Wheat Variety: गेहूं की 5 सबसे उन्नत किस्में, कम पानी में भी अधिक पैदावार की क्षमता, देखिए संपूर्ण जानकारी

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भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के अधिकतर लोग खेती पर निर्भर रहते है। किसान ज्यादा से ज्यादा खाद्यान्न उत्पन्न करता है, जिससे उसकी आमदनी बड़े साथ ही देश में खाद्यान्न की उपलब्धता बड़े। अच्छी फसल के लिए सबसे पहले किसान अपने क्षेत्र एवं जलवायु के अनुसार फसल (गेंहू, सोयाबीन एवं चना) की उचित किस्मों का चुनाव करते है।आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से सबसे अधिक उत्पादन देने वाली गेंहू की किस्मों के बारे में जानकारी देने जा रहे है।

1. पूसा मंगल Hi- 8713

उपज – 18 + क्विंटल प्रति बीघा रिकार्ड उत्पादन में नंबर 1 रही।यह एक उन्नत किस्म का कठिया गेहूँ किस्म है। काठिया गेहूं Highest yielding wheat varieties 2022-23 का दाम बाज़ार में काफ़ी अच्छा है और इसकी ईज़ाद की गई नई किस्म पूसा मंगल (HI-8713) बेहतर काठिया गेहूँ की किस्म है। इस किस्म का दाना मोटा बड़ा और चमक मे कम दिखता है। जिसका उपयोग दलिया, सूजी व पास्ता मे किया जाता है।

इसके पौधे की ऊंचाई 2.5- 3 फीट तक रहती है एवं इसका बीज दर / बीज की मात्रा 70 kg प्रति एकड़ है। इसकी बुवाई का समय 25 अक्टूबर से 15 नवंबर है। इसमें तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता रहती है। वही इसके फसल Highest yielding wheat varieties 2022-23 पकने की अवधि 130 से 140 दिन एवं 32 क्विंटल प्रति एकड़ अधिकतम उत्पादन क्षमता है। इसमें लॉजिंग की समस्या एवं रोगों से लड़ने की खासियत है। यह किसने एमपी के किसानों के लिए अनुशंसित है।

2. पूसा पोषण Hi – 8663

उत्पादन – इस वर्ष 2022-23 में 16+ क्विंटल प्रति बीघा रही।गेहूं की किस्मों Highest yielding wheat varieties 2022-23 के बीच इस समय सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली वैरायटी में HI-8663 का नाम सबसे आगे चल रहा है। इस किस्म के गेहूं को गोल्डेन या प्रीमियम गेहूं के नाम से भी जाना जाता है। इसकी उत्पादकता की बात की जाए, तो 95.32 किंवटल प्रति हेक्टेयर बताया जा रहा है। HI-8663 एक जीनोटाइप विशेषता, उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादकता वाला गेहूं का बीज है।

पूसा पोषण HI-8663 में खास
HI-8663 में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं इसलिए बाजार में इसकी काफी ज्यादा डिमांड है। इस गेहूं से रोटी Highest yielding wheat varieties 2022-23 के अलावा सूजी और पास्ता भी बनाया जाता है और इसमें प्रोटान की मात्रा काफी ज्यादा पाई जाती है। इस किस्म की बोनी के लिए नवम्बर का महीना सबसे उपयुक्त माना गया है। यह किस्म गर्मी को सहन कर सकती है। यह 120-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

3. पूसा तेजस- 8759

उत्पादन – इस बार 2023 में पूसा तेजस- 8759 किस्म का उत्पादन 14 से 16 क्विंटल प्रति बीघा रहा। गेहूं की नई किस्म Highest yielding wheat varieties 2022-23 पूसा तेजस ‘HI-8759’ किस्म को इंदौर कृषि अनुसंधान केन्द्र ने तैयार किया है। यह भी एक कठिया किस्म का गेंहू है। कठिया या ड्यूरम गेहूं की किस्म एचआई 8759 को उच्च उर्वरता व सिंचित दशाओं के अंतर्गत मध्य क्षेत्र में खेती हेतु पहचाना गया है। यह किस्म ‘ब्लास्ट’ रोग, गेरुआ रोग, कंड़वा, करनाल बंट रोगों से प्रतिरोधी है। इस किस्म की पत्ती चौड़ी, मध्यमवर्गीय, चिकनी और सीधी होती है।इसके पौधे में 10 से 12 कल्ले होते हैं।

पूसा तेजस- 8759 किस्म में खास इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 120-125 किलो तक बीज ले सकते है। यह किस्म ज्यादा पौष्टिक है। इसमें आयरन, जिंक, महत्वपूर्ण खनिज अधिक मात्रा में मौजूद हैं। इससे रोटी के साथ नूडल्स, पास्ता और मैकरॉनी जैसे खाद्य पदार्थ बनाने के लिए उत्तम हैं।

4. पूसा मालवी

उत्पादन – इस वर्ष 2023 में 13 से 16 क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन निकला। गेंहू की यह पूसा मालवी Highest yielding wheat varieties 2022-23 किस्म मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा एवं उदयपुर एवं उत्तरप्रदेश के झांसी संभाग के लिए विकसित की गई है। यह किस्म मालवी गेहूं का अधिक उत्पादन लगभग 65-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देने वाली समय पर बुवाई हेतु एवं सिंचित क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो रही है।

मालवी गेहूं का उपयोग खेती में करना कई मायनों मे महत्वपूर्ण है यह गेहूं की अधिक उत्पादन Highest yielding wheat varieties 2022-23 देने वाली किस्म है, यह किस्म मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की भरपाई करती है, मालवी गेहूँ में रोग प्रतिरोध क्षमता अधिक होने के कारण गेरूआ रोग फसल को हानि नहीं पहुंचाता है इसके साथ ही मालवी गेहूं से प्रोटीन, विटामिन से भरपूर विभिन्न पोष्टिक व्यंजन, दलिया, बाटी, सूजी एवं पोषण प्रदान करने वाले अनेक व्यंजन बनाये जा सकते हैं।

5. पूसा अनमोल की जानकारी

गेंहु की यह एचआई 8737 (पूसा अनमोल) किस्म Highest yielding wheat varieties 2022-23 भी कठिया किस्म की गेंहू है। इसमें प्रारम्भ से ही बीमारियों एवं कीटों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की गई है। यह किस्म तीनों गेरुवा (तना, जड़, पत्ती) रोगों के प्रतिरोधी है अत: कोई भी नियंत्रण उपाय की सिफारिश नहीं की गई है। यह वैरायटी 115 से 120 दिन मे पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म को रोटी के साथ-साथ दलिया या सूजी, पास्ता बनाने में उपयोग किया जाता है।

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