अन्नानास एक व्यवसायिक एवं स्वास्थवर्धक फल है जो सुपाच्य एवं विटामिन युक्त ए., बी., सी., कैल्सियम, मैग्नीशियम, पोटाशियम एवं लौह युक्त फल है। इस फल से रस (जूस), डिब्बा बंद मोरब्बा, जैम, शरबत, रंग, दवाई एवं सीरप भी तैयार किया जाता है। अन्नानास एक रसीला एवं स्वादिष्ट फल होने के कारण इसकी मांग देश एवं विदेशों के बाजारों में सालों भर रहता है तथा भारत में कुछ गिने चुने राज्यों यथा असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल के अलावा बिहार राज्य के एक मात्र किशनगंज जिला के ठाकुरगंज एवं पोठिया प्रखण्डों में इसकी व्यवसायिक खेती की जाती है। किशनगंज जिले के मिट्टी एवं जलवायु अन्नानास की खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है। तथा यहाँ राज्य के अन्य जिलों के अपेक्षा तापमान न्यूनतम एवं वर्षापात अधिकतम है जो अन्नानास की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता हैं, वर्तमान में जिले के ठाकुरगंज एवं पोठिया प्रखंडों में इस फसल की खेती नगदी फसल के रूप में की जा रही है। ठाकुरगंज एवं पोठिया प्रखंड पश्चिम बंगाल से सटे होने के कारण अन्नानास की खेती में उपयोग होने वाले उत्पादनों की पूर्ति आसानी से हो जाती है। इसका विस्तार जिले के अन्य प्रखण्डों में भी सफलता पूर्वक की जा सकती है, जिससे न केवल किसानों की आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा होने के कारण खासकर नगदी फसल के रूप में अन्नानास की खेती को बढ़ावा देने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
अन्नानास की खेती के लिए सर्वोत्तम जलवायु उसे माना जाता है। जहाँ की तापमान 20 डिग्री सें. से 35 डिग्री सें. तक रहता है। दिन और रात के तापमान में कम से कम 4 डिग्री सेल्सियस का अंतर आवश्यक समझा जाता है। इसके साथ-साथ वार्षिक वर्षापात 100 से 150 सेंटीमीटर उपयुक्त माना जाता है। इस तरह नमी युक्त उष्ण कटिबन्धीय वर्षा क्षेत्र को अन्नानास की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
अन्नानास की खेती के लिए भूमि का चयन, तैयारी और मिट्टी उपचार
अन्नानास की खेती बलुआही दोमट मिट्टी जिसका पी.एच 5.0-6.0 हो उपयुक्त माना जाता है।डिस्क हैरो से दो जुताई एवं कल्टीवेटर से दो जुताई जनवरी माह में एवं देशी हल से दो जुताई फरवरी के प्रथम सप्ताह में की जाती है। जुताई पश्चात समतलीकरण कर खेत को तैयार कर दिया जाता है।दूसरी एवं तीसरी जुताई के समय 40 किलो, प्रति एकड़ की दर से चूना एवं 3 से 4 किलो. फियूराडॉन या फौरेट का प्रयोग करना आवश्यक है। जस्ता की कमी को पूरा करने के लिए अंतिम जुताई के समय 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 4 किलोग्राम बोरोन का प्रयोग करना आवश्यक है। कम्पोस्ट प्रति एकड़ 120 क्विंटल का उपयोग किया जाना उत्तम है।
अन्नानास की खेती के लिए प्रभेद, बीज, बीज उपचार, रोपाई का समय
जार्द्ल कयु कॉपन क्वीन, जलयुप, लखत, बरुर्दपुर, हरियाणविटा, रेड्स्केनीस। किशनगंज जिले में मुख्य रूप से जाईटक्यू एवं क्वीन प्रभेदों का उत्पाद किया जाता है।अन्नानास की खेती के लिए बीज के रूप में मुख्य रूप से पौधे का साईंड पुत्तल (सकर) गुटी पुत्तल (स्लिप) एवं क्राउन का उपयोग होता है। समय एवं उत्पादन की दृष्टि से साईंड पुत्तल एवं गुई पुत्तल को श्रेष्ट माना जाता है।बीजोपचार के लिए मुख्य रूप से सेरासेन घोल 4 ग्राम प्रति लीटर या थिरम 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का उपयोग किया जाता है।किशनगंज जिले में इसकी रोपाई फूल आने के 12 से 15 माह पूर्व की जाती है जो मुख्य रूप से दिसम्बर से अप्रैल तक होती है। परन्तु सालों भर उत्पादन के लिए इसकी रोपाई जून, जुलाई और अक्टूबर, नवम्बर में भी की जाती है। इसमें मुख्य रूप से फूल आने का समय जनवरी से मार्च होता है।
रोपाई का समय रोपाई, पोषण, खरपतवार नियंत्रण, रासायनिक उर्वरक का व्यवहार
