ‘गोमय परिवार’. वही गोमय परिवार जो बिजनेस के साथ-साथ लोगों की मदद का सहारा भी बन गया.

पिता-पुत्री की जोड़ी ने गाय के गोबर से कंडे बनाने की शुरुआत की और छा गए.

कोरोना महामारी का बीता दौर शायद ही कोई भूल पाएगा. जब लाखों लोगों ने अपनों को खोया. इलाज के लिए तो छोड़िए, अंतिम संस्कार के लिए भी लंबी कतारें लगती थीं. दाह-संस्कार के लिए लकड़ी की कमी हो गई थी. ये देख डॉक्टर सीता राम गुप्ता ने बेटी अदिति के साथ मिलकर ऐसी पहल शुरू की जो नजीर बन गई. पिता-पुत्री की इस जोड़ी ने गाय के गोबर से लकड़ी बनाना शुरू किया और इस बिजनेस आइडिया को नाम दिया ‘गोमय परिवार’.

वही गोमय परिवार जो बिजनेस के साथ-साथ लोगों की मदद का सहारा भी बन गया. खास बात ये है कि गोमय परिवार की ओर से आज भी उन परिवारों को अंतिम संस्कार के लिए मुफ्त लकड़ी दी जाती है जो पैसे देने में सक्षम नहीं हैं. इसके लिए उन्होंने एक फाउंडेशन भी बना रखी है. जिससे बिजनेस मॉडल और मदद समानांतर तौर पर चलती है.

यहां से आया आइडिया

कोरोना काल में दूरदर्शन ने रामायण और महाभारत का प्रसारण फिर से शुरू किया था. डॉ. सीताराम गुप्ता ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कोरोना के दौरान अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी कम पड़ने की खबर आने लगीं थीं, इसी बीच महाभारत में घटोत्कच के अंतिम संस्कार का सीन देखा, जिनमें लकड़ी की जगह गोबर के कंडे इस्तेमाल किए गए थे. बेटी अदिति ने सवाल किया कि क्या ऐसा हो सकता है? इसका जवाब तलाशने में सीताराम गुप्ता ने एक किताब लिख दी. जो काफी सफल भी हुई. इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी. खबरें आईं की लकड़ी की कमी की वजह से सैकड़ों शवो को गंगा में बिना अंतिम संस्कार ही बहा दिया गया. इसके बाद पिता-पुत्री की जोड़ी ने गोमय परिवार की नींव डाली और गोबर से लकड़ी बनाने की शुरुआत की.

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गरीब परिवारों की मदद करता है स्टार्टअप

डॉक्टर सीताराम गुप्ता ने बेटी अदिति के साथ गोमय परिवार स्टार्टअप की शुरुआत की. कुछ ही दिनों में यह स्टार्टअप सफल हो गया. अब राजस्थान में सरकार की ओर से गोमय परिवार को 11 मोक्षधाम दिए जा चुके हैं, खास बात ये है कि गोमय परिवार की ओर से इन मोक्षधाम पर ये लिखवाया गया है कि यदि अंतिम संस्कार की लकड़ी के लिए पैसे नहीं हैं तो न दें. इसके लिए गोमय परिवार की ओर से अंशदानी फाउंडेशन बनाया गया है. जिन लोगों के पास पैसे नहीं होते, उन्हें अंशदानी फाउंडेशन की ओर से ही लकड़ी दी जाती है. अंशदानी फाउंडेशन गोमय परिवार को लकड़ी का भुगतान करती है. फाउंडेशन जो पैसा खर्च करती है उसे वह दान में मिल जाता है. यह मदद और व्यापार साथ-साथ चलते रहते हैं.

लकड़ी से कम लगते हैं कंडे

डॉ. सीताराम गुप्ता बताते हैं कि गोबर के कंडे और लकड़ी का दाम तकरीबन समान ही है. दोनों ही 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही हैं, मगर दोनों से अंतिम संस्कार कराने में जमीन आसमान का अंतर है. डॉ. सीताराम गुप्ता के मुताबिक लकड़ी से अंतिम संस्कार किया जाए तो ज्यादा खपत होती है, जबकि गाय के गोबर से बनी लकड़ी से यह खपत आधी हो जाती है. इसके अलावा गाय को पुण्यदायी भी माना जाता है. असके अलावा अंतिम संस्कार में भी समय कम लगता है. प्रदूषण भी नहीं होता और पेड़ों का कटान भी बच जाता है.f9949b70 e564 4f6e be39 e535f2540aa3

source by -Tv9hindi


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नमस्ते! मैं कपिल पाटीदार हूँ। सात साल से मैंने खेती बाड़ी के क्षेत्र में अपनी मेहनत और अनुभव से जगह बनाई है। मेरे लेखों के माध्यम से, मैं खेती से जुड़ी नवीनतम तकनीकों, विशेषज्ञ नुस्खों, और अनुभवों को साझा करता हूँ। मेरा लक्ष्य है किसान समुदाय को सही दिशा में ले जाना और उन्हें बेहतर उत्पादकता के रास्ते सिखाना।