बारिश में ककोड़ा की खेती से किसानों को होगा फायदा : जानिए ककोड़ा की खेती के बारे में

By
On:
Follow Us

ककोड़ा की खेती क्यों करना चाहिए??

ककोड़ा एक हरी और गोल कांटेदार सब्जी होती है। ककोड़ा की सब्जी बनाकर खाई जाती है, इसके अतिरिक्त ककोड़ा का अचार भी बनाया जाता है। मानसून की बरसात का समय चल रहा है, ऐसे में किसान भाई बारिश में ककोड़ा की खेती से काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

ककोड़ा एक ऐसी सब्जी है जो कि बारिश में अपने आप ही उगती है क्योंकि अधिकांश जंगलों में ककोड़ा के पौधों को देखा जा सकता है। ककोड़ा की बाजार में भी काफी मांग होती है और अच्छी कीमत हमें प्राप्त हो जाती है। ककोड़ा की सब्जी और अचार बनाया जाता है और ककोड़ा की सब्जी को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है, इसलिए इस सब्जी को अधिक खरीदा जाता है, इसीलिए इसकी बाजार में कीमत काफी अच्छी मिल जाती है। बाजार में ककोड़ा की कीमत प्रति किलोग्राम ₹150 तक होती है।

जानिए, ककोड़ा के स्वास्थ्यवर्धक गुणों के बारे में…

ककोड़ा कई स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए जाना जाता है। ककोड़ा स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है क्योंकि ककोड़ा की सब्जी हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए और वजन कम करने के लिए काफी लाभदायक होती है। ककोड़ा में खनिज की मात्रा भरपूर पाई जाती है और इसमें Momordicin नामक तत्व भी पाया जाता है, जो कि एंटी-डायबिटीज़ और एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से परिपूर्ण होता है।

भारत में ककोड़ा की खेती से संबंधित राज्य

भारत के कई ऐसे राज्य हैं जहां पर ककोड़ा की खेती की जाती है जैसे —
महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक और उड़ीसा आदि।

ककोड़ा की खेती के लिए समय का निर्धारण

ककोड़ा की खेती के लिए उपयुक्त समय बरसात का मौसम यानी जून और जुलाई का माह होता है, क्योंकि इसमें ककोड़ा की फसल काफी तेजी से वृद्धि करती है। ककोड़ा की सब्जी की कटाई बुवाई के 70 से 80 दिन के पश्चात् होती है।

ककोड़ा की खेती के लिए मिट्टी, जलवायु और तापमान का निर्धारण

ककोड़ा की खेती के लिए उचित जल निकास वाली मिट्टी होनी चाहिए।
ककोड़ा की खेती में जलभराव नहीं होना चाहिए।
ककोड़ा की खेती के लिए गर्म और ठंडी दोनों ही मौसम उपयुक्त होते हैं।
तापमान 27°C से 32°C तक होना चाहिए।

ककोड़ा की बेल कौन से मौसम में तेजी से बढ़ती है?

ककोड़ा बेल पर लगने वाली सब्जी है, जिसमें फल लगते हैं और इन्हीं की सब्जी बनाकर खाई जाती है। ककोड़ा की बेल बारिश में तेजी से चलती है और जितनी अधिक बारिश होती है उतनी अच्छी ककोड़ा की उपज प्राप्त होती है। इसलिए ककोड़ा बारिश में लगने वाली सब्जी है। बारिश शुरू होते ही बाजार में ककोड़ा की सब्जी आ जाती है।

कहां से खरीदें ककोड़ा के बीज?

ककोड़ा के बीज जंगल में ही मिलते हैं क्योंकि ककोड़ा का उत्पादन जंगल में ही होता है और ककोड़ा को जंगल से ही आगे भेजा जाता है। जब ककोड़ा का सीजन खत्म हो जाता है तब इसके बीज गिर जाते हैं और मानसून की पहली बारिश से ही ककोड़ा की बेल जंगल में फैलने लगती है।
ककोड़ा के बीज बाजार में उपलब्ध नहीं होते हैं। कृषि विभाग भी ककोड़ा के बीजों को नहीं रखता है।

ककोड़ा की खेती का तरीका

उचित जल निकास वाली मिट्टी होनी चाहिए।
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर समतल बना लें।
खेत की जुताई 2-3 बार करें और अंतिम जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद डालें।
खेत में बैंड का निर्माण करें जिसमें 2-3 बीजों की 2 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करें।
मेड़ों की आपसी दूरी 2 मीटर और पौधों की दूरी 70 से 80 सेंटीमीटर रखें।
बुवाई के बाद सिंचाई करें और आवश्यकता अनुसार आगे भी सिंचाई करते रहें।
ककोड़ा की फसल प्रथम वर्ष में 87 दिन और दूसरे वर्ष में 25 से 40 दिन में तैयार हो जाती है।

ककोड़ा की खेती में सिंचाई कब करें?

बारिश के मौसम में ककोड़ा की खेती में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि मिट्टी में नमी पर्याप्त होती है। किंतु यदि बारिश न हो तो ऐसे में सप्ताह में 1-2 बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

ककोड़ा का बाजार भाव

ककोड़ा के बाजार भाव की बात करें तो जब ककोड़ा की मांग ज्यादा होती है तब इसका भाव प्रति किलोग्राम ₹150 तक हो जाता है।
सामान्य रूप से बाजार में ककोड़ा का भाव प्रति किलोग्राम ₹90 से ₹100 तक होता है।

ककोड़ा की खेती में खर्चा और लाभ (2025 की जानकारी के अनुसार)

ककोड़ा की खेती में खर्चा बहुत कम आता है क्योंकि एक बार फसल बोने पर 8 से 10 वर्षों तक उत्पादन प्राप्त होता है।

2025 की हालिया जानकारी के अनुसार, कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और झारखंड में किसानों ने ककोड़ा की खेती से अच्छा लाभ कमाया है। कुछ किसानों ने 500 से 600 पौधों से 3000 से 3500 किलोग्राम तक उपज प्राप्त की है। यदि बाजार मूल्य ₹100 प्रति किलो भी मानें, तो कुल आमदनी ₹3 से ₹3.5 लाख तक हो सकती है।

इसमें लगभग ₹60,000 से ₹80,000 तक का खर्च आता है, जिसमें जैविक खाद, खेत की तैयारी और सिंचाई शामिल हैं। इस प्रकार किसान ₹2.5 लाख तक का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं।

कम लागत, प्राकृतिक पद्धति और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण ककोड़ा की खेती ग्रामीण किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बनती जा रही है। कृषि विभाग और शोध संस्थान आने वाले समय में इसके बीजों को संरक्षित कर व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

For Feedback - feedback@example.com

Leave a Comment