खाद्य तेलों का सस्ता आयात कर सरकार ने दामों को काबू में किया, किसान चिंतित….

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बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से सहकारी संस्थाओं द्वारा सरसों खरीद करवाने की बात की गई है लेकिन सवाल यह है कि जब देशी तेल-तिलहनों का बाजार ही न हो यानी आयातित सस्ते खाद्य तेलों के आगे देशी तेल-तिलहन महंगे हों तो यह कैसे खपेगा

विदेशी बाजारों में भाव टूटने और देश में सस्ते आयातित खाद्य तेलों की प्रचुरता होने के कारण स्थानीय मंडियों में लगभग सभी तेल-तिलहनों में गिरावट देखी गई. सस्ते आयातित तेलों की अधिकता के बीच देशी तेल-तिलहनों, विशेषकर सरसों के नहीं खपने से सरसों किसानों ने जो अप्रत्याशित स्थिति का अनुभव किया है वह लंबे समय तक उन्हें परेशान करती रहेगी.
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से सहकारी संस्थाओं द्वारा सरसों खरीद करवाने की बात की गई है लेकिन सवाल यह है कि जब देशी तेल-तिलहनों का बाजार ही न हो यानी आयातित सस्ते खाद्य तेलों के आगे देशी तेल-तिलहन महंगे हों तो यह कैसे खपेगा? उन्होंने कहा कि पहले के अनुभवों को देखकर कहा जा सकता है कि नाफेड जैसी संस्था अधिक से अधिक 15 से 20 लाख टन सरसों खरीद कर पायेगी फिर बाकी महंगी लागत वाली सरसों और अन्य देशी तिलहन कहां खपेंगे?

सूत्रों ने कहा कि एक तेल विशेषज्ञ की राय थी कि अब देश का तेल-तिलहन कारोबार विदेशों के हिसाब से चलने का खतरा हो सकता है. यानी विदेशों के दाम के हिसाब से यहां सारे तेल-तिलहनों के दाम तय होंगे. जब उस विशेषज्ञ से पूछा गया कि देश के तेल प्रसंस्करण उद्योग का क्या होगा, तेल उद्योग में कार्यरत लोगों के रोजगार का क्या होगा और देश में भारी संख्या में मौजूद मवेशियों के लिए पशु आहार यानी तेलखल कहां से मिलेगा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. जिस तरह सरसों और सोयाबीन नहीं खप रहा है इससे किसान काफी दुखी हैं और यह स्थिति कहीं उन्हें तिलहन खेती छोड़ने को विवश न कर दे, इस बात का खतरा है. स्थिति पर गहराई से ध्यान देकर इसके लिए यथासंभव जरूरी उपाय करने की जरूरत है.

सूत्रों ने कहा कि पिछले दो साल में सरकार के द्वारा सरसों तिलहन फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगभग 800 रुपये क्विंटल की वृद्धि की गई है और इस हिसाब से सरसों तेल 22-23 रुपये किलो ऊंचा बिकना चाहिये था लेकिन पेराई के बाद यह तेल 1-2 रुपये किलो नीचे दाम पर बिक रहा है.

बड़े किसान तो अपनी उपज को रोककर दाम बढ़ने का इंतजार कर सकते हैं पर देश के ज्यादातर छोटी जोत के किसान क्या करें? ऐसे किसान तो पैसों की जरुरत पूरा करने के लिए औने पौने दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं.

मंगलवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 4,950-5,050 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल.

मूंगफली – 6,780-6,840 रुपये प्रति क्विंटल.

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 16,680 रुपये प्रति क्विंटल.

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,535-2,800 रुपये प्रति टिन.

सरसों तेल दादरी- 9,550 रुपये प्रति क्विंटल.

सरसों पक्की घानी- 1,560-1,630 रुपये प्रति टिन.

सरसों कच्ची घानी- 1,560-1,670 रुपये प्रति टिन.

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल.

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,520 रुपये प्रति क्विंटल.

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,280 रुपये प्रति क्विंटल.

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,880 रुपये प्रति क्विंटल.

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,800 रुपये प्रति क्विंटल.

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,050 रुपये प्रति क्विंटल.

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,100 रुपये प्रति क्विंटल.

पामोलिन एक्स- कांडला- 9,150 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल.

सोयाबीन दाना – 5,235-5,285 रुपये प्रति क्विंटल.

सोयाबीन लूज- 4,985-5,075 रुपये प्रति क्विंटल.

मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल.


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By Harry
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नमस्ते! मेरा नाम "हरीश पाटीदार" है और मैं पाँच साल से खेती बाड़ी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी, अनुभव और ज्ञान मैं अपने लेखों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाता हूँ। मैं विशेष रूप से प्राकृतिक फसलों की उचित देखभाल, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना, और उचित उपयोगी तकनीकों पर आधारित लेख लिखने में विशेषज्ञ हूँ।