बीज का रोपण दोहरी कतार में की जाती है। जिसमें पौधे की बीज की दूरी 45 सेंटीमीटर एवं कतार के कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर होती है। जिसमें 22 सेंटीमीटर गहरा एवं 30 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढा किया जाता है।रोपाई के पूर्व प्रति गड्ढा 1 किलो सड़ा हुआ कम्पोस्ट 2-3 ग्राम, फास्फेट एवं 6 ग्राम पोटाश डालकर स्वस्थ पुत्तल की रोपाई की जाती है।रोपाई के 40-50 दिन पश्चात प्रथम निकाई गुड़ाई 80-90 दिनों के पश्चात दूसरी 110-120 दिनों के पश्चात, तीसरी 200-210 दिनों के पश्चात, चौथी 300-310 दिनों पश्चात पांचवी व अंतिम निकाई कर अनावश्यक खरपतवारों को नियंत्रित किया जाता है।प्रथम निकाई गुड़ाई के पश्चात प्रति पौधा 2 ग्राम नेत्रजन का उपयोग किया जाता है। दूसरे निकाई-गुड़ाई के तुरन्त बाद 2 ग्राम नेत्रजन एवं 6 ग्राम पोटाश प्रति पौधा का व्यवहार कर पौधों के जड़ों पर मिट्टी चढ़ा दिया जाता है। इसके पश्चात दो निकाई गुड़ाई के बाद प्रति पौधा 2.5 ग्राम नेत्रजन का उपयोग किया जाता है एवं अंतिम निकाई गुड़ाई के बाद 3 ग्राम नेत्रजन का उपयोग किया जाना श्रेष्टकर होता है।
कीट प्रबंधन: आवश्यकता अनुसार 2-3 बार मोनोक्रोटोफोस 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोलकर किया जाता है।सालोभर उत्पादन प्राप्त करने के लिए पौधों में 50 मिलीलीटर कैल्शियम कारबाईड का घोल प्रति पौधा या 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल अथवा 0.25 मिलीलीटर इथरेल प्रति पौधा का छिड़काव किया जाता है। फूल आने के 2 माह बाद ए, ए, ए, प्लार्नोफिक्स और सेलेमोन 200-300 पी.पी.एम. का प्रयोग फल में उत्तम वृद्धि लाता है जो कि 15-20 प्रतिशत आंका गया है। प्रति पौधा 8-10 रु. प्रति एकड़ लगभग 96 हजार से 1 लाख 20 हजार रु. तक आता है।
रासायनिक उर्वरक का व्यवहार फल परिपक्व अवधि,कषर्ण क्रियाएँ,खरपतवार नियंत्रण
पौधरोपण के 12 से 15 माह बाद अन्नानास के पौधों में फूल आता है तथा 15 से 18 माह बाद अन्नानास का फल परिपक्व हो जाता है। यह अवधि फल के प्रभेदों पर भी निर्भर करता है।पौधों को मजबूत खड़ा रहने की दृष्टि से समय-समय पर मिट्टी चढ़ा दी जानी चाहिए जिससे पौध सीधा खड़ा रहे इसके अतिरिक्त जड़ें उथली होने के कारण वर्षा के दौरान पौधे झुके नहीं तथा वृद्धि प्रभावित न हो।अच्छा है अन्नानास की हाथ से गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ाते समय खरपतवार निकाल दिए जाएं ताकि दोनों कार्य एक साथ हो जाएं वैसे रसायनिक विधि से खरपतवार/नियंत्रण के लिए ब्रोमेसिल + डाईफ्यूरान प्रत्येक 2 किग्रा./हें. की दर से खरपतवार जमने के पूर्व आधी मात्रा एवं आधी मात्रा पहले प्रयोग 5 माह बाद प्रयोग किया जाए तो खरपतवारों पर पूरा नियंत्रण किया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण मल्चिंग,सिंचाई,प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स का प्रभाव,फसल तुड़ाई
अन्नानास की फसल में मल्चिंग का महत्व स्पष्ट देखा गया है। मल्चिंग के रूप में काली पालीथीन एवं बुरादा का प्रभाव सफेद पालीथीन एवं पुआल की मल्चिंग से ज्यादा अच्छा पाया गया है। मल्चिंग भूमि में नमी के संरक्षण के लिए आवश्यक होता है।सकर्स, स्लिप्स एवं क्राउन को निकालना। निकलते समय सकर्स वृद्धि करते हैं जबकि फलों के विकास के समय स्लिप्स वृद्धि करते हैं। फलों के वृद्धि के समय स्किप्स के विकास से फलों की परिपक्वता में देरी होती है। इसलिए यथा समय सकर्स एवं स्लिप्स को मुख्य पौधे से हटाते रहना चाहिए।वैसे तो अन्नानास की खेती प्राय: असिंचित क्षेत्रों में की जाती है। किन्तु सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था होने पर फलों का विकास एवं गुणवत्ता में वृद्धि पायी गयी है।एन.ए.ए. आधारित प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स जैसे प्लेनोफिक्स तथा सेलीमोन 10-20 पीपीएम की दर से पुष्पन एवं फलत वर्ग बढ़ाता है। कुछ ग्रोथ रेगुलेटर्स फल को पकाने के लिए इथरेल आदि का प्रयोग भी किया जाता है।
अन्नानास की फसल में पुष्पन रोपाई के 10-12 माह में बाद प्रांरम्भ हो जाती है तथा फल तैयार होने तक 15-18 माह का समय लग जाता है। इसकी कटाई प्राय: मई से अगस्त माह में की जाती है। फल के रोग में परिवर्तन आना इसकी तुड़ाई का संकट होता है जब फल का रंग हरे से लाल होने लगता है। व्यवसायिक दृष्टि से अन्नानास की खेती उन्नति खेती अधिक लाभदायक है अत: यह आवश्यक है कि बिहार जैसे क्षेत्र में किसानो की आमदनी के लिए अन्नानास की खेती काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है।