मूंग की खेती से सम्बंधित जानकारी
भारत में तिलहन और दलहन फसलों का एक विशेष स्थान है। दलहनी फसल के अंतर्गत मूंग अपना मुख्य स्थान रखती है। मूंग में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, साथ ही यह मिट्टी के लिए भी लाभदायक है। मूंग की खेती में जब फलियों को तोड़ लिया जाता है, उसके बाद हल द्वारा मिट्टी पलटने पर मूंग हरी खाद का कार्य करती है। मूंग की खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। भारत में किसान मूंग की खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों सीजन में करने लगे हैं। भारत में दलहनी फसलों में मूंग का अपना एक विशिष्ट स्थान है। देश में मूंग का उत्पादन खरीफ, रबी के अलावा आजकल जायद सीजन में भी होने लगा है। यदि खेती उचित तरीके और तकनीक से की जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। मूंग की फसल में कई रोग लगने की संभावना होती है। फसल खराब न हो, इसके लिए इन रोगों की पहचान करना जरूरी है तथा इनका समाधान भी आवश्यक है। इसी से संबंधित जानकारी जानिए।
मूंग की फसल में लगने वाले रोग
(1) चूर्णी फफूंद रोग
इस रोग में पौधे की पत्तियों के निचले स्तर पर छोटे-छोटे सफेद धब्बे हो जाते हैं जो बाद में एक बड़े सफेद धब्बे में बदल जाते हैं। यह रोग पत्तियों, शाखाओं, फलियों और तने में भी फैल सकता है। यह गर्म और शुष्क मौसम में ज्यादा फैलता है।
चूर्णी फफूंद रोग के समाधान
- रोग अवरोधी प्रजातियों का उपयोग करें जैसे – LBG-402, LVG-17, TRM-1 और पूसा-9072।
- घुलनशील गंधक का प्रयोग करें।
- संक्रमित पौधों पर पानी में केराथेन या कार्बेन्डाजिम के घोल का छिड़काव करें।
(2) ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग)
इस रोग के कारण फसल की पैदावार और गुणवत्ता में 20% से 60% तक की कमी आ सकती है। यह रोग 26-30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर और बादल युक्त मौसम में फैलता है।
ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) का समाधान
- रोग रहित व प्रमाणित बीजों का चयन करें।
- बीजों को 1 किग्रा बीज में 2-3 ग्राम थीरम या कैप्टान से उपचारित करें।
- 15 दिन के अंतराल पर 0.2% थिरम या जिनेब का छिड़काव करें।
(3) पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)
इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और झड़ने लगती हैं, जिससे फलियां नहीं बन पातीं। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है।
पीत चितेरी रोग का समाधान
- रोग अवरोधी प्रजातियां जैसे – LGP-407, ML-267 का प्रयोग करें।
- प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी में ऑक्सीडेमेटान मेथाइल 0.1% या डायमेथोएट 0.3% मिलाकर 3-4 बार छिड़काव करें।
- खेत से खरपतवार और संक्रमित पौधे हटाएं।
(4) पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)
यह एक विषाणुजनित रोग है जो बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद दिखने लगता है। इसमें पत्तियां बड़ी होकर मुड़ जाती हैं और झुर्रियां पड़ जाती हैं।
पर्ण व्यांकुचन रोग का समाधान
- संक्रमित पौधों को जड़ से नष्ट करें।
- इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करें या जब लक्षण दिखाई दें।
मूंग की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट एवं उनके रोग
(1) सफेद मक्खी और माहू कीट
ये पत्तियों और फूलों का रस चूसते हैं, जिससे काली परत बन जाती है और प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है। सफेद मक्खी येलो मोजेक वायरस फैलाती है।
समाधान
- पानी में रोगर (डाइमेथोएट 30 E.C.) की 1.7 मिलीलीटर मात्रा मिलाकर छिड़काव करें।
- 1 लीटर पानी में एज़ा पावर प्लस की 5 मिली मात्रा या इमिडाक्लोप्रिड 0.2 मिलीलीटर मिलाकर छिड़काव करें।
(2) थ्रिप्स कीट
ये पत्तियों और फूलों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियां मुड़ने लगती हैं और फूल गिरने लगते हैं।
(3) जैसिड (हरा फुदका) कीट
ये पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं।
सामान्य कीट प्रबंधन सुझाव
- खेत की मेड़ों, नालियों से खरपतवार हटाएं।
- समय पर सिंचाई करें।
- कीट अवरोधी प्रजातियों का चयन करें।
- जैविक नियंत्रण हेतु ट्राइको पावर प्लस 6-10 ग्राम प्रति किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैव कीटनाशक एज़ा पावर प्लस का 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।