ग्रीष्मकालीन भिंडी की उन्नत 5 किस्में : ग्रीष्मकालीन भिंडी की इन उन्नत 5 किस्मों की करें बुवाई , होगा भरपूर मुनाफा

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जानिए, ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती का तरीका

रबी फसलों की कटाई के पश्चात् खेत खाली हो जाते हैं। किसान भाई रबी और खरीफ सीजन के मध्य के अंतराल में खेतों में जायद सीजन की फसलों की खेती कर सकते हैं। इसी क्रम में भिंडी की खेती से काफी अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। भिंडी एक कम अवधि में पकने वाली सब्जी है। भिंडी की बाजार मांग हमेशा बनी रहती है जिससे इसका काफी अच्छा भाव मिल जाता है। भिंडी की बाजार मांग के कारण भिंडी की खेती किसान भाइयों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है।

भिंडी का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। भिंडी में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे – कैल्शियम, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज-लवण और विटामिन A, B और C आदि। इसके अतिरिक्त भिंडी में थायमिन और राइबोफ्लेविन भी पाया जाता है और इसमें आयोडीन की मात्रा भी अधिक होती है। भिंडी के सेवन से कब्ज से छुटकारा मिलता है।

यदि किसान भाई ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती करना चाहते हैं तब उन्हें गर्मी के सीजन की भिंडी की उन्नत किस्मों की बुवाई करना चाहिए। गर्मी में बोई जाने वाली भिंडी की उन्नत किस्म से संबंधित जानकारी किसान भाइयों को होना आवश्यक है ताकि उन्नत किस्मों की बुवाई करके काफी अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सके। गर्मी के सीजन में किसान भाई भिंडी की इन किस्मों की बुवाई कर सकते हैं जैसे – अर्का अनामिका, परभनी क्रांति, हिसार उन्नत, पूसा A-4 और पंजाब -7 आदि। आइए, ग्रीष्मकालीन भिंडी की उन्नत 5 किस्मों से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।

ग्रीष्मकालीन भिंडी की उन्नत 5 किस्में

(1) अर्का अनामिका किस्म

भिंडी की अर्का अनामिका किस्म के विकास का श्रेय भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान(IIHR), बैंगलोर को जाता है। भिंडी की अर्का अनामिका किस्म की बुवाई गर्मी और बारिश दोनों सीजन में की जा सकती है। भिंडी की इस किस्म के पौधों की लंबाई लगभग 120 से 150 सेमी होती है। इस किस्म के पौधे का आकार सीधे और अच्छा शाखायुक्त होता है। भिंडी के इस किस्म के फल मुलायम, रोमरहित, 5 से 6 धारियों वाले और रंग गहरा हरा होता है। भिंडी की अर्का अनामिका किस्म के डंठल की अच्छी लंबाई होने के कारण फलों की तुड़ाई में सुविधा होती है। भिंडी की अर्का अनामिका किस्म पीला मोजेक वायरस रोग के प्रति सहनशील है। भिंडी की अर्का अनामिका किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हैक्टेयर लगभग 12.15 टन तक होता है।

(2) परभनी क्रांति किस्म

भिंडी की परभनी क्रांति किस्म के विकास का श्रेय मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय परभनी को जाता है। इस किस्म को 1885 में विकसित किया गया था। भिंडी के इस किस्म के फलों की लंबाई लगभग 15.18 सेमी और रंग गहरा हरा होता है। भिंडी की परभनी क्रांति किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हैक्टेयर लगभग 9.12 टन तक होता है। भिंडी की परभनी क्रांति किस्म के पकने की अवधि लगभग 50 दिन है।

(3) हिसार उन्नत किस्म

भिंडी की हिसार उन्नत किस्म के विकास का श्रेय चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CCS HAU), हिसार को जाता है। भिंडी की हिसार उन्नत किस्म की बुवाई गर्मी और बारिश दोनों सीजन में की जा सकती है। भिंडी की इस किस्म के पौधों की लंबाई लगभग 90 से 120 सेमी होती है। इस किस्म के पौधे में 3 से 4 शाखाएं हर नोड से निकलती हैं। भिंडी की हिसार उन्नत किस्म की पत्तियों का रंग हरा होता है। भिंडी के इस किस्म के फल आकर्षक और फल की लंबाई लगभग 15 से 16 सेमी और रंग हरा होता है। भिंडी की हिसार उन्नत किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हैक्टेयर लगभग 12 से 13 टन तक होता है। भिंडी की हिसार उन्नत किस्म के पकने की अवधि लगभग 46 से 47 दिन है।

(4) पूसा A-4 किस्म

भिंडी की पूसा A-4 किस्म के विकास का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR), नई दिल्ली को जाता है। इस किस्म को 1995 में विकसित किया गया था। भिंडी की पूसा A-4 किस्म की बुवाई गर्मी और बारिश दोनों सीजन में की जा सकती है किंतु बारिश के सीजन में इस किस्म से अधिक उपज प्राप्त होती है। भिंडी के इस किस्म के फल आकर्षक, कम लस वाले, आकार मध्यम और फल की लंबाई लगभग 12.15 सेमी होती है। भिंडी की पूसा A-4 किस्म पीला मोजेक वायरस रोग, एफिड और जैसिड के प्रति सहनशील है। भिंडी की पूसा A-4 किस्म से प्राप्त उत्पादन बारिश के सीजन में प्रति हैक्टेयर लगभग 15 टन और गर्मी के सीजन में प्रति हैक्टेयर लगभग 10 टन तक होता है। भिंडी की पूसा A-4 किस्म के पकने की अवधि लगभग 15 दिन है।

(5) पंजाब -7 किस्म

भिंडी की पंजाब -7 किस्म के विकास का श्रेय पंजाब विश्वविद्यालय (PU), लुधियाना को जाता है। भिंडी के इस किस्म के फल आकर्षक, आकार मध्यम और रंग हरा होता है। भिंडी की पंजाब -7 किस्म पीतरोग के प्रति सहनशील है। भिंडी की पंजाब -7 किस्म से प्राप्त उत्पादन प्रति हैक्टेयर लगभग 8.12 टन तक होता है। भिंडी की पंजाब -7 किस्म के पकने की अवधि लगभग 55 दिन है।

ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई की प्रक्रिया

ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 18 से 20 किग्रा होना चाहिए। भिंडी की संकर किस्म की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 5 किग्रा होना चाहिए। भिंडी की उपज रोगग्रस्त ना हो इसके लिए बीजों की बुवाई से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए प्रति किलोग्राम बीज में कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब की 3 ग्राम मात्रा का प्रयोग करें।

भिंडी की खेती में बुवाई से पूर्व खेत तैयार करने के लिए खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करें। गर्मी में भिंडी की बुवाई पंक्तियों में करना चाहिए। बीजों की बुवाई लगभग 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में करना चाहिए। यदि दूरी की बात की जाए तो पौधों की आपसी दूरी लगभग 15 से 20 सेमी और पंक्तियों की आपसी दूरी लगभग 25 से 30 सेमी होना चाहिए।

भिंडी की खेती से प्राप्त कमाई

भिंडी की बुवाई के 15 दिन पश्चात् फल आना प्रारंभ हो जाते हैं। भिंडी की पहली तुड़ाई का कार्य, बुवाई के लगभग 45 दिन पश्चात् कर सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में भिंडी की खेती से प्राप्त उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 10 टन है। भिंडी की खेती से प्रति वर्ष प्रति एकड़ 3 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।

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