भारत में कुछ सालों के बाद चावल, गेंहू और मक्का खाने को शायद न मिले। या कम मिले। ये सच्चाई है। क्योंकि जिस हिसाब से मौसम बदल रहा है। 2050 तक चावल, गेंहू और मक्के की पैदावार में भारी कमी आएगी। 27 साल बाद चावल के पैदावार में 20, गेंहू में 19.3 और बाजरे में 18% की गिरावट होगी। वजह क्लाइमेट चेंज है।
जलवायु संकट (Climate Crisis) की वजह से भविष्य में अनाज की पैदावार पर असर पड़ेगा। सिर्फ मौसम संबंधी आपदाएं नहीं आएंगी। बल्कि उसका सीधा असर कृषि और फलों की खेती पर पड़ेगा। क्योंकि जिस तेजी से एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स यानी मौसम का तेजी से बदलना और उससे जुड़ी आपदाएं आ रही हैं, देश में लोग दाने-दाने को मोहताज हो सकते हैं।
सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस बात पर नजर रखती हैं? क्या फसलों के पैदावर पर जलवायु परिवर्तन के असर की स्टडी होती है? ऐसे कई सवालों के जवाब पर्यावरण, वन एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में दी।
मंत्री ने बताया कि सरकार अपने अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के जरिए जलवायु परिवर्तन और उससे पड़ने वाले असर पर नजर रख रही है। नए डेटा और वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन ये भी तय है कि जलवायु परिवर्तन का असर भविष्य में होने वाली पैदावार पर पड़ेगा।
ICAR ने की है कृषि पर होने वाले बुरे असर की स्टडी
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले असर की स्टडी की। स्टडी में जो नतीजे सामने आए, वो डराने वाले हैं। अगर नई तकनीकों और तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया गया तो भविष्य डरावना है।